मणिपुर के तेंगनोपाल के मोरेह में उग्रवादियों ने सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला कर दिया. शुरुआती जानकारी के मुताबिक ये घटना दोपहर 3.30 बजे हुई. सशस्त्र उग्रवादियों और राज्य सुरक्षाबल के बीच मुठभेड़ अभी भी जारी है. घटना में एक पुलिसकर्मी के घायल होने की सूचना मिल रही है.आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए IED और विस्फोटकों का इस्तेमाल किया है. सशस्त्र उग्रवादियों के हमले के बाद सुरक्षाबलों ने जवाबी कार्रवाई की.
प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि कमांडो उस समय घायल हो गया, जब बंदूकधारियों ने पुलिस वाहनों को निशाना बनाया. सुरक्षाबलों की टीम सीमावर्ती शहर मोरेह से की लोकेशन पॉइंट (केएलपी) की ओर जा रही थी. अधिकारियों ने बताया कि घायल कमांडो की पहचान 5 आईआरबी के पोंखालुंग के रूप में की गई है, फिलहाल उनका 5 असम राइफल्स कैंप में इलाज चल रहा है.
पुलिस ने कहा कि तेंगनौपाल जिले के मोरेह वार्ड नंबर 9 के चिकिम वेंग में अज्ञात बंदूकधारियों ने मोरेह की कमांडो टीम पर गोलियां चलाईं और बम फेंके. यह घटना तब हुई जब मणिपुर पुलिस कमांडो इलाके में नियमित पैट्रोलिंग कर रहे थे. पुलिस ने कहा कि शुरुआत में दो बम विस्फोट हुए, इसके बाद 350 से 400 राउंड गोलियां चलीं. मोरेह में 2 घरों में भी आग लगा दी गई.
मणिपुर के तेंगनोपाल में इस महीने की शुरुआत में भी हिंसा भड़की थी. यहां दो पक्षों के बीच हुई फायरिंग में 13 लोगों की मौत हो गई थी. एक अधिकारी ने बताया था कि जिले के लेतीथू गांव के पास दो समूहों के बीच फायरिंग हुई थी. फायरिंग की सूचना मिलने पर हमारे सुरक्षाबल मौके पर पहुंचे, जहां से हमने 13 शव बरामद किए थे.
मई के महीने में भड़की थी मणिपुर में हिंसा
तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है. राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है. मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.