scorecardresearch
 

केरल में प्रोफेसर की हथेली काटने वाला PFI सदस्य 13 साल से था फरार, नाम-पहचान सब बदला... NIA ने ऐसे दबोचा

इंटरनल एग्जाम के क्वेश्चन पेपर में पैगंबर मोहम्मद के नाम का कथित तौर पर आपत्तिजनक तरीके से इस्तेमाल करने के आरोप में पीएफआई सदस्यों ने जोसेफ की दाहिनी हथेली काट दी थी और उनके बाएं पैर पर कुल्हाड़ी से हमला किया था. बाद में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में जोसेफ को कॉलेज से निकाल दिया गया था.

Advertisement
X
केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ. (फाइल फोटो)
केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ. (फाइल फोटो)

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने बुधवार को 2010 के उस मामले में मुख्य और आखिरी फरार आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के सदस्यों द्वारा एक मलयालम प्रोफेसर की हथेली काट दी गई थी. पीएफआई को गृह मंत्रालय ने प्रतिबंधित संगठन घोषित कर रखा है. एजेंसी ने एक बयान में कहा कि एर्नाकुलम जिले के आशामनूर निवासी आरोपी सावद को कन्नूर के मट्टनूर से पकड़ा गया, जो 13 साल से फरार था. उसके सिर पर ₹10 लाख का इनाम घोषित था.

Advertisement

सवाद इस मामले में पहला आरोपी है. उसे कोच्चि स्थित एनआईए अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 22 जनवरी तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. न्यूमैन कॉलेज के मलयालम डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी टीजे जोसेफ पर एर्नाकुलम जिले के मुवत्तुपुझा में पीएफआई कार्यकर्ताओं के एक समूह ने  4 जुलाई 2010 को, हमला किया था. इंटरनल एग्जाम के क्वेश्चन पेपर में पैगंबर मोहम्मद के नाम का कथित तौर पर आपत्तिजनक तरीके से इस्तेमाल करने के आरोप में पीएफआई सदस्यों ने जोसेफ की दाहिनी हथेली काट दी थी और उनके बाएं पैर पर कुल्हाड़ी से हमला किया था.

बाद में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में जोसेफ को कॉलेज से निकाल दिया गया था. इस मामले में मुकदमे का सामना करने वाले 42 आरोपियों में से 19 को अदालत द्वारा विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था. इनमें से तीन दोषियों को आजीवन कारावास की सजा मिली और 16 को दो से 8 साल तक की जेल की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने बाकी 23 आरोपियों को को बरी कर दिया था. एनआईए के मुताबिक, सवाद ने ही धारदार हथियार से प्रोफेसर की हथेली काटी थी. इस वारदात के बाद, वह कथित तौर पर मिडिल ईस्ट भागने में सफल रहा था. 

Advertisement

मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी पर क्या बोले प्रोफेसर जोसेफ?

अपने बयान में, एनआईए ने कहा, 'सवाद पर 10 जनवरी, 2011 को प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर हमले के मामले में आरोप पत्र दायर किया गया था. यह भारत में पीएफआई द्वारा अपनाई जा रही हिंसक उग्रवाद की विचारधारा को दर्शाने वाली सबसे शुरुआती घटनाओं में से एक थी. मामले के सभी आरोपी या तो पीएफआई और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के नेता या कार्यकर्ता या कैडर थे, और प्रोफेसर टी.जे. जोसेफ पर घातक हमले से संबंधित आपराधिक साजिश में सक्रिय रूप से शामिल थे'. घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रोफेसर जोसेफ ने कहा कि उनके लिए सावद मुख्य आरोपी नहीं हैं बल्कि वे लोग हैं जिन्होंने उन पर हमले की साजिश रची. 

उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, 'एक नागरिक के रूप में, लीगल सिस्टम का सम्मान करने वाले व्यक्ति के रूप में, मेरे लिए आरोपी को 13 साल बाद गिरफ्तार किया जाना सराहनीय है. वह जांचकर्ताओं के लिए पहला या मुख्य आरोपी हो सकता है, लेकिन मेरे दिल में, वह पहला आरोपी नहीं है. मेरा मानना है कि मुख्य आरोपी वे हैं जिन्होंने मुझ पर हमला करने की साजिश रची और उन लोगों को भेजा जिन्होंने अंततः मुझे नुकसान पहुंचाया. लेकिन साजिशकर्ताओं को इस मामले में आरोपी नहीं बनाया गया है'. एनआईए सूत्रों के मुताबिक सवाद को मट्टनूर नगर पालिका के बेरम वार्ड में एक किराए के घर से पकड़ा गया, जहां वह शाहजहां के नाम से रहता था और कारपेंट्री का काम करता था. 

Advertisement

दो चरणों में हुई हुई थी मामले की सुनवाई, 19 को मिली सजा

मामले की सुनवाई दो चरणों में हुई. 2015 में पहले चरण में 31 आरोपियों की जांच की गई जिसके बाद 13 को दोषी ठहराया गया. इनमें 10 को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA), एएक्सप्लोसिव सब्सटेंस एक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के लिए 8-8 साल की जेल की सजा सुनाई गई, जबकि 3 को अपराधियों को शरण देने के लिए दोषी पाया गया और 2 साल जेल की सजा मिली. एनआईए ने पहले चरण में सभी दोषियों की सजा बढ़ाने और बाकी को बरी करने के फैसले की समीक्षा करने के लिए केरल उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. 

वहीं दूसरे चरण की सुनवाई के बाद पिछले साल जुलाई में 3 दोषियों को आजीवन कारावास और अन्य 3 को तीन साल कैद की सजा सुनाई गई थी. एनआईए और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा पिछले साल देशव्यापी कार्रवाई के बाद पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उसके सहयोगी संगठनों के पदाधिकारियों के कार्यालयों और आवासों से कथित आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए थे, जिसके बाद कई आरोपियों की गिरफ्तारियां भी हुईं. इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पीएफआई और उसके 8 सहयोगी संगठनों को 28 सितंबर, 2022 को यूएपीए के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था. 

Live TV

Advertisement
Advertisement