हजारों वर्षों के प्राचीन भारतीय ज्ञान को विद्वानों के द्वारा पांडुलिपियों में उकेरा गया था, लेकिन बीतते वक्त के साथ इनके संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान न देने की वजह से इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार न हो सका. जिसके चलते ज्ञान का भंडार होने के बावजूद यह पांडुलिपियां ग्रंथालयों और संग्रहालयों में धूल फांकती रह गईं. देर ही सही तमाम विषयों के ज्ञान को समेटी इन पांडुलिपियों को सहेजने का बीड़ा भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय ने उठा लिया है. इस कड़ी में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की टीम वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय पहुंची. जहां 11वीं शताब्दी से लेकर लगभग 300 साल पुरानी सवा लाख पांडुलिपियों को सहेजने का काम शुरू हो गया है.
ये प्राचीन ग्रंथ हैं शामिल
श्रीमद्भागवतम् (पुराण) संवत-1181 देश की प्राचीनतम कागज आधारित पाण्डुलिपि, भगवद्गीता - स्वर्णाक्षरों में लिपि, दुर्गासप्तशती कपड़े के फीते पर दो इन्च चौड़ाई रील में अतिसूक्ष्म (संवत 1885 मैग्नीफाइड ग्लास से देखा जा सकता है), रासपंचाध्यायी (सचित्र)- पुराणोतिहास विषय से युक्त-देवनागरी लिपि (स्वर्णाक्षर युक्त) इसमें श्रीकृष्ण जी के सूक्ष्म चित्रण निहित, कमवाचा (त्रिपिटक पर अंश), वर्मी लिपि- लाख पत्र पर स्वर्ण पॉलिश, ऋग्वेद संहिता भाष्यम इसके साथ ही लाह, भोजपत्र, कपड़ा काष्ठ सहित कागज पर लिपिबद्ध पांडुलिपियां शामिल हैं.
विभिन्न लिपियों में लिपिबद्ध हैं पांडुलिपियां
इसके साथ ही ये पांडुलिपिया देवनागरी, खरोष्ठी, मैथिली, उड़िया, गुरुमुखी,तेलगु, कन्नड़ और संस्कृत की विभिन्न लिपियों में लिखी गई हैं. लगभग ऐसी सवा लाख दुलर्भ पांडुलिपियां वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन पुस्तकालय में संरक्षित हैं. इन्हीं खास पांडुलिपियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन पहुंची. खास बातचीत में संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि लंबे समय से विवि की लाइब्रेरी में सभी पांडुलिपियां धूल फांक रही थीं. इसको सहेजने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की टीम आई है.
3 साल तक चलेगा काम
अब लगभग 3 साल तक सवा लाख पांडुलिपियों को सहेजने का काम होगा. जिसको प्रशिक्षण प्राप्त 40 लोगों की टीम अंजाम देगी. संरक्षण के बाद सवा लाख पांडुलिपियां न केवल वर्तमान, बल्कि अगली पीढ़ी और देश के भी काम आएगी. उन्होंने आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए 5 करोड़ रुपए मिले हैं. जो पहले चरण के काम के लिए है. आगे इसमें और दो चरण हैं.
संपूर्णानंद संस्कृत विवि में सहेजी जाएंगी पांडुलिपियां
पांडुलिपियों को सहेजने के लिए विवि पहुंचे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक डा. अनिर्वाण दास ने खास बातचीत में बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा पांडुलिपियों में निहित है. पांडुलिपि मिशन ने पिछले दो दशक से 52 लाख पांडुलिपियों का सूचीकरण किया है. अब आगे तीन साल तक वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विवि में सवा लाख पांडुलिपियों के सहेजने के लिए आए हैं.
पूरे देश में 52 लाख पांडुलिपियां
उन्होंने बताया कि इसमें वैदिक परंपरा, उपनिषद, न्याय और 64 कलाओं की भी पांडुलिपियां है. उन्होंने बताया कि पूरे देश में लगभग 52 लाख पांडुलिपियों का पता चला है. लेकिन कई पांडुलिपियां सूचिबद्ध नहीं हुई है. इस तरह पूरे देश में एक करोड़ से ज्यादा पांडुलिपियां मौजूद है. उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों का संरक्षण क्यूरेटिव और प्रिवेंटिव तरीके से किया जाएगा. इससे पांडुलिपि का लाइफ बढ़ जाएगी. संरक्षण से सबसे ज्यादा फायदा छात्रों को होगा जो इसपर रिसर्च कर पाएंगे. भारत में प्रादेशिक भाषाओं में भी पांडुलिपियां है. इनको डिजिटलीकरण करके संरक्षण किया जाएगा. अब समय आ गया है जब ऐसी पांडुलिपियां सभी के सामने लाई जाएगी