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मुसलमानों की जातियों का मुद्दा उठाकर PM मोदी ने पूछे 3 सवाल... BJP को मिली कांग्रेस की 'जाति जनगणना' वाले दांव की काट?

अब ''मुसलमानों की जाति'' को लेकर पूरे देश में राजनीति हो रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठाए हैं और मुसलमानों की जाति पर चुप्पी को लेकर पार्टी को घेरा है. उन्होंने तीन सवाल उठाए, जिसका पूरा विश्लेषण आप यहां पढ़ सकते हैं.

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पीएम मोदी (Photo: X/BJP)
पीएम मोदी (Photo: X/BJP)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज एक ''वर्चुअल कार्यक्रम'' में कांग्रेस को लेकर तीन बड़ी बातें कहीं, जिनमें पहली बड़ी बात ये है कि, पहला - हिन्दुओं को जातियों में बांटने वाली कांग्रेस कभी मुसलमानों की जातियां क्यों नहीं देखती? और कांग्रेस ने आज तक मुसलमानों की जातियों का कभी कोई जिक्र क्यों नहीं किया? दूसरा- कांग्रेस अपनी साम्प्रदायिक और जातिवाद की राजनीति से हिन्दू समाज को जातियों में तोड़ना चाहती है, और तीसरा- हिन्दू जितना बंटेगा, कांग्रेस को उतना ही फायदा होगा.

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प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान में बीजेपी की एक नई रणनीति छिपी है, जो कांग्रेस के जातिगत जनगणना के मुद्दे को कमजोर कर सकती है. अबतक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी लगातार हिन्दू की जातियों की बात करते थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार मुसलमानों की जातियों का मुद्दा उठाकर अब देश में एक नई बहस छेड़ दी है.

ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि हिन्दू धर्म की तरह इस्लाम धर्म में जातियां और जातियों के आधार पर भेदभाव नहीं होता, लेकिन हकीकत ये है कि भारत का जो मुस्लिम समाज है, वो कई जातियों में बंटा हुआ है और ये जाति व्यवस्था काफी हद तक वैसी ही है, जैसी हिन्दू धर्म में होती है.

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इस्लाम धर्म में दो सम्प्रदाय हैं, जिनमें एक है सुन्नी सम्प्रदाय और दूसरा है, शिया सम्प्रदाय है और ये सभी मुसलमान मुख्य रूप से जातियों के तीन समूहों में बंटे हुए हैं, जिनमें पहले समूह को अशराफ कहते हैं, दूसरे को अजलाफ कहते हैं और तीसरे समूह को अरजाल कहते हैं.

अशराफ समूह में कौन से मुसलमान आते हैं?

इनमें अशराफ समूह में सैयद, शेख, पठान, और मुगल जैसी जातियां आती हैं और इन जातियों को मुसलमानों में अगड़ी या ऊंची जाति का दर्जा मिला हुआ है. ये वो मुसलमान हैं, जो आक्रमणकारी थे और जो दूसरे देशों से भारत में आए थे. इनमें सैयद जाति के मुसलमानों को पैगम्बर मोहम्मद साहब का वंशज माना जाता है. शेख जाति के मुसलमानों को अरब के अल-कुरैश कबीले का वंशज माना जाता है, और पठान भी अफगानिस्तान के उच्च जाति के मुसलमान होते हैं.

अजलाफ समूह में कौन से मुसलमान आते हैं?

दूसरा वर्ग अजलाफ मुसलमानों का होता है, जिसमें अंसारी, मंसूरी, राइन, कुरैशी, गद्दी, इदरिसी, सिद्दिकी और फाकिर जैसी कई जातियां आती हैं... और इन्हें मध्यम वर्ग की जातियां माना जाता है। और ये वो मुसलमान हैं, जिन्हें भारत में धर्म परिवर्तन करके इस्लाम को अपनाया था। और इन्हें पसमांदा मुसलमान भी कहते हैं, जिसमें... पसमांदा का मतलब बैकवर्ड यानी पिछड़ा हुआ मुसलमान होता है और इन मुसलमानों की जातियों को OBC श्रेणी में आरक्षण भी मिलता है.

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इनमें कुरैशी जाति के मुसलमान मीट का व्यापार करते हैं और अंसारी जाति के ''मुसलमान'' प्रमुख रूप से कपड़ा बुनाई का काम करते हैं और ऐसा कहा जाता है कि अभी हिन्दुओं में जो स्थिति यादव, कोइरी और कुर्मी जैसी जातियों की है, वैसी ही स्थिति मुसलमानों में अंसारी, मंसूरी, राइन और कुरैशी जैसी जातियों की है.

अरजाल समूह में कौन से मुसलमान आते हैं?

तीसरा और आखिरी वर्ग अरज़ाल समूह के मुसलमानों का है, जिसमें हलालखोर, हवारी और रज्जाक जैसी जातियां शामिल हैं, और इन्हें मुसलमानों में दलितों जैसी जातियां मान सकते हैं. इन जातियों के मुसलमानों को पसमांदा मुसलमान भी कहते हैं, जिसका मतलब होता है, आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए मुसलमान, जिनके साथ जातियों के आधार पर काफी भेदभाव होता है.

अलग-अलग रिसर्च पेपर में बताया गया है कि जब भारत में दलित और पिछड़ी जाति के हिन्दू जातिगत भेदभाव से परेशान थे, तब उन्होंने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम को अपनाया था, और ये दलित और पिछड़े हिन्दू, ''मुसलमान'' बन गए थे. लेकिन मुसलमान बनने के बाद भी इनके साथ जातिगत भेदभाव खत्म नहीं हुआ और अगड़ी जाति के मुसलमानों ने इन पसमांदा और पिछड़े मुसलमानों को खुद से अलग कर दिया.

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर बताते हैं - जब भारत में मुगलों का शासन था, तब सैयद, शेख, पठान', मिर्ज़ा और मुगल जैसी अगड़ी जाति के मुसलमानों को बड़े पदों पर नियुक्त किया गया लेकिन जो दलित और पिछड़े हिन्दू धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बने थे, और जिन्हें निम्न जाति के मुसलमान माना जाता था, उन्हें मुगलों ने अपनी शासन व्यवस्था में बड़े पदों से हमेशा दूर रखा और भारतीय मुसलमानों में जातियों का ये भेदभाव आज भी मौजूद है.

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आज भी भारत में ज्यादातर कब्रिस्तान मुसलमानों की अलग अलग जातियों में बंटे हुए हैं और हलालखोर, हवारी और रज्जाक जैसी मुस्लिम जातियों को सैयद, शेख और पठान जैसी अगड़ी जातियों के कब्रिस्तान में दफनाने की जगह नहीं दी जाती. ज्यादातर कब्रिस्तान के बाहर ये लिखा होता है कि वो कब्रिस्तान किन जातियों के मुसलमानों को दफनाने के लिए हैं और यहां बात सिर्फ कब्रिस्तान की नहीं है.

जाति के ही आधार पर हमारे देश में कई मस्जिदें भी बनी हुई हैं और बहुत सारे गांव और इलाके भी मुसलमानों की अगड़ी और निम्न जातियों के आधार पर बंटे हुए हैं और इनमें भी निम्न और पिछड़ी जातियों के मुसलमानों के साथ काफी भेदभाव होता है, लेकिन दुख की बात ये है कि हमारे देश के नेता मुस्लिम वोटबैंक को साधने के लिए उन्हें तो जातियों में विभाजित नहीं करते लेकिन 80 पर्सेंट हिन्दुओं को सत्ता के लिए बार बार जातियों में बांटा जाता है, और जातिगत जनगणना कराने की मांग की जाती है.

हालांकि मुस्लिम जातियों के इन तीनों समूहों में एक कॉमन बात ये है कि, आजादी से पहले जब कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी कहा जाता था और मुस्लिम लीग को मुसलमानों की पार्टी कहा जाता था, तब मुसलमान कांग्रेस के खिलाफ थे. विभाजन के बाद जब पाकिस्तान बना, तब भारत के मुसलमान जनसंघ के खिलाफ हो गए, और जब जनसंघ ने बीजेपी का रूप लिया, तब मुसलमान एंटी-बीजेपी हो गए और कांग्रेस और दूसरे दलों का समर्थन करने लगे.

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आजकल राहुल गांधी बजट का हलवा खाने वाले सरकारी अधिकारियों से लेकर मिस इंडिया बनने वाली हिन्दू महिलाओं की जातियां पूछते हैं, लेकिन क्या आपने राहुल गांधी को कभी ये कहते सुना है कि फिल्म इंडस्ट्री में शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान तीनों अगड़ी जातियों से क्यों हैं और कोई पिछड़ी जाति का मुसलमान इतना बड़ा फिल्म स्टार क्यों नहीं है?

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जैसे हिन्दू धर्म में सिर्फ 15 पर्सेंट आबादी सवर्णों और अगड़ी जातियों के लोगों की है और बाकी आबादी दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों की है - ठीक उसी तरह से भारतीय मुसलमानों में भी अगड़ी जातियों के लोगों की आबादी सिर्फ 15 पर्संट है, जबकि मध्यम वर्ग की जातियों के मुसलमानों की आबादी 50 पर्सेंट है और पिछड़े मुसलमानों की आबादी 35 पर्सेंट है.

भारत में लगभग 85 पर्सेंट आबादी पसमांदा मुसलमानों की है, जिसमें निम्न जातियों के मुसलमान आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी पिछड़े हुए हैं और इन मुसलमानों के साथ दलित और पिछड़े हिन्दुओं के जैसा ही भेदभाव होता है, लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के विपक्षी नेता हिन्दुओं की जातियों की सोशल इंजीनियरिंग करते हैं. मुसलमानों की जातियों की कोई बात नहीं करते, और आज प्रधानमंत्री मोदी ने यही मुद्दा उठा कर कांग्रेस को एक बड़ी मुश्किल में डाल दिया है. उन्होंने पूछा है कि हिन्दुओं को जातियों में बांटने वाली कांग्रेस, मुसलमानों की जातियों की बात क्यों नहीं करती?
 
कांग्रेस ने अब तक प्रधानमंत्री मोदी के इस सवाल का जवाब नहीं दिया है लेकिन हम आपको ये बता सकते हैं कि इस सवाल का जवाब हरियाणा और जम्मू कश्मीर के नतीजों में छिपा हुआ है. अब हम इसी को आपके लिए डिकोड करेंगे? 

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क्या आपने कभी सोचा है कि अगर विपक्षी दल मुसलमानों की जातियों की बात करेंगे तो इसका क्या प्रभाव होगा? ऐसा होने पर मुसलमान अलग-अलग जातियों में विभाजित हो जाएंगे और राजनीतिक पार्टियों को उनका एकमुश्त वोट नहीं मिलेगा, और ये वैसा ही है, जैसे हिंदू अभी जातियों में विभाजित होकर वोट करते हैं और हिन्दुओं के वोट अलग अलग जातियों में बंट जाते हैं, 

अगर मुसलमान भी जातियों में विभाजित होकर वोट करेंगे तो उनके वोट भी अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों में बंट जाएंगे और यही कारण है कि, विपक्षी दल मुसलमानों को जातियों की जगह धर्म के नाम पर एकजुट रखने की कोशिश करते हैं, जिससे चुनावों में मुसलमानों का एकजुट वोट विपक्षी दलों को मिलता है, जबकि हिन्दुओं के वोट जातियों के कारण विभाजित हो जाते हैं.

हरियाणा की मुस्लिम बहुल सीटें, और कांग्रेस की जीत

उदाहरण के लिए, हरियाणा की 90 में से 4 विधान सभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिन्दू अल्पसंख्यक हैं और इन सभी चार सीटों पर कांग्रेस पार्टी को एकतरफा जीत मिली है. इनमें फिरोजपुर झिरका विधानसभा क्षेत्र में मुसलमानों की आबादी 80 पर्सेंट है और हिन्दुओं की आबादी 14 पर्सेंट है और इस मुस्लिम बहुल सीट पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा 72 पर्सेंट वोट मिले हैं.

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बीजेपी को सिर्फ 17.6 पर्सेंट वोट मिले हैं और इससे आप ये समझ सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी मुसलमानों की जातियों की इसलिए बात नहीं करती क्योंकि अगर वो ऐसा करेगी तो जातियों में विभाजित होने के कारण उसे मुसलमानों के एकजुट वोट कभी नहीं मिलेगा, लेकिन दूसरी तरफ हिन्दुओं को जातियों में इसलिए बांटा जाता है क्योंकि इससे हिन्दुओं के वोट अलग अलग राजनीतिक पार्टियों में बंट जाते हैं.

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जैसे, हरियाणा के जिस लोहारू विधानसभा क्षेत्र में 99.4 पर्सेंट हिन्दू हैं और सिर्फ 0.4 पर्सेंट मुस्लिम हैं, वहां हिन्दुओं के वोट जातियों में विभाजित होने के कारण बंट गए और कांग्रेस पार्टी इस सीट पर सिर्फ 792 वोटों से चुनाव जीत गई. यानी जिस फिरोजपुर झिरका में 80 पर्सेंट मुसलमान हैं, वहां कांग्रेस पूरे हरियाणा में सबसे ज्यादा 98 हजार वोटों के अंतर से चुनावों में जीती है और जिस लोहारू में 99.4 पर्सेंट हिन्दू हैं, वहां कांग्रेस हिन्दुओं के जातियों में बंटने के कारण 792 वोटों से चुनाव जीती है, और ऐसा नहीं है कि हिन्दुओं के जातियों में बंटने से सिर्फ कांग्रेस चुनाव जीतती है.

जिस उचाना कलां विधानसभा क्षेत्र में 95.7 पर्सेंट हिन्दू हैं और सिर्फ 1.7 पर्सेंट मुस्लिम हैं, वहां बीजेपी सिर्फ 32 वोटों से चुनाव जीती है. इससे ये पता चलता है कि जातियों में विभाजित होने के कारण हिन्दुओं के वोट अलग-अलग पार्टियों में बंट जाते हैं लेकिन धर्म के नाम पर मुसलमानों के वोट एकजुट रहते हैं और यही कारण है कि विपक्षी दल कभी मुसलमानों की जातियों की बात नहीं करते.

हरियाणा की जिस पुन्हाना सीट पर 88 पर्सेंट मुसलमान हैं और नूंह यानी मेवात में 77 पर्सेंट मुसलमान हैं, वहां कांग्रेस पार्टी ने 50 पर्सेंट ज्यादा वोटों के साथ चुनाव जीता है. इनमें भी पुन्हाना सीट पर बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवार मोहम्मद ऐजाज खान को टिकट दिया था लेकिन उन्हें 1 लाख 46 हजार वोटों में सिर्फ 5 हजार यानी 3 पर्सेंट वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई.

कांग्रेस को इस सीट पर लगभग 60 पर्सेंट वोट मिले, और इसी तरह फिरोजपुर झिरका में भी बीजेपी ने मुस्लिम नेता नसीम अहमद को टिकट दिया था, जिन्हें सिर्फ 17 पर्सेंट वोट मिले और कांग्रेस को 72 पर्सेंट वोट मिले. सोचिए, हमारे देश के कई लोग कहते हैं कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी है लेकिन सच्चाई ये है कि जब बीजेपी मुसलमानों को टिकट देती है तो वो मुस्लिम नेता भी मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनाव हार जाते हैं, और यहां बात सिर्फ हरियाणा की नहीं है.

जम्मू कश्मीर के जिस जम्मू क्षेत्र में 62.6 पर्सेंट हिन्दू हैं और 33.5 पर्सेंट मुस्लिम हैं, वहां बीजेपी ने हिन्दू बहुल जम्मू की 43 में से 29 सीटों पर चुनाव जीता है, जबकि हिन्दू बहुल जम्मू में ही फारुक अब्दुल्ला की नैशनल कॉन्फ्रेंस ने 7 और कांग्रेस ने एक सीट पर चुनाव जीता है, लेकिन जिस कश्मीर में मुसलमानों की आबादी 96.4 पर्सेंट है और हिन्दुओं की आबादी सिर्फ 2.5 पर्सेंट है, उस कश्मीर में बीजेपी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली है.

बीजेपी ने कश्मीर की 47 में से 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन फारूक अब्दुल्लाह की पार्टी ने कश्मीर में सबसे ज्यादा 39 में से 35 सीटें जीती हैं और कांग्रेस ने 9 में से 5 सीटें जीती हैं.

जम्मू कश्मीर में बनेगी एनसी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार

अब जम्मू कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार बनने वाली है. इन आंकड़ों से दो बातें पता चलती हैं...

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पहली बात - देश के मुसलमानों में इस बात की स्पष्टता है कि वो चुनावों में किस पार्टी को अपना वोट देना चाहते हैं, जबकि हिन्दू जातियों में बंटे होने के कारण आज भी कन्फ्यूज्ड हैं और यही वजह है कि ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर विपक्षी दलों के लिए चुनाव एकतरफा होता है. हिन्दू बहुल सीटों पर हिन्दुओं के वोट बंटने से चुनाव कांटे का बन जाता है.

दूसरा- मुसलमानों में ये स्पष्टता इसलिए है क्योंकि मुसलमान अभी धर्म के आधार पर वोट करते हैं और विपक्षी दल भी मुसलमानों को खतरे में बताकर उन्हें धर्म के नाम पर एकजुट करने का प्रयास करते हैं, लेकिन जिस दिन मुसलमानों की जातियों राजनेताओं के लिए मुद्दा बन गई तो उस दिन से मुसलमानों के वोट भी जातियों में विभाजित हो जाएंगे. इससे राजनीतिक पार्टियों को काफी नुकसान होगा और यही वजह है कि ये पार्टियां मुसलमानों की जातियों की बात नहीं करते.

अलगाववादी नेताओं की जमानत जब्त

आज आपको ये भी देखना चाहिए कि जम्मू कश्मीर के मुसलमानों ने कैसे बड़े-बड़े अलगाववादी नेताओं की चुनावों में जमानत ज़ब्त करवा दी? आतंकवादी अफजल गुरु के भाई ऐजाज अहमद गुरु ने कश्मीर की सोपोर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे NOTA से भी कम सिर्फ 129 वोट मिले और उसकी जमानत जब्त हो गई जबकि सोपोर सीट पर 97.6 पर्सेंट मुस्लिम वोटर्स हैं.

इसी तरह टेरर फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार हुए अलगाववादी नेता सरजन बरकती ने कश्मीर की दो सीटों से चुनाव लड़ा था, जिनमें गांदरबल सीट पर उसे सिर्फ 438 वोट मिले और उसकी जमानत जब्त हो गई और बीरवाह सीट पर उसे 12 हजार वोट मिले और ये अलगाववादी नेता लगभग 8 हजार वोटों से चुनाव हार गया. इस बार जम्मू कश्मीर के प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी के भी 10 अलगावादी नेताओं ने चुनाव लड़ा था, जिनमें से 8 की जमानत जब्त हो गई, जबकि ये सभी अलगाववादी नेता कश्मीर की मुस्लिम बहुल सीटों से चुनाव लड़ रहे थे.

इनमें सोपोर की सीट भी शामिल है, जहां से अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी तीन बार विधायक चुने गए थे, लेकिन जमात के अलगाववादी उम्मीदवार को इस बार सोपोर में सिर्फ 406 वोट मिले. इसी तरह लोकसभा चुनावों में उमर अब्दुल्ला को हराने वाले राशिद इंजीनियर की पार्टी ने 36 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 31 सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. राशिद इंजीनियर के भाई शेख खुर्शीद ही इन चुनावों में अपनी सीट से जीत पाए. हालांकि राशिद इंजीनियर के सांसद बनने के बाद उनके भाई का विधायक बनना भी हैरानी की बात है.

इनके अलावा ऐसा भी नहीं है कि मुसलमान बीजेपी को बिल्कुल वोट नहीं देते. जम्मू की जिस किश्तवाड़ सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या 70 पर्सेंट है, वहां बीजेपी की शगुन परिहार ने चुनाव जीता है और शगुन परिहार के पिता और चाचा को आतंकवादियों ने वर्ष 2018 में गोली मारकर हत्या कर दी थी. हालांकि उनकी जीत का अंतर सिर्फ 521 वोटों का रहा है, जिसका मतलब ये है कि उन्हें कुछ मुसलमानों ने अपना वोट दिया था, जिसकी वजह से वो इन चुनावों में जीत पाई.

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क्या जम्मू कश्मीर में धारा 370 बहाल किया जा सकता है?

आज बहुत सारे लोग ये भी जानना चाहते हैं कि, क्या जम्मू कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने से अनुच्छेद 370 को बहाल किया जा सकता है? जम्मू कश्मीर के नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा है कि उनकी पार्टी अनुच्छेद 370 का समर्थन करती है और वो इसे जम्मू कश्मीर में फिर से लागू कराने का प्रयास करेंगे.

हालांकि, भारत का संविधान कहता है कि जम्मू कश्मीर की नई सरकार बिना केन्द्र सरकार की सहमति के अनुच्छेद 370 को लागू नहीं करा सकती, और अनुच्छेद 370 की वापसी तभी हो सकती है, जब केन्द्र सरकार में विपक्षी दलों की ऐसी सरकार बनेगी, जो इसके पक्ष में होगी.

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