भारत ने बीते तीन दशकों में उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति की है, जिसने इसे दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था का दर्जा दिलाया है. हालांकि, इन वर्षों के दौरान कई ऐसे मुद्दे भी रहे हैं, जिन्होंने भारत की प्रगति, इसके विकास और इसकी राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाला है. इनमें से एक प्रमुख मुद्दा नक्सलवाद भी रहा है. भारत में नक्सलवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के गांव नक्सलबाड़ी से हुई थी. उत्पीड़ित किसानों ने 1967 में कम्युनिस्ट आंदोलन से प्रेरित होकर नक्सलबाड़ी गांव के सामंती भूस्वामियों के खिलाफ हथियार उठा लिए. नक्सलबाड़ी में शुरू होने के कारण इसका नाम नक्सल आंदोलन पड़ा और बाद में इस तरह के आंदोलन में शामिल लोगों को नक्सलवादी कहा गया.
शुरू में भारत में नक्सलवाद परिस्थिति के कारण पैदा हुई एक समस्या थी और इसकी पृष्ठभूमि सामाजिक सरोकार से जुड़ी है. हालांकि, बदलते समय के साथ इसके स्वरूप में भी बदलाव हुआ और नक्सलवाद एक राजनीतिक समस्या बन गई. सामंती ताकतों से जमीन छीनकर उसे किसानों में बांटना नक्सलवादियों का उद्देश्य था, लेकिन आज के दौर में उन्होंने जमींदारों के खिलाफ नहीं बल्कि स्टेट और सिस्टम के खिलाफ हथियार उठा लिया है. विकास और बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर हमला करके, नक्सली सीधे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था के विकास में बाधा डालते हैं. आज के नक्सलवादी गरीबी और पिछड़ेपन से निकलने की महत्वकांक्षा रखने वाले ग्रामीणों को हाशिए पर बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे में, भारत सरकार को इस अपरंपरागत युद्ध के लिए खुद को ढालना पड़ा है.
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भारत में नक्सल मूवमेंट की जड़ें अब कितनी बची हैं, किन राज्यों में अब भी इसका प्रभाव बचा है और अगले एक साल में नक्सलवाद को खत्म करने की राह में क्या चुनौतियां हैं, हम आपको इस बारे में बता रहे हैं...
भारत में कितनी बची हैं नक्सलवाद की जड़ें?
भारत नक्सलवाद की समस्या से तेजी से उबर रहा है और अब इसकी उपस्थिति सिर्फ 9 राज्यों तक सीमित रह गई है. केंद्र सरकार की ओर से संसद को बताया गया है कि छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल उन 9 राज्यों में शामिल हैं जहां नक्सलवाद का प्रभाव बचा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 21 मार्च, 2025 को राज्यसभा में कहा था कि वह सदन को जिम्मेदारी के साथ यह बताना चाहते हैं कि 31 मार्च, 2026 तक देश से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा.
केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि वर्ष 2004 से 2014 तक देश में नक्सलवाद से जुड़ी 16,463 हिंसक घटनाएं हुई थीं, लेकिन पिछले 10 वर्षों में इसमें 53 प्रतिशत कमी आई है. वर्ष 2004 से 2014 तक विभिन्न नक्सली हमलों और नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान 1851 सुरक्षा कर्मियों की जान गई, लेकिन पिछले 10 साल में सुरक्षा बलों के हताहत होने की संख्या घटकर 509 रह गई है, जो 73 प्रतिशत की कमी है. वहीं 2004 से 14 के बीच नक्सली हमलों में 4,766 नागरिकों की मौत हुई थी, 2014 से 2024 के बीच यह आंकड़ा घटकर 1495 रह गया है, जो 70 प्रतिशत की कमी है.
अमित शाह ने नक्सलवाद के खिलाफ इस सफलता का श्रेय अपनी सरकार के 10 वर्षों के परिश्रम, रणनीति और विकास कार्यों को दिया. उन्होंने कहा कि नक्सल समस्या के समग्र समाधान के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना को मंजूरी दी. इसके तहत नक्सल समस्या से निपटने के लिए व्यापक रणनीति पर काम शुरू किया गया. सुरक्षा संबंधी उपायों को मजबूत करने, विकास के काम को गति देने और स्थानीय समुदाय के अधिकार को सुनिश्चित करने का काम शुरू किया गया. सुरक्षा के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों को पुलिस के आधुनिकीकरण और क्षमता विकास के लिए मदद दी. इसके अलावा हथियार और उपकरण, खुफिया जानकारी साझा करने, फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन के निर्माण के लिए फंड मुहैया कराया.
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अमित शाह ने कहा कि दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ में शासन बदला, जिसके बाद एक साल के भीतर ही 380 नक्सली मारे गए. 1194 नक्सली गिरफ्तार हुए और 1045 ने आत्मसमर्पण किया. उन्होंने कहा कि इस पूरी कारवाई में हताहत होने वाले सुरक्षा कर्मियों की संख्या सिर्फ 26 रही. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 2014 तक 66 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन थे, जिनमें 32 पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी थे. लेकिन मोदी सरकार ने 10 साल में 612 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन बनाए. वर्ष 2014 में सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 थी, जो अब कम होकर 12 रह गई है और मार्च 2026 में इनकी संख्या 0 हो जाएगी. वर्ष 2014 में ऐसे पुलिस स्टेशन की संख्या 330 थी, जहां नक्सल घटनाएं घटी हैं, लेकिन अब इनकी संख्या कम होकर 104 रह गई है. पहले नक्सल प्रभावित क्षेत्र 18 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा था, अब सिर्फ 4200 वर्ग किलोमीटर बचा है.
नक्सलवाद के खिलाफ क्या है सरकार की रणनीति?
नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने सुरक्षा के साथ विकास को प्राथमिकता दी है. नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़क, पानी, बिजली, अस्पताल, स्कूल, इंटरनेट और कम्युनिकेशन जैसे बुनियादी ढांचे विकसित किए गए हैं. विकास की वजह से यहां के ग्रामीणों मेनस्ट्रीम में जुड़े हैं और नक्सलियों को मिलने वाला जनसमर्थन काफी हद तक समाप्त हो गया है. इस कारण नई भर्तियां लगभग रुक गई हैं. केंद्र और राज्य सरकारें प्रभावित इलाकों में युवाओं को रोजगार से जोड़कर उन्हें नक्सलवाद से दूर रखने का प्रयास कर रही हैं.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भारत में 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने की गारंटी को पूरा करने में सीआरपीएफ, डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान जुट गए हैं. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में प्रमुख जगहों पर सीआरपीएफ और इसकी स्पेशल 'कोबरा' यूनिट ही नक्सलवादियों से लोहा ले रही है. सुरक्षा बलों ने ऐसी रणनीति बनाई है, जिसमें नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचे हैं, या तो सरेंडर करो या गोली खाओ. ऐसा कोई नक्सल प्रभावित इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो. सुरक्षा बल महज 48 घंटे में 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित कर आगे बढ़ रहे हैं. नक्सलियों की सप्लाई चेन कट चुकी है. नई भर्ती पूरी तरह बंद हो चुकी है. जंगलों में नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर भी तबाह किए जा रहे हैं.
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सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का हर वो ठिकाना ढूंढ निकाला है, जो अभी तक पहेली बने हुए थे. नक्सल प्रभावित जिलों में सुरक्षा बलों ने 290 से ज्यादा कैंप स्थापित किए हैं. नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षा बल जितने ज्यादा कैंप स्थापित करते हैं, नक्सलवाद का दायरा उतना ही सिकुड़ता जाता है. नक्सल प्रभावित सभी जिलों में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय संचालित किये जा रहे हैं. नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास पहुंचाने के लिए बजट में भी 300 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय ने नक्सलियों की फंडिंग पर नकेल कसी है. नक्सलियों की फंडिंग करने वाले एनजीओ और व्यक्तियों की पहचान करके उनके खिलाफ धनशोधन रोकथाम कानून (PMLA) के तहत केस चलाया जा रहा है और कई सलाखों के पीछे भेजे गए हैं.
वर्ष 2014 से 2024 तक नक्सल प्रभावित इलाकों में 11,503 किलोमीटर हाईवे का निर्माण किया गया. 20,000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनाई गई हैं. पहले चरण में 2343 और दूसरे चरण में 2545 मोबाइल टावर लगाए गए हैं और 4000 टावर लगाने का काम जारी है. नक्सल प्रभावित इलाकों में गत 5 वर्षों में 1007 बैंक शाखाएं खोली गई हैं और 937 एटीएम शुरू किए गए हैं. साथ ही बैंकिंग सेवा से युक्त 5731 डाकघर खोले गए हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि नक्सलवाद अब धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है. विगत कुछ वर्षों में मारे गए नक्सलियों में उनके कई प्रमुख नेता भी शामिल हैं, जिस कारण उनका पूरा आंदोलन चरमरा गया है. करोड़ों रुपये के इनाम वाले कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है.
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नक्सलवाद को खत्म करने की राह में क्या हैं चुनौतियां?
केंद्र और राज्य सरकारों ने नक्सलवाद के मूल कारणों पर ध्यान दिया है. नक्सल प्रभावित इलाकों में स्थानीय लोगों को भरोसे में लेने और हथियार उठा चुके लोगों से बात करके उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयासों का शानदार परिणाम सामने आए हैं. केंद्र सरकार का 'महत्वकांक्षी जिला कार्यक्रम' (Aspirational District Programme) इसका शानदार उदाहरण है, जिसके तहत देश के सबसे पिछड़े जिलों के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. हालांकि, आज के दौर में नक्सलवाद का स्वरूप भी बदल चुका है. सरकार भी इस चुनौती से परिचित है. नक्सलवाद अब सिर्फ उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष नहीं रह गया बल्कि एक संगठित अपराध बन चुका है. नक्सलवादियों के देश के दुश्मनों से संबंध यह दर्शाते हैं कि यह आंदोलन अपनी मूल विचारधारा से भटक गया है. पाकिस्तानी की आईएसआई और चीन जैसे देशों के साथ नक्सलवादियों की मिलीभगत के कारण भारत के सामने एक बड़ी चुनौती उभरकर सामने आई है, जिससे उसे सावधान रहने की जरूरत है.