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कांग्रेस सरकार से तीन गुना MSP फ‍िर भी क‍िसानों के न‍िशाने पर क्यों है मोदी सरकार?

केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं क‍ि जहां मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में किसानों के हाथों में एमएसपी के तौर पर 7,04,339 करोड़ रुपये थमाए, वहीं मोदी सरकार ने अपने दौर में किसानों को दी जाने वाली MSP को 23,12,267 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया.

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MSP लंबे समय से किसानों का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है
MSP लंबे समय से किसानों का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) वर्षों से क‍िसानों का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. अब यह स‍ियासत का बड़ा औजार बन चुका है. जहां आंदोलन कर रहे अध‍िकांश क‍िसान संगठन यह आरोप लगा रहे हैं क‍ि मोदी सरकार एमएसपी खत्म करना चाहती है, वहीं मुख्य व‍िपक्षी पार्टी कांग्रेस भी एमएसपी को लेकर संसद में मोदी सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है. लेक‍िन क्या क‍िसी क‍िसान संगठन या पार्टी ने व‍िरोध करने से पहले यह देखने की कोश‍िश की है क‍ि मनमोहन स‍िंह सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में क‍िसानों को एमएसपी के तौर पर क‍ितना पैसा द‍िया था और मोदी सरकार ने कितना? जब आप इसके आंकड़ों को देखेंगे तो बहुत आसानी से समझ में आएगा क‍ि क‍िसने क‍िसानों को आर्थ‍िक तौर पर ज्यादा मजबूत क‍िया. 
 
केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय से जुटाए गए आंकड़े बताते हैं क‍ि जहां मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में किसानों के हाथों में एमएसपी के तौर पर 7,04,339 करोड़ रुपये थमाए, वहीं मोदी सरकार ने अपने दौर में किसानों को दी जाने वाली MSP को 23,12,267 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया. यह सिर्फ संख्याओं का ही फासला नहीं, बल्कि नीतियों की नब्ज, प्राथमिकताओं का पैमाना और किसानों के प्रति नजरिये की मिसाल भी है. तो फ‍िर सवाल यह पैदा होता है क‍ि कांग्रेस सरकार से तीन गुना एमएसपी देने के बावजूद मोदी सरकार क्यों क‍िसानों के न‍िशाने पर है? 

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रवैया और नजर‍िया बदलेंगे आंकड़े 

अब सवाल यह भी है क‍ि क्या मोदी सरकार ने वाकई किसानों की आमदनी में भारी वृद्ध‍ि कर दी है? या फिर ये सिर्फ़ महंगाई के साथ बढ़ती रकम का खेल है? क्या सरकार ने फसलों की खरीद भी बढ़ाई है और क्या वाकई आर्थिक संजीवनी ने ज़मीनी हकीकत बदली है? आइए, इन आंकड़ों के आईने में देखते हुए दोनों सरकारों के दौरान एमएसपी पर की गई फसलों की खरीद का व‍िश्लेषण करते हैं. इसी से तय होगा क‍ि असल में क‍िस पार्टी की कथनी और करनी में फर्क है. कौन स‍िर्फ भाषण दे रहा है और कौन वाकई क‍िसानों की मदद कर रहा है. ये आंकड़े सरकार और मुख्य व‍िपक्षी पार्टी कांग्रेस दोनों के प्रत‍ि अपना रवैया और नजर‍िया बदल सकते हैं, क्योंक‍ि फासला तीन गुना का है. एमएसपी की व्यवस्था इसलिए है ताकि बाजार में कीमतें गिरने के बावजूद सरकार किसानों को तय दाम दे. 

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दलहन-त‍िलहन पर बढ़ा फोकस 

दरअसल, एमएसपी क‍िसानों की अच्छी इनकम का एक आधार है. लेकिन, यह कड़वा सच है क‍ि सरकार के कुछ समर्थक एमएसपी की व्यवस्था के व‍िरोधी हैं. इसके बावजूद एक सच यह भी है क‍ि मनमोहन स‍िंह यूपीए के दस साल के मुकाबले एनडीए के दस साल में एमएसपी पर तीन गुना से अध‍िक रकम खर्च की गई. बहरहाल, मोदी सरकार के दौरान न स‍िर्फ धान, गेहूं की सरकारी खरीद बढ़ी है बल्क‍ि दलहन, त‍िलहन और कपास की खरीद में भी काफी वृद्ध‍ि हुई है. यानी सरकार क्रॉप डायवर्स‍िफ‍िकेशन को लेकर भी गंभीर द‍िख रही है.  

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क्या बंद हो जाएगी एमएसपी? 

सरकार का रुख बता रहा है क‍ि आगे भी एमएसपी पर फसलों की खरीद को लेकर वो पीछे नहीं हटेगी. बल्क‍ि एमएसपी पर फसलों की खरीद बढ़ाएगी. कोई भी सरकार लाल बहादुर शास्त्री द्वारा बनाई गई इस व्यवस्था को बंद नहीं कर सकती, क्योंक‍ि खाद्य सुरक्षा के लिए जो अनाज चाहिए उसे हम आउटसोर्स नहीं कर सकते. उसे सरकार को किसानों से ही खरीदना होगा. 

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वर्ष 1966-67 में पहली बार गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हुआ था. उसके बाद जो भी सरकारें आईं उन्होंने इस व्यवस्था में न स‍िर्फ नई फसलों को जोड़ा बल्क‍ि खरीद भी बढ़ाई. बहरहाल, आंकड़े बता रहे हैं क‍ि मोदी सरकार ने एमएसपी देने का नया रिकॉर्ड बनाया है. एमएसपी के रूप में किसानों को इतना पैसा दिया है कि पहले कभी किसी सरकार ने सोचा भी नहीं होगा. 

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एमएसपी पर क्या है क‍िसानों की मांग 

इस समय सरकार जो A2+FL फार्मूले के आधार पर एमएसपी घोष‍ित कर रही है, उसे भी म‍िलने की गारंटी नहीं है. ऐसे में किसान संगठन एमएसपी को लेकर दो महत्वपूर्ण मांग कर रहे हैं. पहली मांग C-2 फार्मूले के आधार पर दाम तय करने की है. धान की वर्तमान एमएसपी 2,300 रुपये प्रत‍ि क्विंटल है. जबक‍ि C-2 वाली एमएसपी 3,012 रुपये प्रत‍ि क्विंटल होगी. दूसरी मांग उसकी लीगल गारंटी देने की है, ताक‍ि सरकार और न‍िजी क्षेत्र दोनों एमएसपी से कम कीमत पर कृष‍ि उपज की खरीद न कर पाएं. एमएसपी के इन दोनों मुद्दों पर सरकार और क‍िसानों के बीच सात दौर की बातचीत हो चुकी है.

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