सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र और दिल्ली द्वारा उन तीन अधिनियमों को अपने यहां लागू करने को लेकर हलफनामा दाखिल नहीं करने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की, जिनका उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों की मदद करना है.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कोरोना संकट की शुरुआत में लगे लॉकडाउन की वजह से खासा संघर्ष करने को मजबूर हुए प्रवासी श्रमिकों से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हलफनामा दाखिल नहीं करने से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि राज्यों को इन अधिनियमों को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. पीठ ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र और दिल्ली में अधिकतम प्रवासी काम कर रहे हैं.
हलफनामा दाखिल करने को कहा था
पीठ ने कहा कि 31 जुलाई के अपने पिछले आदेश में, शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से राज्यों को निर्देश दिए थे कि वे तीन अधिनियमों (अंतर राज्य प्रवासी कामगार (रोजगार और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1979, निर्माण श्रमिक (नियमन और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1996 और असंगठित श्रमिक सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008) के संचालन और कार्यान्वयन के संबंध में हलफनामा दायर करें.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी श्रमिकों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की है कि दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्य प्रवासी श्रमिकों के लाभ के लिए अपने यहां कानूनों को लागू करने में रुचि नहीं रखते हैं. पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र और दिल्ली ऐसे राज्य हैं जहां प्रवासी श्रमिकों की संख्या सबसे ज्यादा है और बाहर से आए लोग काम कर रहे हैं.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील संजय जैन ने सुप्रीम कोर्ट से हलफनामा दाखिल करने के लिए और समय मांगा है. जब कोर्ट ने राज्यों को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए विशिष्ट आदेश पारित किया, तो कोर्ट का इरादा पूर्वोक्त कृत्यों को देखने का था.
राज्यों की ओर से हलफनामा दाखिल नहीं करना स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि राज्यों को उपरोक्त अधिनियमों को लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.