
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद एक और सवाल उठने लगा है कि अब अखाड़ा परिषद की कमान किसके हाथ में जाएगी. 13 अखाड़े और उनके उप अखाड़ों की इस संस्था का महत्व एक बार फिर सामने आ गया है. ये वो पद है जिसके आगे धन बल से लेकर राजनीति के बड़े नाम भी दण्डवत होते रहे हैं. कुम्भ में स्नान हो या किसी साधु संत का बहिष्कार, ये सब अखाड़ा परिषद के ही अधिकार क्षेत्र में आता है.
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के तौर पर नरेंद्र गिरि के उत्तराधिकारी के रूप में कुछ नाम चर्चा में भी हैं. सबसे बड़ा नाम महंत हरि गिरि का बताया जा रहा है. हरि गिरि इस समय अखाड़ा परिषद के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री हैं. अखाड़ा परिषद में नरेंद्र गिरि के बाद हरि गिरि को ही सबसे ताकतवर माना जाता है. इस बात से इनकार नहीं किया का सकता कि हरि गिरि की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.
ये भी पढ़ें- महंत नरेंद्र गिरि: छतौना गांव का 'बुद्धू' कैसे बना संतों की सर्वोच्च संस्था का प्रमुख
जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि भी अध्यक्ष पद के लिए एक प्रमुख चेहरा बताए जा रहे हैं. उनके व्यक्तित्व को देखते हुए कहा ये जा रहा है कि उनकी स्वीकार्यता अधिक हो सकती है. दरअसल नरेंद्र गिरि निरंजनी अखाड़े के महंत थे और आमतौर पर एक अखाड़े के बाद दूसरे अखाड़े को ही वरीयता दी जाती है. इसलिए अवधेशानंद गिरि की दावेदारी मजबूत बताई जा रही है. दूसरी वजह ये है कि सीधा संबंध न होने के बावजूद शासन सत्ता की राय को इसमें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. निर्मोही अखाड़े के राजेंद्र दास का भी नाम चर्चा में है.
हरि गिरि का रुख सबसे महत्वपूर्ण
वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र सिंह कहते हैं कि हरि गिरि का रुख सबसे महत्वपूर्ण होगा. क्योंकि इस समय वे महामंत्री हैं. आम तौर पर सर्वसम्मति से या बहुमत से चुनाव होता है लेकिन उससे पहले अखाड़ों में बात भी हो जाती है. दरअसल खुद नरेंद्र गिरि के अध्यक्ष बनते समय भी बहुत विवाद हुआ था. ज्ञानदास के पक्ष में कम मत थे तो उन्होंने भी तमाम आरोप लगाए थे.
ये भी पढ़ें- सुसाइड नोट में बलवीर गिरि को महंत बनाने की बात, नरेंद्र गिरि ने आनंद के नाम वसीयत कर दी थी रद्द
वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं कि पंच परमेश्वर की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. अखाड़े वर्तमान शक्ति केंद्र हैं. इनकी ताकत और महत्व का अंदाजा लगाना हो तो कुंभ को देखिए. बृजेश शुक्ल कहते हैं कि कौन पहले स्नान करेगा और कौन नहीं, ये प्रशासन नहीं तय करता बल्कि अखाड़े तय करते हैं. किसका बहिष्कार किया जाएगा ये भी अखाड़ा परिषद ही तय करता है.
चुनाव को लेकर भी होता रहा है विवाद
परंपरा के मुताबिक अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का चयन चुनाव के जरिए होता है लेकिन समय-समय पर इस चुनाव को लेकर विवाद भी होते रहे हैं. कई बार मामला कोर्ट-कचहरी तक भी पहुंच चुका है. संतों की इस सर्वोच्च संस्था का विवाद भी खुल कर सामने आता रहा है. दरअसल अखाड़े उस धर्म ध्वजा के वाहक हैं जो सनातन धर्म की रक्षा करते हैं इसलिए इसके प्रमुख के रूप में कौन चुना जाता है, इसपर सबकी नजर है.