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MiG 21: लगातार हादसों के बाद भी इसे रिटायर करना वायुसेना के लिए क्यों नहीं है आसान?

1960 से भारतीय एयरफोर्स रूसी विमान मिग 21 का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन इसकी सुरक्षा को लेकर लगातार सवाल होते रहे हैं. 62 साल के इतिहास में मिग 21 के क्रैश होने की 200 घटनाएं हो चुकी हैं. इतना ही नहीं पिछले 5 साल में भारत में एयरक्रॉफ्ट और हेलिकॉप्टर क्रैश में 42 जवान भी शहीद हुए हैं. वहीं, मिग 21 क्रैश में अब तक 200 जवान शहीद हो चुके हैं.

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Mig 21 (फाइल फोटो)
Mig 21 (फाइल फोटो)

राजस्थान में पिछले हफ्ते भारतीय वायुसेना का मिग 21 विमान क्रैश हो गया था. इस हादसे में वायुसेना के दो जवान शहीद हो गए. यह Mig 21 काफी पुराना विमान है. सुरक्षा को लेकर एक बार फिर यह विमान सवालों में है. यहां तक कि इसे 'उड़ता ताबूत' भी कहा जाता है.

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उधर, वायुसेना ने राजस्थान हादसे के बाद मिग 21 की एक स्क्वाड्रन को सितंबर तक रिटायर करने का फैसला किया है. इसके बाद तीन सालों में चरणबद्ध तरीके से इसकी स्क्वाड्रन को रिटायर किया जाएगा. लेकिन सवाल यही है कि लगातार हादसों के बाद भी मिग 21 को रिटायर करना वायुसेना के लिए आसान क्यों नहीं है?

Mig 21 को क्यों कहा जाने लगा उड़ता ताबूत? 

1960 से भारतीय एयरफोर्स रूसी विमान मिग 21 का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन इसकी सुरक्षा को लेकर लगातार सवाल होते रहे हैं. 62 साल के इतिहास में मिग 21 के क्रैश होने की 200 घटनाएं हो चुकी हैं. इतना ही नहीं पिछले 5 साल में भारत में एयरक्रॉफ्ट और हेलिकॉप्टर क्रैश में 42 जवान भी शहीद हुए हैं. वहीं, मिग 21 क्रैश में अब तक 200 जवान शहीद हो चुके हैं. 

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क्यों इस विमान को रिटायर करने आसान नहीं? 

भारतीय वायुसेना लंबे वक्त से Mig 21 का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन नए फाइटर जेट शामिल होने में हो रही देरी के चलते अभी भी एयरफोर्स को इनका इस्तेमाल करना पड़ रहा है. अगर भारतीय वायुसेना सीधे तौर पर Mig 21 की सभी स्क्वाड्रन को रिटायर करती है, तो सेना के पास फाइटर जेट की कमी हो सकती है. बताया जा रहा है कि तेजस को शामिल करने में देरी और राफेल को लेकर हुए राजनीतिक विरोध के चलते भी मिग को रिटायर करने के फैसले में देरी हुई है. 

भारतीय वायुसेना के पास स्क्वाड्रन की भी कमी

पिछले दिनों रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति की एक रिपोर्ट सामने आई थी. इसके मुताबिक, भारतीय वायुसेना के पास 42 स्क्वाड्रन होनी चाहिए, लेकिन अभी इससे भी कम हैं. आने वाले सालों में पुराने विमान भी रिटायर हो जाएंगे, जिससे स्क्वाड्रन और कम हो जाएंगी. रिपोर्ट में बताया गया है कि वायुसेना के पास 2,050 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट हैं, जिनमें मुख्य रूप से AN-32 और एब्रो शामिल हैं. दोनों जहाजों की संख्या लगातार कम हो रही है और 2032 तक एब्रो पूरी तरह खत्म हो जाएंगे.

संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, वायुसेना अगले कुछ सालों में पूरी तरह स्वदेशी हथियारों पर ही निर्भर रहेगी. वायुसेना ने 83 LCA MK-1 की डील की है, जिसकी डिलिवरी 2024 से शुरू होगी. LCA MK-1 से 4 स्क्वाड्रन बनेंगी और ये विमान MiG 21 और MiG 27 को रिप्लेस करेंगे. 

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