scorecardresearch
 

Explainer: मॉन की घटना से नागा वार्ता पर संशय, जानें- क्या है दशकों पुराना विवाद?

अब ये नागा वार्ता समझने के लिए ये जानना ज्यादा जरूरी हो जाता है कि नागालैंड का इतिहास क्या रहा है. ऐसी क्या वजह है कि यहां पर शांति स्थापित करने के लिए वार्ताएं आयोजित करनी पड़ जाती हैं. इन सभी सवालों का जवाब इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है जो आजादी के समय से लिखे गए हैं.

Advertisement
X
जानें क्या है दशकों पुराना नगा विवाद
जानें क्या है दशकों पुराना नगा विवाद
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नागालैंड का पूरा इतिहास जो समझाता विवाद
  • समझौते, सीमा विवाद और उग्रवाद पर नजर
  • AFSPA कानून और सरकार की पहल की समीक्षा

नागालैंड का मॉन जिला अभी तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहा है. पुलिस की भारी तैनाती है, इंटरनेट बंद है और लोगों के बीच डर और आक्रोश दोनों देखने को मिल रहा है. ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि सुरक्षाबलों की गोली का शिकार 14 आम नागरिक हो गए. घटना के बाद से ही जमकर बवाल काटा जा रहा है. प्रदर्शन हो रहे हैं और सभी कह रहे हैं कि इससे नागा वार्ता प्रभावित हो जाएगी.

Advertisement

अब ये नागा वार्ता समझने के लिए ये जानना ज्यादा जरूरी हो जाता है कि नागालैंड का इतिहास क्या रहा है. ऐसी क्या वजह है कि यहां पर शांति स्थापित करने के लिए वार्ताएं आयोजित करनी पड़ जाती हैं. इन सभी सवालों का जवाब इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है जो आजादी के समय से लिखे गए हैं.

नागालैंड का पूरा इतिहास

जब देश आजाद होने की तैयारी कर रहा था, तब सबसे बड़ी चुनौती थी कई रियासतों को एक करना, अखंड भारत की परिकल्पना. अब सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों के दम पर ज्यादातर रियासतें भारत के साथ आ गई थीं लेकिन नॉर्थ-ईस्ट के जो राज्य थे वो साथ आने को तैयार नहीं हो रहे थे. ऐसे में जब बातचीत शुरू हुई तो कई राज्यों ने सहमति भर दी लेकिन नागालैंड फिर भी अलग ही रहा. उस समय नागालैंड को स्वतंत्र रखने का जिम्मा अंगामी जापू फिजो ने अपने कंधों पर ले रखा था. उन्होंने ही नेशनल काउंसलि का गठन 1946 में किया था. उनकी मांग स्पष्ट थी कि नागालैंड को एक अलग देश बना दिया जाए.

Advertisement

उस समय इस बात पर भी विवाद था कि नागालैंड की असल सीमा कितनी मानी जाए. दरअसल अंगामी जापू फिजो हमेशा से मानते रहे कि जब अंग्रेजों की हुकूमत थी, तब नागालैंड के कई जिले असम को दे दिए गए. ऐसे में मांग ये रही कि उन जिलों को वापस नागालैंड में मिलाया जाए. लेकिन असम की तरफ से कभी इस मांग को नहीं माना गया और हमेशा इसे तथ्यहीन तर्क बता दिया गया. वहीं तब के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी अंगामी जापू फिजो की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया था.

जब नागालैंड ने दी सरकार को चुनौती

ऐसे में नागालैंड के अंदर विद्रोह के सुर काफी तेज थे. बगावत चरम पर थी और किसी भी कीमत पर स्वतंत्रता चाहिए थी. फिर 1956 में शनल काउंसलि ने भारत सरकार को सीधी चुनौती दे डाली. ये चुनौती दो तरीके से दी गई. पहले तो नागा फेडरल गवर्नमेंट यानी एनएफजी का गठन कर दिया गया. वहीं दूसरी तरफ एक फेडरल आर्मी का भी गठन हो गया.  

अब क्योंकि चुनौती सीधी दी गई, ऐसे में तब सरकार ने भी अपने कदम पीछे नहीं खीचे और वहां पर भारतीय सेना को भेज दिया गया. लेकिन ये तकरार ज्यादा लंबी नहीं चल पाई. चार साल बाद यानी की 1960 दोनों भारत सरकार और नागा पीपुल्स कन्वेंशन बातचीत की टेबल पर आए और कई मुद्दों पर मंथन शुरू हुआ. बताया जाता है कि तब कुल 16 बिंदुओ पर समझौता हुआ था. लेकिन बाद में यहीं समझौते विवाद का भी कारण बन लिए और अब हर सरकार उन्हीं को सुलझाने में लगी रहती है.

Advertisement

वो समझौता जो आज भी बवाल की वजह

एक समझौता ये रहा कि असम में शामिल नागालैंड के जिलों को वापस कर दिया जाएगा. ये सबसे ज्यादा विवादित पहलू रहा क्योंकि असम ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया और नागालैंड के संगठनों ने इसे वादा खिलाफी करार दिया. इस वजह से कई बार असम और नागालैंड के बीच भी हिंसक घटनाएं देखने को मिलती रही हैं. असम भी आरोप लगाता है कि उनके कुछ इलाकों पर नागालैंड अपना कब्जा करने की कोशिश में रहता है.

इसके बाद 1963 में नागालैंड को भारत का 16वां राज्य बना दिया गया. 1964 में यहां पर लोकतंत्र ने भी दस्तक दे दी जब पहली बार चुनाव हुए. लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी नागालैंड में उग्रवादी गतिविधियां चरम पर रहीं. स्वतंत्रता, अलग झंडे और संविधान जैसी मांगे भी उठती रहीं. इसी उग्रवादी गतिविधियों का अंजाम रहा कि 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड खड़ा हो गया. इस संगठन के उग्रवादी तब भी हिंसा करते थे और आज भी ये हिंसा पर पूरा भरोसा दिखाते हैं. इस बार भी जब मोन जिले में सुरक्षाबल अपनी कार्रवाई करने गए तो इन्हीं नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के उग्रवादियों को पकड़ने की तैयारी थी. लेकिन इटेंलिजेंस इनपुट में चूक हुई और आम नागरिक मारे गए.

Advertisement

युद्धविराम से कितनी बदली तस्वीर?

ऐसे में नागालैंड में 1997 तक बड़े स्तर पर हिंसा का दौर जारी रहा. 1997 में स्थिति थोड़ी इसलिए बदली क्योंकि तक सरकार की तरफ से एनएससीएन (आई-एम) संग युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. उस समझौते के बाद हिंसा में कुछ कमी जरूर आई लेकिन मौके-मौके पर घटनाएं होती रहीं. लेकिन फिर जब 2014 में प्रधानमंत्र मोदी सत्ता में आए, नागालैंड को फिर प्राइम फोकस में रखा गया. 2015 में एनएससीएन के मुइवा गुट के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हो लिए. फिर दो साल बाद कई विरोध करने वाले संगठनों को शांति समझौते में शामिल कर लिया गया. लेकिन अभी तक उस समझौते के सभी बिंदू स्पष्ट नहीं हैं. एनएससीएन भी यही कह रही है कि सकारात्मक पहल की उम्मीद थी, लेकिन समझौते को लेकर कुछ किया नहीं गया.

AFSPA का क्यों हो रह विरोध?

अब नागालैंड की इस पूरे इतिहास में एक पहलू AFSPA का भी जिसको लेकर आजकल राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त बवाल है. AFSPA का मतलब होता है सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून. दूसरे शब्दों में समझे तो AFSPA अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है. ऐसे क्षेत्रों में सेना के पास बिना वारंट गिरफ्तार करने की ताकत रहती है और कई मामलों में बल प्रयोग भी किया जा सकता है. 1972 में AFSPA को असम, मिजोरम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश,  और नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू कर दिया गया था. अब एक वर्ग का तर्क है कि अगर नागालैंड में AFSPA लागू नहीं होता तो शायद सेना के पास कार्रवाई करने की वैसी ताकत भी नहीं होती और निर्दोष लोगों की जान भी नहीं जाती. ऐसे में मांग उठ पड़ी है कि नागालैंड, असम और पूर्वोतर के दूसरे राज्यों से AFSPA कानून को हटाया जाए. सरकार ने इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है.

Advertisement

ये भी पढ़ें

Live TV

 

Advertisement
Advertisement