केंद्र सरकार ने सोमवार को तीन कृषि कानून लोकसभा में वापस ले लिए हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने खुद सदन में आकर कहा कि इसका ऐलान किया. इसके बाद ये बिल राज्यसभा में पेश किए गए. उच्च सदन में मंजूरी के बाद इन्हें राष्ट्रपति (रामनाथ कोविंद) के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद तीनों बिल वापसी पर पूरी तरह मुहर लग जाएगी.
वहीं किसान नेता और किसान संगठन इस बात पर लामबंद हैं कि MSP पर कानून बने. किसानों ने ये घोषणा कर दी है जब तक MSP पर कानून नहीं बनेगा, तब तक आंदोलन खत्म होने वाला नहीं है. ऐसे में MSP पर कानून में क्या अड़चनें हैं, भारत में MSP को लेकर क्या स्थिति है? यही हम आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को देशवासियों को संबोधित किया और तीनों कृषि बिल वापस लेने का फैसला किया, वहीं आज शीतकालीन सत्र के पहले दिन पीएम मोदी ने ये भी कहा कि वह हर सवाल का जवाब देने को तैयार हैं. संसद की गरिमा बनी रहे, इस सत्र में देशहित में निर्णय हो. दरअसल, 26 नवम्बर को किसानों को दिल्ली के टिकरी, गाजीपुर और सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन करते हुए एक साल हो गया. अब तीनों कानून की वापसी के बाद एक ही चीज किसान चाह रहे हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum support prices : MSP) पर कानूनी मुहर, यानि इस पर कानून बने.
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वर्तमान में क्या है MSP का स्वरूप?
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, इस समय केंद्र सरकार ने 23 फसलों पर MSP की घोषणा कर रखी है. इनमें सात फसलें (धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौ), 5 दालें (चना, अरहर/तूर, मूंग, उड़द और मसूर), 7 तिलहन (रेपसीड सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम और नाइजरसीड (रामतिल) शामिल हैं. इसके अलावा 4 व्यावसायिक फसलें (गन्ना, कपास, खोपरा (नारियल) और कच्चा जूट) शामिल है. कुल मिलाकर एमएसपी तकनीकी तौर पर कुल फसल की लागत के बाद 50 फीसदी रिटर्न के तौर पर होनी चाहिए. लेकिन ये सब कुछ अभी केवल कागजों पर है. भारत में किसान कई फसलें उगाते हैं, लेकिन जब फसल की कटाई का समय होता है, तब किसानों को तय एमएसपी से कम ही मिलता है. चूंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई आधिकारिक वैध प्रावधान नहीं है. इसलिए किसान इसे अपने अधिकार के तौर पर इसकी मांग नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि किसान यूनियन चाहती हैं कि इन पर मोदी सरकार कानून बनाएं.
कैसे लागू हो सकता है न्यूनतम समर्थन मूल्य?
कुल मिलाकर तीन रास्ते हैं, जिससे MSP देश में लागू हो सकता है. पहला ये कि प्राइवेट व्यापारियों या प्रोसेसर पर इस बात का दवाब बनाया जाए कि वे MSP के तहत ही भुगतान करें. हालांकि ये गन्ने पर पहले से ही लागू हैं. ऐसे में जितनी भी शुगर मिल हैं, वे कानून के तहत केंद्र सरकार की 'उचित और लाभकारी मूल्य' के तहत गन्ने का भुगतान करती हैं.
वहीं कई राज्य सरकारें तो 'तय कीमत' से भी ज्यादा देने की कोशिश कर रही हैं. गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 जो आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जारी हुआ था. जिसमें भुगतान होने की कानूनी गारंटी 14 दिनों के अंदर है, यानि जिस तारीख को गन्ना खरीदा जाएगा. उसके 14 दिनों के भीतर इसका भुगतान होगा. साल 2020-21 में चीनी फसल वर्ष (अक्टूबर से सितंबर) में जो मिल थी, उन मिलों ने लगभग 298 मिलियन ((मीट्रिक टन) गन्ने की पिराई की. जो देश की कुल उत्पादन 399 मिलियन (मीट्रिक टन) का लगभगग तीन-चौथाई था. दूसरा, जिस तरह सरकार एमएसपी को देश में लागू कर सकती है, वह फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, नेशनल एग्रीकल्चरल कॉपोरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (Nafed), कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) के माध्यम से खरीद करके, यानि इन एजेसियों के माध्यम से ऐसा हो सकता है.
कहां है असल में एमएसपी लागू?
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार, एमएसपी केवल इन चार ही फसलों में ही लागू है, जिनमें (गन्ना, धान, गेहूं और कपास) शामिल हैं. आंशिक तौर पर पांच (चना, सरसों, मूंगफली, अरहर और मूंग) और 14 अधिसूचित फसलों पर. वहीं बागवानी से जुड़े उत्पाद तो एमसपी से गायब हैं. चाहें वह दूध, अंडा, प्याज, आलू, या सेब हों. कुल मिलाकर इनका नाम तो दस्वातेजों में भी नहीं है. जिन 23 फसलों पर जो एमएसपी है, वह भारत में होने वाले कुल कृषि उत्पाद का महज एक-तिहाई है. इसमें भी वन और मत्सय क्षेत्र शामिल नहीं है.
MSP कानून बना तो सरकार पर कितना बोझ पड़ेगा?
सरकार ने 23 फसलों को एमएसपी के तहत नोटिफाई किया है. उनकी एमएपी वैल्यू साल 2020-21 के तहत 11.9 लाख करोड़ रुपए थी. लेकिन ये पूरी फसल बाजार में तय कीमत नहीं मिल पाई. लेकिन किसानों ने एसमएसपी से कम कीमत 9 लाख करोड़ रुपए में अपनी फसलें बेचीं थी. वहीं सरकार ने भी 2020-21 में कई फसलें खरीदीं थी. इनमें 89.42 मीट्रिक टन धान, 43.34 मीट्रिक टन गेहूं शामिल था. जो 253,275 करोड़ रुपए का था.
इसमें अगर दलहन और तिलहन की फसल जो Nafed ने (21,901 करोड़ रुपए 2019-20 और 4,948 करोड़ रुपए 2020-21 ) खरीदी थी. वहीं कपास और इससे जुड़ा कच्चा माल CCI (2019-20 में 28,420 करोड़ रुपये और 2020-21 में 26,245 करोड़ रुपये) ने खरीदा था. इसके अलावा 2020-21 गन्ने की पिराई 92, 000 करोड़ रुपए एमएसपी के तहत हुई थी.
ऐसे में एमएसपी इस समय जो सीधे पर तौर पर लागू हैं, उसके अनुसार 3.8 लाख करोड़ रुपए कीमत की फसल देश में पैदा होती है. जिसमें कानूनी तौर पर 23 फसलें एमएसपी के तहत कवर होती हैं. अगर यह कानून बन जाता है तो इन 23 फसलों की कीमत फिर 5 लाख करोड़ रुपए होगी. कम भी सकती है, वहीं सरकार द्वारा खरीदी जाने वाली फसल भी बेची जाती है, जिससे राजस्व आंशिक रूप से एमएसपी खरीद से होने वाले खर्च की भरपाई करता है. वहीं सरकारी एजेंसियों को मंडियों में आने वाले एक-एक अनाज को खरीदने की जरूरत नहीं है.