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MP उपचुनाव: 28 सीटों पर 3 नवंबर को होने वाली वोटिंग क्यों है बहुत अहम, जानिए

मध्य प्रदेश में बीजेपी को 28 सीटों में से सिर्फ आठ सीटें जीतने की जरूरत है, जिसके लिए 3 नवंबर को उपचुनाव होना है. जबकि कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस को अब अपने दम पर 115 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए सभी 28 सीटें जीतने की जरूरत है. ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होता दिख रहा है.

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मध्य प्रदेश में कई दिग्गजों की साख दांव पर लगी (फाइल)
मध्य प्रदेश में कई दिग्गजों की साख दांव पर लगी (फाइल)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मध्य प्रदेश में अधिकतर सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से
  • उपचुनावों के नतीजों पर कई दिग्गजों की साख टिकी
  • 2018 में कांग्रेस को मिली 114 सीटें, अब 87 सिमटी
  • बीजेपी को बहुमत के लिए आठ सीटें जीतने की जरूरत

बिहार विधानसभा चुनाव पर सबकी नजरें टिकी हैं, लेकिन 3 नवंबर को मध्य प्रदेश की 28 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव भी कम अहम नहीं हैं. ये उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस दोनों के लिए बहुत मायने रखते हैं. बीजेपी की मौजूदा विधानसभा के अंकगणित में आरामदायक स्थिति है. वहीं कांग्रेस 2018 विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी, तब कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार भी बनाई, लेकिन वो इस साल मार्च में गिर गई.

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ऐसा ज्योतिरादित्य सिंधिया की अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ बगावत और फिर बीजेपी से हाथ मिलाने की वजह से हुआ. तब से राज्य में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी सरकार है. ये उपचुनाव शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ के साथ-साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और नरेंद्र सिंह तोमर सहित राज्य के कई और दिग्गज नेताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं.

मध्य प्रदेश में ऐसी नौबत क्यों आई?
दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने सबसे अधिक 114 सीटें हासिल कीं. बीजेपी 109 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही. 230 सदस्यीय सदन में निर्दलीय चार, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के दो और समाजवादी पार्टी (SP) के एक विधायक चुन कर पहुंचे. कांग्रेस ने 15 साल बाद राज्य में सरकार बनाई.

सिंधिया के पाला बदलने से कांग्रेस को 22 विधायकों और सदन में इतनी सीटों से ही हाथ धोना पड़ा. सदन के तीन सदस्यों की मौत, एक उपचुनाव और चार इस्तीफों के बाद स्थिति ये हुई कि बीजेपी के पास 107 और कांग्रेस के पास 87 सीटें रह गईं. यह स्थिति उपचुनावों से पहले तक की है.

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मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करना बीजेपी के लिए आसान और कांग्रेस के मुश्किल नजर आता है.

एमपी के वो 28 सीट जहां पर 3 नवंबर को उपचुनाव होने हैं

28 सीटों के लिए 3 नवंबर को होगी वोटिंग
बीजेपी को 28 सीटों में से सिर्फ आठ सीटें जीतने की जरूरत है, जिसके लिए 3 नवंबर को उपचुनाव होना है. 25 अक्टूबर को दमोह से कांग्रेस विधायक राहुल लोधी के विधानसभा से इस्तीफे के बाद विधानसभा की कुल प्रभावी सदस्य संख्या 229 है.  

अगर बीजेपी 10 नवंबर को आठ सीटों से कम जीतती है, तो 10  नवंबर को सियासी नाटक पर पर्दा नहीं गिरेगा. उस स्थिति में, अगली सरकार बनाने के लिए बीएसपी के 2, एसपी के एक और चार निर्दलीयों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. 

विधानसभा में कांग्रेस पार्टी की मौजूदा ताकत 87 विधायकों की है. कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस को अब अपने दम पर 115 के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए सभी 28 सीटें जीतने की जरूरत है. अगर सभी चार निर्दलीय, बीएसपी के दो विधायक और अकेले एसपी विधायक भी कांग्रेस का समर्थन करते हैं, तो भी पार्टी को 21 सीटें जीतने की जरूरत है. 

पर्यवेक्षकों के मुताबिक, यह दूर की कौड़ी की तरह दिखता है, भले ही कांग्रेस ने इस नारे के इर्द-गिर्द अपना कैम्पेन खड़ा किया हो कि "फ़िर से आ रहे हैं कमलनाथ”.  

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किस तरह 2018 विधानसभा चुनाव के बाद सदन में आंकड़ों का गणित बदला? अक्टूबर 2019 में, कांतिलाल भूरिया के झाबुआ उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने अपनी रैली को 115 तक सुधार लिया. 2018 में, यह सीट बीजेपी के जीएस डामोर ने जीती थी, लेकिन उन्होंने मई 2019 में झाबुआ रतलाम लोकसभा सीट से चुने जाने के बाद झाबुआ विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. इस तरह बीजेपी की ताकत इस प्रकार घटकर 108 हो गई. 

दिसंबर 2019 में मुरैना जिले के जौरा से कांग्रेस विधायक बनवारी लाल शर्मा का निधन हो गया. कांग्रेस की ताकत घटकर 114 रह गई. जनवरी 2020 में आगर के बीजेपी विधायक मनोहर ऊंटवाल का निधन हो गया. इसके साथ ही बीजेपी की ताकत घटकर 107 हो गई.

इस साल मार्च में, ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से ग्रैंड ओल्ड पार्टी के खिलाफ बगावत के बाद कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए 22 कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता छोड़ दी. इस तरह सदन की प्रभावी संख्या 206 रह गई और कांग्रेस की ताकत घटकर 92 रह गई. यहां तक ​​कि चार निर्दलीय, बीएसपी के दो विधायक और अकेले एसपी विधायक भी कांग्रेस सरकार को नहीं बचा सके, क्योंकि उनकी संयुक्त ताकत 99 थी और बहुमत के आंकड़े के लिए पर्याप्त नहीं थी.

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आगे चलकर तीन और कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और बीजेपी में शामिल हो गए और इस तरह कांग्रेस की विधायक संख्या घटकर 89 पर आ गिरी. सितंबर 2020 में, बेरा से कांग्रेस के विधायक गोवर्धन सिंह दांगी का निधन हो गया और कांग्रेस की सदस्य संख्या 88 हो गई. 

हाल में 25 अक्टूबर को, कांग्रेस के राहुल लोधी ने बीजेपी में शामिल होने के लिए विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. इस प्रकार कांग्रेस की सदन में ताकत 87 रह गई. 

ग्वालियर-चंबल गेम
राज्य में जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से 16 सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में आती हैं. इस क्षेत्र में पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी प्लेयर के तौर पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. इस क्षेत्र से बीजेपी के अन्य दिग्गजों में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और चौहान सरकार में वरिष्ठ मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल हैं.

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ग्वालियर-चंबल और विंध्य क्षेत्र में बीएसपी की बड़ी मौजूदगी है और 2018 के चुनाव में उसे 5 फीसदी वोट मिले. 2013 के चुनाव में पार्टी को मिले वोटों की तुलना में 2018 में बीएसपी को 1.3 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ था. पर्यवेक्षकों ने 2018 के चुनावों में SC/ST एक्ट में संशोधन और दलित विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा को लेकर बीजेपी के खिलाफ दलितों के गुस्से को इसका कारण बताया. प्रदर्शन में कुछ मौतें भी हुईं. ऐसे में दलितों ने बीजेपी को हराने के लिए रणनीतिक वोटिंग की. 

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दिसंबर 2018 के एमपी विधानसभा चुनावों के बाद, एसपी, बीएसपी और चार निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन किया था. बीएसपी के पास लगभग सभी 16 सीटों पर समर्थन आधार है जो ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से उपचुनाव में जा रहे हैं. कम से कम पांच सीटों पर बीएसपी समर्थक वोटर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं, जहां 2018 के चुनावों में बीजेपी को सीधे हार का सामना करना पड़ा.

बीएसपी ने सुमौली में 20 फीसदी वोट, मुरैना में 14 फीसदी वोट, गोहद में 11 फीसदी वोट, पोहरी में 23 फीसदी वोट और अशोक नगर में 7 फीसदी वोट हासिल किए थे. बीजेपी ने इन सभी सीटों पर कमोबेश उतने ही अंतर से कांग्रेस से मात खाई जितने कि बीएसपी का वोट शेयर रहा.

2018 में सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण पर चौहान के रुख से सवर्ण भी नाराज थे. दलित और सवर्ण दोनों के ही बीजेपी से नाराज होने के कारण, कांग्रेस स्वाभाविक लाभार्थी बन गई. 

इस चुनाव में, बीएसपी का रुख बीजेपी के लाभ की दिशा में अधिक काम करने वाला दिखाई देता है जो कांग्रेस को महंगा पड़ सकता है. पर्यवेक्षकों के अनुसार, एससी/एसटी अधिनियम में संशोधन के कारण बीजेपी से नाराजगी के चलते पिछले चुनाव में बीएसपी के वोट का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस की ओर शिफ्ट हुआ था.

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हालांकि कांग्रेस ने उम्मीदवारों के चयन में बहुत सतर्कता बरती है लेकिन कमलनाथ जो पार्टी के कैम्पेन का मुख्य चेहरा हैं, वो इस क्षेत्र के मतदाताओं के बीच अधिक पैठ नहीं रखते. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पार्टी से सिंधिया और उनके समर्थकों की विदाई से बने शून्य को भरने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन राघौगढ़ के पूर्ववर्ती राजा ने खुद कमान संभालने की जगह अपने बेटे जयवर्धन सिंह को कांग्रेस उम्मीदवारों के प्रचार के लिए मैदान में उतारा. 
 
उपचुनाव वाली सीटों का नंबर गेम
उपचुनाव में जाने वाली 28 सीटों में से, कांग्रेस ने 2018 के चुनावों में 27 पर जीत हासिल की थी. एक और सीट आगर बीजेपी ने जीती, लेकिन उसके विधायक मनोहर ऊंटवाल का जनवरी में निधन हो गया. 

इन 28 सीटों में से कांग्रेस ने 2013 में केवल चार सीटें जीती थीं. इस तरह पार्टी ने 2018 में 23 और सीटें अपने कब्जे में कीं. दूसरी तरफ, बीजेपी 2013 में जीती 22 सीटों से घटकर 2018 में सिर्फ एक पर आ गई.

मध्य प्रदेश में पिछले तीन चुनावों में पार्टियों का सीट शेयर (केवल उपचुनाव वाली सीट - स्रोत-ECI )
मध्य प्रदेश में पिछले तीन चुनावों में पार्टियों का सीट शेयर (केवल उपचुनाव वाली सीट - स्रोत-ECI )

इन सीटों पर कांग्रेस की जीत इतनी जोरदार थी कि उसका वोट शेयर 2013 में 37.51 से बढ़कर 2018 में 46.22 प्रतिशत हो गया. यह 2013 और 2018 विधानसभा के बीच राज्य स्तर पर कांग्रेस का जो वोट शेयर 4.5 फीसदी बढ़ा था उससे लगभग दोगुना था.

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मध्य प्रदेश में पिछले तीन चुनावों में पार्टियों का वोट शेयर (केवल उपचुनाव वाली सीट - स्रोत-ECI )
मध्य प्रदेश में पिछले तीन चुनावों में पार्टियों का वोट शेयर (केवल उपचुनाव वाली सीट - स्रोत-ECI )

 

उपचुनावों में अहम यह है कि ज्यादातर सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं, जहां सिंधिया का प्रभाव माना जाता रहा है. एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य इन 28 सीटों में से 11 आरक्षित हैं- 9 अनुसूचित जाति (एससी) के लिए और दो अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए.

मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता 
कमलनाथ
: अपने 74वें वर्ष में इस हैवीवेट के लिए, उनकी उम्र उन्हें व्यावहारिक रूप से राहुल गांधी के नेतृत्व वाले युवा कांग्रेस नेतृत्व से बाहर करती है, और कमलनाथ इस बात को जानते हुए इस बार कड़ी मेहनत कर रहे हैं. छिंदवाड़ा से कांग्रेस के इस क्षत्रप की ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बहुत कम पकड़ है, लेकिन वो अपनी सरकार को गिराने वाले सिंधिया और अन्य लोगों से चिपके कथित 'गद्दार' टैग को ऊंची से ऊंची गूंज देने के लिए हाथ पैर मार रहे हैं. कमलनाथ के लिए जो चीजें मुश्किल हो गई हैं, वह यह है कि उनके विधायकों का झुंड बहुत प्रतिबद्ध नहीं है.

कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (पीटीआई)
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ (पीटीआई)

ज्योतिरादित्य सिंधिया: बीजेपी के इस राज्यसभा सदस्य ने एक से अधिक मौकों पर यह साफ किया है कि यह उपचुनाव उनसे जुड़े हैं. सिंधिया ने उस मौके को पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी जो कमलनाथ ने एक महिला उम्मीदवार के लिए आइटम शब्द का इस्तेमाल करके दिया. सिंधिया अच्छी तरह जानते हैं कि भगवा पार्टी में उनका वजन और स्वीकृति उनके उम्मीदवारों के प्रदर्शन पर निर्भर करती है. सिंधिया के साथ, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बीजेपी की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए नरेंद्र सिंह तोमर और नरोत्तम मिश्रा भी कैम्पेन में जुटे हैं. 

शिवराज सिंह चौहान: चौहान अभी ड्राइवर की सीट पर बैठे हैं, क्योंकि उन्हें 28 सीटों में से आठ सीटों की जरूरत है जो उपचुनाव में दांव पर हैं. चौहान, हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में अपने पदभार संभालने पर उपचुनाव के जरिए लोगों की स्वीकृति की मुहर चाहते हैं. इसलिए परिणामों को अपने पक्ष में करने के लिए वे कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

नरेंद्र सिंह तोमर: केंद्रीय कृषि मंत्री नरेद्र सिंह तोमर, जो एक पार्षद के पद से उठ कर इतने ऊंचे ओहदे तक पहुंचे हैं. चौहान के बाद जब भी मुख्यमंत्री के लिए जगह बनेगी तो फिर सबसे अहम दावेदारों में तोमर का भी नाम होगा. तोमर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में मुखर होना चाहते हैं और ग्वालियर में सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद से वो लगातार बीजेपी की संस्कृति के बारे में बात करते रहे हैं.

दिग्विजय सिंह: ग्वालियर-चंबल क्षेत्र का हिस्सा रहे राघौगढ़ से ताल्लुक रखने वाले और राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह अपने बेटे जयवर्धन को सिंधिया के स्थान पर स्थापित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. ये चतुर पूर्व राजा इस हद तक सफल रहे हैं कि जो यहां कांग्रेस में जयवर्धन को अपना नेता स्वीकार नहीं करना चाहते थे, वो अब पार्टी से बाहर हैं.

3 नवंबर को, मध्य प्रदेश की 28 सीटों समेत पूरे देश में 56 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं. इसी दिन बिहार की एक लोकसभा सीट के लिए भी उपचुनाव होना है. मतगणना वाला दिन 10 नवंबर, जितना बिहार के राजनीतिक भविष्य के लिए जितना अहम है, उतना ही मध्य प्रदेश के लिए भी. 

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