लद्दाख में LAC पर चीन के हिमाकत दिखाने के बाद भारत ने बीजिंग की आर्थिक तौर पर नकेल कसने के लिए कई कदम उठाए हैं. चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार चीनी आयात को झटका देने जा रही है.
भारत में इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के साथ चीनी खिलौनों (Toys) की भी बहुत मांग रही है. देश में जितने भी आयातित खिलौने आते हैं, उनमें तीन चौथाई से अधिक हिस्सेदारी चीनी खिलौनों की होती है. अब इसी पर शिकंजा कस कर चीन को करीब 2,000 करोड़ रुपये का झटका देने की तैयारी है.
क्वालिटी कंट्रोल में चीनी खिलौने फेल
वैसे तो क्वालिटी को लेकर चीनी सामान के खिलाफ शिकायतें आती रहती हैं, लेकिन खिलौनों के मामले में तो स्थिति और भी बदतर है. इन खिलौनों की गुणवत्ता की जांच की गई तो वो कई मानकों पर फेल रहे. सूत्रों के मुताबिक चीन न सिर्फ घटिया और खराब खिलौने भारत भेज रहा है बल्कि वो बच्चों के लिए सुरक्षा मानदंडों को भी पूरा नहीं करते.
इस मामले में प्लास्टिक के खिलौने सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं. सबसे ज्यादा आयात प्लास्टिक के खिलौनों का ही होता है. इन्हें आकर्षक बनाने के लिए जिन रंगों का इस्तेमाल होता है, वो भी खतरनाक होता है. जब छोटे बच्चे ऐसे खिलौनों से खेलते वक्त उन्हें मुंह में डालते हैं तो उससे बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है.
हैरानी की बात है कि इन खिलौनों पर ये अंकित नहीं होता कि उनका निर्माण कहां हुआ है.
चीन से कारोबार में असंतुलन
चीन से भारत के कारोबार में पिछले एक दशक में काफी असंतुलन रहा है. वित्त वर्ष 2019-20 में भारत ने चीन से 65 अरब डॉलर का सामान आयात किया, वहीं चीन को इसी वर्ष में 16.6 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया. इसी से करीब 50 अरब डॉलर के असंतुलन का पता चलता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले कुछ महीनों से लोकल सामान की खरीद पर जोर दे रहे हैं. उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के इस साल भाषण में भी लोकल के लिए वोकल होने की अपील की थी.
पारंपरिक खिलौनों को मिलेगा बढ़ावा
मोदी सरकार चीनी खिलौने की जगह टेराकोटा, लकड़ी और मिट्टी के पारंपरिक खिलौने को आगे बढ़ने पर जोर दे रही है. पीएम मोदी ने पिछले हफ्ते ही इंडस्ट्री के जुड़े लोगों से बात करते हुए कहा था कि पारंपरिक चीजों को आगे बढ़ने से बड़ी संख्या में रोजगार पैदा होंगे. साथ ही लोग अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ेंगे. प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में शनिवार को एक बैठक भी बुलाई थी.
आइए देखते हैं, भारत में कहां-कहां पारंपरिक खिलौनों को बढ़ावा देने की संभावना है.
लाख के खिलौने - रामनगरम, कर्नाटक
लकड़ी के खिलौने - कोंडपल्ली (आंध्र प्रदेश), निर्मलमें (तेलंगाना), वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
गुड्डे-गुड़िया - तंजावुर (तमिलनाडु)
मिट्टी के खिलौने - दुबरी (असम)
इनके अलावा चित्रकूट में भी पारंपरिक खिलौने बनाए जाते हैं.
खिलौनों को सस्ता रखने की चुनौती
हालांकि भारत में खिलौना इंडस्ट्री को आगे बढ़ने में बड़ी बाधाएं भी है. पहली चुनौती है सस्ते खिलौने तैयार करना. आजकल ज्यादातर खिलौने रिमोट वाले या बैटरी वाले आ रहे हैं जो बच्चों को ज्यादा पसंद आते हैं. इसके लिए सेंसर, रिमोट और बैटरी वाली मशीन सस्ते में उपलब्ध होना जरूरी है. ये सामान सस्ता नहीं होगा तो खिलौने भी सस्ते नहीं हो सकते.
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यही वजह है कि मोदी सरकार बच्चों को पारंपरिक खेलों और खिलौनों से जोड़ना चाहती है जो ना तो नुकसानदेह है और ना ही बच्चों के लिए खतरनाक. साथ ही अपनी परंपरा की पहचान भी बनी रहेगी. हालांकि भारतीय खिलौना निर्माता संघ और अधिक पाबंदी लगाने के खिलाफ है.
बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत
भारत में खिलौना उत्पादन की 30,000 इकाइयां काम करती हैं. इनका वार्षिक टर्नओवर 7000 करोड़ रुपये है. यह असंगठित क्षेत्र है. वाणिज्य मंत्रालय कह चुका है कि भारत में इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है.
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भारत में खिलौने बनाने के लिए जरूरी प्लास्टिक, टैक्सटाइल, बोर्ड और पेपर उपलब्ध हैं. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक खिलौने बनाने में भारत के पास तकनीकी कुशलता और क्षमता की कमी है. हालांकि कम श्रम लागत दूसरे देशों के मुकाबले भारत के पक्ष में है. चीन की फैक्ट्रियों में काम करने के खतरनाक माहौल के कारण बड़ी वैश्विक कंपनियां खिलौना बनाने के लिए दूसरे देशों की तलाश में हैं. ऐसे में भारत उनके लिए उपयुक्त स्थान हो सकता है.