
कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी सरकार ने राज्य में मुस्लिम आरक्षण खत्म कर दिया है. मुस्लिमों को मिल रहे 4 फीसदी आरक्षण को खत्म कर इस कोटे को वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के बीच 2-2 फीसदी बांटा गया है. इस तरह से वोक्कालिगा का आरक्षण 4 फीसदी से बढ़कर 6 फीसदी हो गया है, तो लिंगायत समुदाय के आरक्षण का दायरा 5 से बढ़कर 7 फीसदी हो गया है. मुस्लिम समुदाय को अब आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानि ईडब्ल्यूएस (EWS) कोटे के तहत आरक्षण मिलेगा.
हालांकि, बोम्मई सरकार के कदम के बाद ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में सभी मुसलमानों को मिलने वाला आरक्षण पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है, बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत कैटेगरी वन और कैटेगरी ए-2 में आने वाली मुस्लिम जातियों के लोगों को पहले की तरह ही आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा.
मुस्लिम आरक्षण की कैटेगरी
कर्नाटक में मुसलमानों को तीन कैटेगरी में आरक्षण का लाभ मिलता है. पहली कैटेगरी पिछड़ा वर्ग-वन में, दूसरी कैटेगरी अन्य पिछड़ा वर्ग ए-2 और तीसरी कैटेगरी बी-2 के तहत. राज्य की बोम्मई सरकार ने मुस्लिमों को बी-2 के तहत मिलने वाले आरक्षण का खत्म किया है.
पहली कैटेगरी- ओबीसी-वन में चार फीसदी आरक्षण का लाभ पिछड़ा वर्ग को मिलता है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम की कुल 95 जातियां आती हैं. इसमें करीब आठ मुस्लिम जातियां शामिल हैं, जिसमें फुलवारी, मंसूरी, बंजारा, छपरबंद, कसाब, जोगी पिंजारा और दोरजी जैसी व्यावसायिक जातियां है. इन्हें पेशे के आधार पर ओबीसी में रखा गया है.
दूसरी कैटेगरी- ओबीसी की ए-2 है, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आने वाली जातियों को 15 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है. इसमें 102 व्यावसायिक उप-जातियां शामिल हैं, जिसमें 12 से 15 मुस्लिम जातियां भी आरक्षण का लाभ उठा रही है. लोहार, गुर्जर, दर्जी, अंसारी, रंगरेज, तेली और राजपूत जैसी मुस्लिम जातियां शामिल हैं.
तीसरी कैटेगरी- B-2 में मुस्लिम समुदाय को 4 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता रहा है. इसके तहत मुस्लिम समुदाय की सामान्य जातियां और ओबीसी की कुछ जातियां शामिल थीं. इस तरह से कर्नाटक में सभी मुस्लिम जातियां आरक्षण का लाभ उठा रही थीं. बोम्मई सरकार ने बी-2 के तहत मिलने वाले आरक्षण का खत्म किया है.
देवगौड़ा राज में मुस्लिम आरक्षण
कर्नाटक में ओबीसी के तहत मुस्लिमों को मंडल कमीशन के बाद ही आरक्षण मिलने लगा था, लेकिन निजी तौर पर मुस्लिमों को देवगौड़ा सरकार में 4 फीसदी आरक्षण दिया गया था. 1994 में एचडी देवगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने तो मुसलमानों को आरक्षण देने का कदम 1995 में उठाया. आरक्षण की कैटेगरी बी-2 बनाकर अलग से मुस्लिमों को 4 फीसदी आरक्षण का प्रावधान रखा.
पिछले 24 सालों से कर्नाटक में मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ मिल रहा था, लेकिन बोम्मई सरकार ने इसे खत्म कर उन्हें EWS कोटे में डाल दिया है. ओबीसी के सेक्शन वन और ए-2 में जो मुस्लिम समुदाय के अति पिछड़े वर्ग की उपजातियां हैं, उनको उसी तरह रखा गया है. उनको आरक्षण का लाभ पूर्ववत मिलता रहेगा. इनके आरक्षण में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है.
कर्नाटक में मुस्लिम आबादी
कर्नाटक में मुस्लिमों की आबादी करीब 16 फीसदी है. हैदराबाद से सटे हुए कर्नाटक के गुलबर्गा में अच्छी-खासी आबादी है. इसके अलावा मेंगलुरु, भटकल, उडुपी मुरुदेश्वर में मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं, तो ओल्ड मैसूर के क्षेत्र में भी मुस्लिम प्रभाव रखते हैं. कर्नाटक की वोटिंग पैटर्न देखें तो मुस्लिम समुदायों का वोट कांग्रेस और जेडीएस को पड़ता रहा है. कर्नाटक में इस बार बीजेपी लगातार ऐसे मुद्दे उठा रही है जो राज्य की राजनीति में ध्रुवीकरण को बढ़ा सकते हैं. हिजाब से लेकर अजान और मुस्लिम आरक्षण तक को लेकर कर्नाटक की सियासत गर्म है.
मुस्लिमों को अलग से मिल रहे चार फीसदी आरक्षण को खत्म करने के पीछे बीजेपी का तर्क है कि भारतीय संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसीलिए मुस्लिमों का चार फीसदी कोटा खत्म कर दिया गया है.
चार राज्यों में मुस्लिम आरक्षण
देश के चार राज्यों में फिलहाल मुस्लिमों को आरक्षण मिल रहा है और ये सभी दक्षिण भारत के हैं. तमिलनाडु में साढ़े तीन फीसदी आरक्षण मुस्लिमों को मिलता है, लेकिन यह ओबीसी कोटे के तहत है. केरल में 10 फीसदी आरक्षण मुस्लिमों को मिलता है तो आंध्र प्रदेश में चार फीसदी मुस्लिम आरक्षण का प्रावधान हैं.
इसके अलावा देश के बाकी राज्यों में मुस्लिमों की ओबीसी जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत मिलने वाले कोटे से आरक्षण मिलता है. महाराष्ट्र में पांच फीसदी मुस्लिम आरक्षण की मांग लंबे समय से चल रही है. सच्चर कमेटी के रिपोर्ट के बाद रंगनाथ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिमों को अलग से आरक्षण देने की सिफारिश की थी.
कर्नाटक में आरक्षण का दायरा
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण सीमा तय कर रखी है, लेकिन कर्नाटक में फिलहाल करीब 56 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. ये मुद्दा पहले से ही कर्नाटक उच्च न्यायालय में विचाराधीन है, क्योंकि बोम्मई सरकार ने एससी और एसटी समुदाय के आरक्षण के दायरे को बढ़ा दिया था.
पहले कर्नाटक में कर्नाटक में 50 फीसदी आरक्षण था. अनुसूचित जातियों के लिए 15 फीसदी, एसटी के लिए 3 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 32 फीसदी. ओबीसी के 32 फीसदी आरक्षण को कई कैटेगरी में बंटा हुआ है- पिछड़ा वर्ग को वन श्रेणी में 4 फीसदी, अन्य पिछड़ा वर्ग को ए-2 कैटेगरी में 15 फीसदी, मुसलमानों को बी-2 कैटेगरीमें 4 फीसदी, वोक्कालिगा को ए-3 में 4 फीसदी, लिंगायत-मराठा को 5 फीसदी था.
कर्नाटक में एस और एसटी समुदाय के आरक्षण का दायरा सरकार ने पिछले दिनों बढ़ा दिया था, जिसके बाद मामला कोर्ट में चला गया था. इसके बाद भी आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़कर 56 फीसदी हो गई थी, क्योंकि एससी समुदाय के 15 फीसदी को बढ़ाकर 17 और एसटी समुदाय के आरक्षण को 3 फीसदी से बढ़ाकर 7 कर दिया था.