पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने एक बार जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक का समर्थन किया है. शनिवार को उन्होंने कहा कि यासीन मलिक की सजा पर भी पुनर्विचार होना चाहिए. इसके लिए महबूबा मुफ्ती ने पूर्व पीएम राजीव गांधी के हत्यारों की सजा की माफी की ओर इशारा किया है. अपने एक ट्वीट में उन्होंने कहा कि यासीन मलिक जैसे राजनीतिक कैदी के मामले की समीक्षा और पुनर्विचार किया जाना चाहिए. उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है कि इस देश में जब पीएम की हत्याओं करने वालों को माफ किया जा सकता है, तो ऐसे में यासीम मलिक की सजा का रीव्यू होना चाहिए.
मुफ्ती ने किया है ये ट्वीट
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने शनिवार को अपने एक ट्वीट में कहा कि, भारत जैसे लोकतंत्र में जहां प्रधानमंत्री के हत्यारों को भी माफ कर दिया जाता है, यासीन मलिक जैसे राजनीतिक कैदी के मामले की समीक्षा और पुनर्विचार किया जाना चाहिए. उनकी फांसी का समर्थन करने वाले नए राजनीतिक इखवान हमारे सामूहिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा हैं.
एनआईए ने की है मलिक को मौत की सजा देने की मांग
असल में, एनआईए ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के प्रमुख यासीन मलिक को मौत की सजा दिए जाने का अनुरोध किया है. एनआईए के इस कदम के बाद 'जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी' के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने शनिवार को कहा कि देश को डराने-धमकाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए. उनके ही ट्वीट के स्टेटमेंट को शेयर करते हुए महबूबा मुफ्ती ने अपनी बात रखी है.
ये इसलिए मलिक को मिली है फांसी की सजा
बता दें कि यासीन मलिक के खिलाफ यूएपीए कानून के तहत 2017 में आतंकवादी कृत्यों में शामिल होने, आतंक के लिए पैसा एकत्र करने, आतंकवादी संगठन का सदस्य होने जैसे गंभीर आरोप थे, जिसे उसने चुनौती नहीं देने की बात कही और इन आरोपों को स्वीकार कर लिया. यह मामला कश्मीर घाटी में आतंकवाद से जुड़े मामले से संबंधित हैं.
वर्ष 2017 में कश्मीर घाटी में आतंकी घटनाओ में बहुत इजाफा देखने को मिला था. घाटी के माहौल को बिगाड़ने के लिए लगातार आतंकी साजिशें रची जा रही थीं और वारदातों को अंजाम दिया जा रहा था. उसी मामले में दिल्ली की विशेष अदालत में अलगाववादी नेता के खिलाफ सुनवाई हुई, जिसमें यासीन ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. हालांकि एनआईए ने ट्रायल कोर्ट के सामने भी यासीन मलिक को फांसी की सजा दिए जाने की मांग की थी. निचली अदालत ने यह कहते हुए फांसी की सजा देने से इनकार कर दिया कि मौत की सजा केवल उन असाधारण मामलों में ही दी जानी चाहिए "जहां अपराध समाज की सामूहिक चेतना को झकझोरता हो".