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Farm Laws Repeal: तीनों कृषि कानून हुए वापस, पहले देश में ऐसा था कॉन्ट्रैक्ट पर खेती का पैटर्न!

किसानों के लंबे आंदोलन के आगे झुकते हुए केन्द्र सरकार ने तीनों कृषि कानून शुक्रवार को वापस ले लिए. इसमें एक बड़ा विवाद का मुद्दा कॉन्ट्रैक्ट खेती से जुड़े कानून को लेकर था, जिसके बारे में किसान संगठनों का कहना था कि ये पूरी तरह से कॉरपोरेट के पक्ष में बनाया गया कानून है, लेकिन इस कानून के बनने से पहले भी देश में कॉन्ट्रैक्ट खेती होती थी, जानें क्या था उसका पैटर्न

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तीनों कृषि कानून हुए वापस (Representative Photo : Reuters)
तीनों कृषि कानून हुए वापस (Representative Photo : Reuters)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सरकार ने 2020 में 3 नए कृषि कानून पारित किए थे
  • कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून के प्रावधानों लेकर नाराजगी

किसानों के लंबे आंदोलन के आगे झुकते हुए केन्द्र सरकार ने तीनों कृषि कानून शुक्रवार को वापस ले लिए. इसमें एक बड़ा विवाद का मुद्दा कॉन्ट्रैक्ट खेती से जुड़े कानून को लेकर था, जिसके बारे में किसान संगठनों का कहना था कि ये पूरी तरह से कॉरपोरेट के पक्ष में बनाया गया कानून है, लेकिन इस कानून के बनने से पहले भी देश में कॉन्ट्रैक्ट खेती होती थी, जानें क्या था उसका पैटर्न

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क्या होती है कॉन्ट्रैक्ट खेती?

भारत में कॉन्ट्रैक्ट खेती के पैटर्न को समझने से पहले ये जानना जरूरी है कि ये होता क्या है. आसान भाषा में समझें तो इस तरह की खेती में किसान और उसकी उपज के खरीदार के बीच पहले से एक समझौता होता है. इस समझौते में खेती करने के तरीके से लेकर, उसकी खरीद और कीमत तक के लिए नियम शर्तें तय होती हैं. इसमें कई बार खरीदार किसान को बीज-खाद से लेकर खेती के लिए बाकी जरूरी सामान उपलब्ध कराता है और फिर उपज के दाम में से उसे काट लेता है. कई बार बड़ी कंपनियां इस काम में सीधे शामिल नहीं होती और किसी स्थानीय डीलर की मदद से इसे पूरा करती हैं.

नए कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून से आपत्ति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 2020 में तीन नए कृषि कानून पारित किए थे. इनमें से एक कानून कॉन्ट्रैक्ट खेती से भी जुड़ा था, किसानों के बीच नाराजगी का एक बड़ा कारण इसी कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून से जुड़े प्रावधान थे, जिसमें सबसे बड़ी नाराजगी कॉन्ट्रैक्ट खेती के दौरान होने वाले विवादों के समाधान को लेकर थी. 2020 के कॉन्ट्रैक्ट खेती कानून के हिसाब से किसान और खरीदार के बीच किसी भी तरह का विवाद उत्पन्न होने की स्थिति में उस क्षेत्र के एसडीएम को इसके निपटारे के अधिकार दिए गए थे और किसान संगठनों का कहना था कि ये विवाद की स्थिति में उनके न्याय के अधिकार को कम करता है.

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लेकिन ऐसा नहीं है कि देश में 2020 के कृषि कानून आने से पहले कॉन्ट्रैक्ट खेती नहीं होती थी या इसे लेकर कोई कानून नहीं था.

पहले ये था कॉन्ट्रैक्ट खेती का पैटर्न

पंजाब में बड़ी जोत के किसानों की अच्छी खासी संख्या है. इसलिए वहां जब कॉन्ट्रैक्ट खेती की शुरुआत हुई तो 2013 में वहां की राज्य सरकार ने किसानों के हित की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाया. इसी के आधार पर बाद में केन्द्र सरकार ने 2018 में एक मॉडल एक्ट बनाया जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से ही जुड़ा था. इस कानून में किसान को उसकी जमीन की सुरक्षा और कॉन्ट्रैक्ट खेती की उपज की खरीद में कीमतों को लेकर सुरक्षा प्रदान करने के प्रावधान जोड़े गए. 

पंजाब के कानून में जहां समझौते की शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में दोनों पक्ष को जेल भेजने का प्रावधान रखा गया, तो वहीं 2018 के कानून में एक विवाद निपटान प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव किया था. इसी के साथ इसकी अपील के लिए भी एक व्यवस्था बनाने की बात कही गई. कॉन्ट्रैक्ट खेती के 2020 के कानून में किसानों की नाराजगी सबसे ज्यादा इसी बात को लेकर रही.

सबसे बड़ी बात ये है कि केन्द्र सरकार के मॉडल एक्ट-2018 बनाने से पहले ही देश के करीब 20 राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश अपने कृषि उपज विपणन समिति (APMC) कानून में बदलाव कर चुके थे.

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