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देश में कई शिक्षण संस्थानों में कोटा दिया जाता है. इसका उदेश्य सभी को समान अवसर देना होता है. लेकिन इस समान अवसर के बीच देश के केंद्रीय विद्यालयों में कई सालों से 'एमपी कोटा' भी चल रहा है जहां पर सांसदों को कई विशेषधिकार दिए गए हैं. अगर सांसदों संग अच्छी पहचान है तो केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन मिलना आसान रहता है.
एमपी कोटा और केंद्रीय विद्यालय का कनेक्शन
अब इन्हीं अधिकारों और इस कोटे को लेकर आजतक/ इंडिया टुडे ने एक आरटीआई दायर की थी. जानने का प्रयास था कि ये एमपी कोटा क्या होता है, क्यों दिया जाता है, कब से दिया जा रहा है और अब तक कितने लोगों को इस कोटे की मदद से एडमिशन मिला है. अब केंद्रीय विद्यालय की तरफ से एक विस्तृत जवाब दिया गया है.
उनकी तरफ से जानकारी दी गई है कि एमपी कोटा के जरिए दोनों राज्यसभा और लोकसभा के सांसद कुल 10 लोगों के नाम को आगे बढ़ा सकते हैं. मतलब उनकी तरफ से 10 लोगों का एडमिशन केंद्रीय विद्यालय में करवाया जा सकता है. पहले ये कोटा मात्र 2 तक सीमित था, लेकिन फिर इसे 7 कर दिया गया और आखिर में 10 तक पहुंचा दिया गया. इस कोटे के इतिहास की बात करें तो इस कोटो को दोबारा 1998 में शुरू किया गया था. ये तब के HRD मंत्री मुरली मनोहर जोशी के आदेश पर किया गया था.
कैसे बढ़ता चला गया ये कोटा?
बाद में यूपीए काल में इस कोटे को खत्म करने की कोशिश हुई थी. तब के HRD मंत्री कपिल सिब्बल ने ऐसा प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन जब सदन में भारी विरोध हुआ तो उन्हें अपना ये प्रस्ताव वापस लेना पड़ा. वहीं बाद में यूपीए सरकार के दौरान ही कोटे को 6 तक पहुंचा दिया गया. वैसे सवाल तो ये भी आता है कि ऐसे कोटे की आजादी के इतने सालों बाद क्या जरूरत है? इस पर केंद्रीय विद्यालय ने तर्क दिया है कि किसी भी लोकतंत्र में सांसद को अपने क्षेत्र के बारे में अच्छे से पता होता है, उसे अहसास होता है कि वहां पर क्या समस्याएं हैं, लोगों को क्या मदद चाहिए. ऐसे में उनके जरिए ये कोटा दिया जाता है.
बताया गया है कि इस कोटे के जरिए अब तक 2016 के बाद से 40,046 लोगों को एडमिशन दिया गया है. इसमें भी 2017-18 में सबसे ज्यादा 8760 लोगों को एडमिशन दिया गया था.