देश के कई हिस्से इस वक्त भारी बारिश से जूझ रहे हैं. रविवार से अब तक कई राज्यों में हुई बारिश के बाद तबाही की तस्वीरें सामने आ रही हैं. बारिश के बाद जाम की स्थिति भी बन रही है. इस आसमानी आफत से बीते दो दिन में पंजाब और हरियाणा में 9 की मौत, राजस्थान में 7 की मौत, दिल्ली में 5 की मौत, उत्तराखंड में 5 की मौत तो हिमाचल प्रदेश में 17 लोगों की जान चली गई.
यह तो दो दिन का आंकड़ा है. बीते 24 जून से 9 जुलाई शाम 6 बजे तक की बात की जाए तो मानसून सीजन के दौरान हिमाचल प्रदेश में अब तक 72 लोगों की मौत की खबर है. 8 लोग लापता हैं, जबकि 94 लोग घायल हुए हैं. इस दौरान भूस्खलन की 39 घटनाएं सामने आई हैं. 1 जगह बादल फटा और 29 जगहों पर अचानक बाढ़ आ गई.
अधिकारियों के घिसे-पिटे जवाब
जब भी ऐसा होता है, इलाके के स्थानीय अधिकारी से लेकर जिले के जिलाधिकारी और प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों तक के जवाब कुछ घिसे पिटे ही होते हैं. सबके जवाब वही रहते हैं कि बारिश ही इतनी हुई क्या किया जा सकता है. ऐसे में एक सवाल उठता है कि वाकई में कुछ नहीं किया जा सकता?
इसलिए सरकारों से यह सवाल पूछा जाना जरूरी है कि क्या इस बार भी कुदरत जिम्मेदार या फिर लापरवाही का काम है और कुदरत बदनाम है? टूटते घरों, बहते पुलों, सैलाब के आगे सरेंडर करते हुए शहरों और पत्ते की तरह तैरती कारों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए? हिमाचल प्रदेश में इस वक्त पांच हजार करोड़ से ज्यादा की तबाही मच चुकी है. मुख्यमंत्री तक अपील कर रहे हैं कि अब इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया जाए.
कैसे तय होगी राष्ट्रीय आपदा?
ऐसे में सवाल है कि तेज बारिश होना राष्ट्रीय आपदा है या बारिश में बर्बादी होने देना राष्ट्रीय आपदा? सैलाब आने से तबाही राष्ट्रीय आपदा है या कुदरत को जिम्मेदार ठहराना असली आपदा है? हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि बादल फटता है तो कोई बता कर नहीं फटता है. यह राजनीति का समय नहीं है. यह आपदा से लड़ने का समय है. हां ये बात तो सच है कि बादल बताकर नहीं फटता. सच ये भी है कि इतनी बारिश एक साथ अचानक हिमाचल में पिछले कई वर्षों में नहीं देखी गई.
क्या बारिश ही जिम्मेदार है?
अब सवाल है कि क्या मनाली में 52 साल का बारिश का रिकॉर्ड टूट रहा है तो यूं घर गिरने की जिम्मेदार सिर्फ बारिश होगी? पिछले 24 घंटे में हिमाचल प्रदेश में 200 मिलीमीटर बारिश हो गई है. तो क्या इसका मतलब है कि इसीलिए पुल का टूटकर गिरना स्वीकार कर लिया जाए? सवाल है कि सोलन में बारिश का 10 साल का रिकॉर्ड टूट गया है तो क्या कारें बहना मंजूर कर लिया जाए?
तैयारी क्या थीं?
ऐसे में सरकारों को बताना चाहिए कि उनकी क्या तैयारी रही. सरकारों को स्पष्ट कहना चाहिए कि बारिश से निपटने के लिए खतरनाक जगहों से लोगों को कहां शिफ्ट किया गया. मौसम विभाग के अलर्ट के बावजूद भी कोई उचित कदम क्यों नहीं उठाए गए. यह किसी एक राज्य की बात नहीं है, या किसी एक मौसम की बात नहीं है. मानसून विभाग अलर्ट जारी कर सकता है. जनता सावधानी बरत सकती है. सरकारें आपदा आने के बाद बचाने का दावा करती हैं. लेकिन आपदा आने से पहले की तैयारियां क्या हैं, इस पर कोई अधिकारी या मंत्री जवाब नहीं दे रहा है. इसलिए कुछ घंटे की तेज बारिश मनाली से मंडी तक, कुल्लू से सोलन तक तबाही मचा देती है.
ऐसे में आपको यह जान लेना जरूरी है कि मौसम विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले अलग-अलग अलर्ट का मतलब क्या होता है.
-ग्रीन अलर्ट का मतलब खतरा नहीं.
-येलो अलर्ट का मतलब होता है मौसम पर नजर बनाए रखें. आपदा प्रबंधन वाले तैयारी करके रखें. गरज के साथ तूफान और तेज बारिश येलो अलर्ट के तहत आती है.
-ऑरेंज अलर्ट का मतलब होता है लोग सतर्क रहें, एंजेंसियां अलर्ट पर रहें. भारी बारिश हो सकती है. इसका मतलब होता है कि लोग खुद को सुरक्षित जगह पर रखें. बाहर निकलने से पहले एतहतियात बरतें.
-रेड अलर्ट का मतलब होता है- बड़ा खतरा. सब अलर्ट मोड पर रहें.
मंगलवार को देशभर में कैसा रहेगा मौसम का हाल?
हिमाचल प्रदेश के लिए ऑरेंज अलर्ट- यानी भारी बारिश हो सकती है. उत्तराखंड के लिए भी ऑरेंज अलर्ट- यानी लोग सावधान रहें. जरूरत हो तभी घर से निकलें. हरियाणा के लिए कल मौसम ने येलो अलर्ट की आशंका जताई है. दिल्ली के लिए भी कल येलो अलर्ट है. लेकिन उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और पूर्वी हिस्से के लिए भी ऑरेंज अलर्ट है.
हिमाचल प्रदेश में अचानक रिकॉर्ड तोड़ बारिश क्यों हुई?
इस सवाल के जवाब में मौसम विभाग की वरिष्ठ वैज्ञानिक सोमा सेन रॉय ने कहा कि मानसून और पश्चिमी विक्षोभ दोनों वेदर सिस्टम ने मिलकर इतनी बारिश करा दी है कि हिमाचल में तबाही देखने को मिल रही है.
तेज बारिश हुई तो ब्यास नदी, पार्वती नदी और रावी नदी हिमाचल से होकर गुजरने वाली इन तीन नदियों में बड़ा उफान देखने को मिला और ऐसा कोई पहली बार नहीं है. पहले भी जब हल्की या तेज बारिश हुई तो ये नदियां उफान में लोगों को बहाने लगीं. तो सवाल है कि क्या इस बार बारिश से पहले कोई तैयारी की गई थी? साथ ही आइए यह भी जान लेते हैं कि हिमाचल में तबाही की वजह क्या रही.
हिमाचल में तबाही की वजह नंबर 1
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मुताबिक नदी के तट से 25 मीटर दूरी तक निर्माण कार्य पर रोक लगाई गई है. लेकिन हकीकत यह है कि नदी के किनारों तक अवैध निर्माण होने दिया गया. नतीजा यह रहा कि नदियों के एकदम पास बने घर सैलाब में बह गए. मनाली से मंडी तक नियमों को ताक पर रखकर पिछले कुछ वर्षों में नदी तट किनारे बहुमंजिला घरों व व्यावसायिक परिसरों का निर्माण कार्य हुआ है. इससे नदी का फैलाव कम हुआ है. तट सिकुड़ने से थोड़ा सा जलस्तर बढ़ने पर ब्यास नदी तबाही मचा रही है.
हिमाचल में तबाही की वजह नंबर 2
नियम कहता है कि अवैध खनन नहीं होना चाहिए. हकीकत यह है कि ब्यास, रावी, पार्वती नदी में अवैध खनन होता रहा. नतीजतन किनारे तोड़कर कटाव बढ़ने लगता है. मनाली के पास हाइवे की सड़क के ऐसे हिस्से इसीलिए गिरते हैं, क्योंकि जिन नदियों को नागरिक पूजते हैं उन्हीं नदियों का अवैध खनन होने दिया जाता है.
दो तस्वीरों से समझिए. हिमाचल प्रदेश में पिछले कई वर्षों में ऐसे कई मौके आए हैं, जब अवैध खनन की तस्वीरें ब्यास नदी में दिखी हैं. मोटी काली कमाई के लिए होने वाला यही अवैध व्यापार कटाव को बढ़ाता है. जिसका नतीजा सबके सामने है.
हिमाचल में तबाही की वजह नंबर 3
नियम कहता है निर्माण कार्य के दौरान मलबा सुरक्षित जगह डाला जाएगा. हकीकत यह है कि कई निर्माण का मलबा नदियों में ही डाला गया. नतीजतन तट सिकुड़ने से कभी भी तेज बारिश होने पर बाढ़ आती है.
जब ऐसे और भी तमाम कारणों को सरकारें नजरअंदाज करती आ रही हों, तो आपदा के बाद सिर्फ प्राकृतिक बताकर पलड़ा झाड़ देना तो पर्याप्त नहीं होगा.