जर्मनी में फंसी गुजरात की बेबी अरिहा शाह का मामला एक बार फिर गरमा गया है. इस मामले में बच्ची की मां ने मोदी सरकार ने हस्तक्षेप की मांग की है. परिजन का आरोप है कि बच्ची को बर्लिन में 20 महीने से जिस सेंटर में रखा गया था, अब वहां से उठाकर मंदबुद्धि सेंटर में भेज दिया गया है. बच्ची की मानसिक हालत खराब बताकर व्यवहार किया जा रहा है. वहीं, इस संबंध में विदेश मंत्रालय ने बेबी अरिहा को जल्द भारत वापस लाने का आश्वासन दिया है. प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि हमने जर्मनी सरकार से बच्ची को सुपुर्द करने का आग्रह किया है.
बता दें कि अहमदाबाद की अरिहा शाह बीते 27 महीने से जर्मनी में है. जब वह 7 महीने की थी, तब उसे जर्मनी यूथ वेलफेयर की कस्टडी में भेज दिया गया था. बच्ची के माता-पिता पर शारीरिक शोषण के आरोप लगाए गए थे. हालांकि, बाद में यह आरोप गलत साबित हुए. पिता भावेश और मां धारा शाह ने बच्ची की कस्टडी वापस पाने के लिए दिन-रात एक कर दिया है. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
'बच्ची को वापस लाने के प्रयास में भारत सरकार'
इस मामले में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बागची ने कहा, हम जर्मनी से बच्ची (अरिहा शाह) को भारत को वापस करने का अनुरोध करते रहे हैं. वो एक भारतीय नागरिक है. 2021 में जब वो 7 महीने की थी, तब से उसे जर्मनी के यूथ वेलफेयर की कस्टडी में रखा गया है. पिछले 20 महीनों से बच्ची केयर होम में है.
'अरिहा के संबंध में समझौता नहीं किया जाए'
उन्होंने कहा, हमारा दूतावास बार-बार जर्मन अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध कर रहा है कि हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि के साथ अरिहा के संबंध से समझौता नहीं किया जाए. हम जर्मन अधिकारियों से अरिहा को जल्द से जल्द भारत भेजने के लिए हरसंभव प्रयास करने का आग्रह करते हैं, जो एक भारतीय नागरिक के रूप में उसका अधिकार भी है. हम अरिहा शाह की भारत वापसी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
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'भारतीय दूतावास के संपर्क में हैं जर्मनी के अधिकारी'
यह बयान अरिहा के माता-पिता द्वारा बार-बार विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर से मिलने की मांग के बाद आया है. बेबी अरिहा के माता-पिता हस्तक्षेप करने के लिए लगातार भारत में अधिकारियों से मिल रहे हैं. इस बीच, जर्मन अधिकारियों ने आजतक को बताया है कि वे बर्लिन में भारतीय दूतावास के साथ संपर्क में हैं.
'जर्मनी में अन्य देशों के लोगों ने भी खोऐ बच्चे'
जर्मनी में यह अकेला ऐसा मामला नहीं है. तुर्की, पोलैंड, रोमानिया, अन्य देश भी इसी तरह के मामलों से जूझ रहे हैं. उन्होंने अपने बच्चों को इसी तरह खो दिया है. भारत सरकार ने अब तक क्या किया है और किसी देश को सांस्कृतिक अंतर पर कहां रेखा खींचनी चाहिए, यह यहां सवाल है.
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'सुषमा स्वराज एक मां का दर्द समझती थीं'
अरिहा की परेशान और भावुक मां धारा शाह ने अपने बच्ची को वापस पाने के संघर्ष के बीच दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को याद किया है. उन्होंने कहा, 'सुषमा स्वराज एक मां थीं, इसलिए वह एक मां का दर्द समझती थीं. यहां तक कि विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने हमेशा इस कारण का समर्थन किया. वह कहती थीं, अगर बच्चा भारतीय नागरिक है तो हमें पता है कि अपने बच्चे की देखभाल कैसे करनी है. यह उनका स्टैंड था. 20 महीने हो गए हैं. मुझे विश्वास है कि अगर भारत सरकार हस्तक्षेप करती है, अगर प्रधानमंत्री मोदी इस मामले में हस्तक्षेप करते हैं, तो मेरी बेटी को न्याय मिलेगा. वह एक भारतीय बच्ची है. वह एक गुजराती बच्ची है.'
'कई मां-बाप ने ऐसे आरोपों को झेला है'
धारा ने आगे कहा, 'कई भारतीय माता-पिता ने इन आरोपों को झेला है और बच्चों को उनकी हिरासत से हटा दिया गया है. हर बार जब देश के प्रधानमंत्री हस्तक्षेप करते हैं और समकक्ष से बात करते हैं, तब इसमें मदद मिलती है.'
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अरिहा की मां धारा शाह ने बताया पूरा घटनाक्रम...
वहीं, न्यूज एजेंसी से बातचीत में अरिहा शाह की मां धारा शाह ने इस पूरे घटनाक्रम के बारे में जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि बच्ची अब 27 महीने की हो गई है. 20 महीने से मुझसे दूर है. जब बच्ची 7 महीने की थी, तब उसके डाइपर मुझे ब्लड दिखा था. इस पर मैं उसे लेकर डॉक्टर के पास पहुंची. वहां डॉक्टर ने 'सब ठीक है' कहकर वापस भेज दिया. बाद में जब हम फॉलोअप के लिए गए तो उन्होंने चाइल्ड केयर सर्विस को फोन करके बुला लिया और उन्हें बच्ची को सौंप दिया. परिजन पर भद्दा और झूठा आरोप लगाने की कोशिश की गई. हम पर बच्ची के साथ सेक्सुअल एब्यूज का आरोप लगाया गया. लेकिन, हम सच्चे थे. क्योंकि हम खुद डॉक्टर के पास लेकर गए थे.
'जिस हॉस्पिटल ने आरोप लगाए, उसी ने खारिज किए'
धारा कहती हैं, हम ऐसा क्यों करेंगे? कोई भारतीय अपने बच्चे या किसी के बच्चे के साथ ऐसा सोच भी नहीं सकता? सारी चीजें वेरिफाई हो गईं. जिस हॉस्पिटल ने चाइल्ड केयर को बुलाया था, उन्होंने दिसंबर 2021 में रिपोर्ट दे दी. उस रिपोर्ट में उन्होंने सेक्सुअल एब्यूज को खारिज कर दिया. बच्ची के पिता और दादा के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले. फरवरी 2022 में पुलिस ने यह केस बंद कर दिया. हमें लगा कि इन लोगों की जो भी गलतफहमी थी, वो क्लियर हो गई है. अब हमें बच्ची दे दी जाएगी. उसके बावजूद चाइल्ड केयर ने पेरेंटल कस्टडी को टर्मिनेट करने का केस जारी रखा.
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'अब बच्ची को अटैचमेंट डिसऑर्डर बता रहे'
उन्होंने कहा, फैमिली कोर्ट ने हमारी पैरेंटल एबिलिटी रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए. 12 महीने में यह रिपोर्ट तैयार की गई. इस रिपोर्ट में कहा गया कि बच्ची अपने माता-पिता से सिर्फ एक घंटे ही मिलती है. बाकी पूरा दिन वो चाइल्ड केयर में बिताती है. फिर भी वो पैरेंट्स से ज्यादा अटैच्ड है. अपने मां-बाप से लगाव होना स्वभाविक बात है. इसे लेकर तर्क दे रहे हैं कि बच्ची को अटैचमेंट डिसऑर्डर है. अंजानों से घुल-मिल जाती है. इंडियन और वेस्टर्न थ्योरी का डिफरेंस बताया. रिकमंडेशन में कहा कि बच्ची पैरेंट्स के साथ बहुत खुश है. बिल्कुल भी घबराती नहीं है. बहुत प्यार से रहती है. इसलिए बच्ची को पैरेंट्स चाइल्ड फैसिलिटी में रखा जाए.
'बच्ची के साथ खिलौने की तरह व्यवहार कर रहे'
इस बीच, गुजरात सरकार ने एक लेटर दिया है. इसमें कहा गया है कि बच्ची इंडियन सिटीजन है, वो वहां पर फंसी हुई है. हम उसे भारत सरकार की देखरेख में रखना चाहते हैं. दो ही ऑप्शन थे. जर्मन कोर्ट अपॉइंट एक्सपर्ट ने बोला कि बच्ची को पैरेंटस के साथ रखा जाए. भारत सरकार ने बोला कि बच्ची को यहां लाया जाए. हम उसकी देखभाल करेंगे. हम इस संबंध में कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे थे. पिछले हफ्ते पता चला कि जर्मन चाइल्स सर्विस ने बच्ची को 20 महीने से जिस जगह पर रखा था, वहां से उठाकर इंस्टीट्यूट में डाल दिया है. चिल्ड्रन सेंटर में रखा है, ये सेंटर मंदबुद्धि बच्चों के लिए होते हैं. उनके पास रिसोर्सेज नहीं है. बच्ची को रखने की कैपिसिटी नहीं है तो उसको खिलौने की तरह ट्रीट कर रहे हैं. मुझे भारत सरकार पर भरोसा है और मैं अनुरोध करती हूं कि एक बार इस मामले में प्रधानमंत्री स्तर का हस्तक्षेप हो जाए तो मेरी बेटी जल्द ही वापस आ जाएगी.
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