केरल के कासरगोड जिले के एक मुस्लिम जोड़े ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दोबारा आपस में शादी की है. लेकिन इस बार उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अपनी बेटियों की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ये शादी की है. इस कदम से उन्हें सोशल मीडिया पर आलोचना और प्यार दोनों ही मिले हैं. दंपति, जिनका निकाह 6 अक्टूबर, 1994 को हुआ था, ने बुधवार सुबह कासरगोड जिले के होसदुर्ग तालुक के कान्हागढ़ में एक सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में दोबारा शादी कर ली.
'ये मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लाम का अपमान'
एडवोकेट और अभिनेता सी शुक्कुर, जिन्हें कुंचाको बोबन अभिनीत फिल्म 'नना थान केस कोडू' (फिर मुझ पर मुकदमा करो) में एक वकील के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है, ने बुधवार को अपनी पत्नी शीना - महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर से दोबारा शादी की. उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम (SMA) के तहत अपनी तीनों बेटियों के सामने पुनर्विवाह किया. हालाँकि, केरल के एक प्रमुख सुन्नी उच्च शिक्षा संस्थान ने कहा कि ये मुस्लिम पर्सनल लॉ और इस्लाम का अपमान करने का एक प्रयास था.
'ये ड्रामा और संकीर्ण सोच का संकेत'
संस्थान ने कहा कि पुनर्विवाह एक "ड्रामा" था और "संकीर्ण सोच" का संकेत था. ऐसा इसलिए किया गया ताकि शुक्कुर के भाइयों को उनकी मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा नहीं मिल सके. दंपति ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पुनर्विवाह करने का फैसला किया क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत संपत्ति के उत्तराधिकार में बेटियों को अपने पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा मिलता और बाकी पुरुष उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में उनके भाइयों के पास जाता.
'अगर सारी संपत्ति बेटियों को ही देनी थी तो...'
संस्थान का विचार था कि हर कोई इनके फैसले का कड़ा विरोध करेगा. संस्थान ने अपने बयान में यह भी आरोप लगाया कि शुक्कुर अपने फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं और इससे वास्तविक विश्वासियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इसमें आगे कहा गया है कि अगर वकील अपनी सारी संपत्ति अपनी बेटियों के लिए छोड़ना चाहते हैं, तो इसे अपने जीवनकाल में क्यों नहीं बांट देते.
सोशल मीडिया पर बधाइयों का तांता
वहीं शुक्कुर ने अपने फेसबुक पेज पर यह कहते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की कि यदी उनपर कोई शारीरिक हमला होता है तो शैक्षणिक संस्थान उसके लिए जिम्मेदार होगा. शुक्कूर ने यह भी कहा कि उनके निर्णय का उद्देश्य किसी भी धार्मिक विश्वास का अनादर करना या विश्वासियों के मनोबल को तोड़ना नहीं था और इसलिए, किसी भी विरोध की कोई आवश्यकता नहीं थी. इस बीच दंपति के फैसले के समर्थन में सोशल मीडिया पर बधाइयों का तांता लग गया. इधर, दंपति के कदम का समर्थन करने वालों ने भी सुन्नी उच्च शिक्षा संस्थान के बयान की निंदा की.