मणिपुर में 80 दिन से लगातार हिंसा हो रही है. आगजनी, तोड़फोड़ और बवाल की घटनाएं लगातार हो रही है. सड़कें जाम हैं. हाइवे पर उपद्रवियों का कब्जा है. ढाई महीने से कई इलाकों में सप्लाई चेन भी प्रभावित है. मणिपुर में सरकार से लेकर सुरक्षा एजेंसियां भी टेंशन में हैं. इसकी बड़ी वजह भी सामने आई है. राज्य में 'मीरा पैबी' ग्रुप पर कंट्रोल करने के लिए अर्धसैनिक बलों की महिला टुकड़ियों की तैनाती पर जोर दिया जा रहा है.
बता दें कि मणिपुर में महिलाओं के आंदोलन को मीरा पैबी (women torch bearers) के नाम से जाना जाता है. ये महिलाएं अपने आंदोलन में मशाल लेकर चलती हैं. इस समय मणिपुर में हिंसा पर लगाने के लिए सुरक्षाबलों के जवान मुस्तैद हैं. इनके विरोध में महिलाओं के इस संगठन ने मोर्चा खोल दिया है. सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि मीरा पैबी ने राज्य में ना सिर्फ केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की आवाजाही को रोका है, बल्कि गंभीर अपराधों को अंजाम देने में भी मदद की है.
'RAF की महिला टुकड़ियां भेजी जाएं'
असम राइफल्स में महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा है. अधिकारियों को लगता है कि वे कानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए ट्रेंड नहीं हैं. ऐसे में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में जुटे अधिकारी राज्य में ज्यादा महिला अर्धसैनिक बलों, विशेष रूप से रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) की तैनाती पर जोर डाल रहे हैं. चूंकि, RAF को दंगा जैसी स्थिति से निपटने में पूरी तरह तैयार माना जाता है. ये टीम दंगा गियर से लैस होती है.
'लाठियां लेकर सड़क पर आ जाता है महिलाओं का ग्रुप'
न्यूज एजेंसी के मुताबिक, एक अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, आप देख सकते हैं कि खुद को मीरा पैबी बताने वाली ये महिलाएं दबाव डालने पर अक्सर खुद को निर्वस्त्र करने की धमकी देती हैं. अब, जब सेना का काफिला पहाड़ियों में किसी अन्य इलाके की तरफ बढ़ रहा है तो ये महिलाएं लाठियों के साथ आ जाती हैं और सड़कों को अवरुद्ध कर देती हैं.
'चौराहे पर खड़े होकर किसी की भी लेती हैं तलाशी'
अधिकारियों ने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जब सेना या असम राइफल्स के जवान संघर्ष रोकने के लिए पहुंचे और वहां मीरा पैबी ग्रुप ने सुरक्षा एजेंसी के कार्यों में व्यवधान डाला है. ये ग्रुप हर किसी से चाहे वो अधिकारी हो या जवान - अपना पहचान पत्र दिखाने के लिए कहता है. ये महिला लाठियों से लैस होती हैं और इनके ग्रुप में 20 से ज्यादा की संख्या होती है. इन्हें कोई भी इम्फाल सड़क के महत्वपूर्ण चौराहों पर खड़ा देख सकता है. ये किसी की भी तलाशी ले रही हैं ताकि पहाड़ियों में बंद आदिवासी लोगों को कोई मदद ना मिल सके.
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'पुलिस बनी रहती है मूकदर्शक'
मणिपुर के हालात को कवर करने आए पत्रकारों को भी ये ग्रुप परेशान कर रहा है. उनसे पूछताछ करता है. तलाशी लेता है. अधिकारियों ने बताया कि कई मौकों पर यह भी देखने को मिला है, जब इस महिला ग्रुप ने ड्यूटी पर तैनात सेना के जवानों के साथ बहस की और मणिपुर पुलिस मूकदर्शक बनी रही.
'सड़कों पर गश्त कर रही महिलाएं'
वर्तमान में मणिपुर में सीआरपीएफ की तीन महिला कंपनियां तैनात हैं. आरएएफ की 10 कंपनियां भी पोस्टेड हैं. इनमें महिला प्लाटून की संख्या सिर्फ 375 है. सीआरपीएफ की एक कंपनी में 75 कर्मी होते हैं. जबकि आरएएफ महिला प्लाटून में 15 कर्मी होते हैं. मीरा पैबी ग्रुप की सैकड़ों महिलाओं से निपटने के लिए लेडी फोर्स की ये संख्या काफी कम है.
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'उपद्रवियों को छोड़ने के लिए कर दिया था मजबूर'
हाल ही में इम्फाल के बाहरी इलाके में नागा मारिंग महिला की हत्या हुई थी. इस मामले में मीरा पैबी से जुड़ी पांच महिलाओं को गिरफ्तार किया गया था. इनमें 2015 में 18 सैनिकों की हत्या का मुख्य आरोपी भी शामिल था. अधिकारियों ने बताया कि इन तथाकथित महिलाओं के ग्रुप ने ही जून में प्रतिबंधित KYKL (कांगलेई यावोल कन्ना लूप) आतंकवादी समूह के 12 कैडरों को छुड़वाने में बड़ी भूमिका निभाई थी. भारतीय सेना की स्पीयर कोर ने बताया था कि सुरक्षा बलों ने इथम गांव में तलाशी अभियान चलाया था. इस दौरान केवाईकेएल (कांगलेई यावोल कन्ना लूप) विद्रोही समूह के 12 उपद्रवियों को अरेस्ट किया था. लेकिन, इलाके में 1200-1500 महिलाओं की भीड़ ने सुरक्षाबलों को घेर लिया और उग्रवादियों को छुड़ा लिया.
बताते चलें कि मीरा पैबी मणिपुर में विभिन्न प्रकार के सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई में आंदोलन चलाती आई हैं. 'एशियन रिव्यू ऑफ सोशल साइंसेज' जर्नल में प्रकाशित 'मीरा पैबी की संक्षिप्त समीक्षा के अनुसार, कठिन परिस्थिति के दौरान मणिपुर की हर महिला मीरा पैबी बन जाती है जो सीधे समुदायों को प्रभावित करती है. भारत की स्वतंत्रता से पहले और बाद की अवधि में विभिन्न महिला संगठनों ने समाज में सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ऐसा ही एक समूह मीरा पैबी है, जो मणिपुर में सबसे बड़ी आबादी में से एक है.
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1904 और 1939 में 50-70 वर्ष की बुजुर्ग महिलाएं मीरा पैबी ग्रुप बनाने के लिए एक साथ आईं थीं. उन्हें मणिपुरी में 'इमास' यानी मां भी कहा जाता है. लेकिन, आजादी के बाद मीरा पैबी संगठन में सभी आयु वर्ग की महिलाएं शामिल हो गईं.