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No Confidence Motion का पूरा प्रोसेस, लोकसभा का नंबरगेम और विपक्षी INDIA गठबंधन की रणनीति, पढ़ें 10 बड़े सवालों के जवाब

केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आज अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरु होगी. नतीजा क्या होगा ये भी साफ है, क्योंकि लोकसभा में संख्याबल की ताकत के रूप में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले एनडीए की जीत होगी. तीन दिन में 18 घंटे की इस बहस में 2024 का ट्रेलर देखने को मिलेगा.

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अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी करेंगे चर्चा की शुरूआत, पीएम मोदी 10 अगस्त को देंगे जवाब
अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी करेंगे चर्चा की शुरूआत, पीएम मोदी 10 अगस्त को देंगे जवाब

2024 के रण से पहले तस्वीर करीब करीब साफ हो चुकी है. कौन किस खेमे में होगा आज ये भी साफ हो जाएगा. आज से संसद में मोदी सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू होगी. तीन दिन में 18 घंटे की बहस होगी जिसमें आपको 2024 का ट्रेलर दिखेगा. राहुल गांधी की सदस्यता बहाल होने के बाद विपक्षी खेमा जोश में है. आज राहुल ही अविश्वास प्रस्ताव पर बहस की शुरूआत कर सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी 10 अगस्त को चर्चा का जवाब दे सकते हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार अपने कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने जा रहे हैं. ना तो उनकी सरकार को खतरा है और ना ही विपक्ष नंबर गेम के लिहाज से इस हैसियत में है कि सरकारी खेमे को किसी परेशानी में डाल पाएं. लेकिन विपक्ष कुल मिलाकर मणिपुर पर मोदी सरकार को घेरना चाहता है. तो आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि अवश्विास प्रस्‍ताव क्‍या होता है और अतीत में इसका क्या इतिहास रहा है तथा विपक्ष के लिए इसके क्या मायने हैं. 

1-सवाल- अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?

जवाब- किसी खास मुद्दे पर विपक्ष की नाराजगी होती है जैसा इस बार मणिपुर को लेकर है. उस मुद्दे को लेकर लोकसभा का सांसद नोटिस देता है. जैसा इस बार कांग्रेस के गौरव गोगोई ने दिया. नोटिस के बाद लोकसभा स्पीकर उसे सदन में पढ़ते हैं. इस बार भी ऐसा ही हुआ. फिर उस नोटिस को अगर 50 सांसदों का समर्थन मिलता है तो बहस होती है. गौरव गोगोई ने जो नोटिस दिया उसे पचांस सांसदों ने समर्थन दिया अब उस पर बहस होगी और बहस के बाद वोटिंग भी होगी.  बहस में विपक्ष की ओर से आरोप लगाए जाएंगे और सरकार की ओर से उन आरोपों का जवाब दिया जाएगा. बहस के बाद वोटिंग होगी. 

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2- सवाल- अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कितने सांसदों की जरूरत होती है?

उत्तर- सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को नियम 198 के तहत लोकसभा में पेश किया जा सकता है. इस अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के लिए ही करने के लिए ही करीब 50 विपक्षी सांसदों का समर्थन होना जरूरी है. लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव एक अहम कदम माना जाता है. अगर संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए और सदन के 51% सांसद अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं, तो यह पारित हो जाता है और माना जाता है कि सरकार ने बहुमत खो दिया है और उसे पद से इस्तीफा देना होगा. सरकार को या तो विश्वास मत लाकर सदन में अपना बहुमत साबित करना होता है या विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद सरकार से बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है. 

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3- सवाल- अविश्वास प्रस्ताव का नियम क्या है?

उत्तर- अगर लोकसभा में किसी विपक्ष दल को लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है या सरकार सदन में विश्वास खो चुकी है, तो वह अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है.  संविधान के अनुच्छेद-75 के अनुसार, केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है. अगर सदन में बहुमत नहीं है, तो पीएम समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है.

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कोई सदस्य लोकसभा की प्रक्रि‍या तथा कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से 198(5) के तहत लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है. इसके लिए उसे सुबह 10 बजे से पहले प्रस्ताव की लिखित सूचना देनी होती है. साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होता है कि उस प्रस्ताव को कम से कम 50 सांसदों ने स्वीकृति दी हो. इसके बाद अगर लोकसभा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के भीतर इस पर चर्चा जरूरी है.

4- सवाल- संख्या बल साथ नहीं, फिर भी क्यों अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है विपक्ष?

उत्तर- विपक्ष इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि संख्या बल उसके साथ नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी वह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है. दरअसल विपक्ष मणिपुर हिंसा को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जवाबदेही तय करने और इस हिंसा पर बहस करने की मांग कर रहा है. वह चाहता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में इस पर जवाब दें.

यही वजह है कि विपक्षी गठबंधन INDIA की तरफ से कांग्रेस ने संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया. इसी के साथ ही कांग्रेस ने कहा कि सरकार पर से लोगों को भरोसा टूट रहा है. हम चाहते हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी मणिपुर हिंसा पर कुछ बोलें लेकिन वह बात ही नहीं सुनते. 

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विपक्ष आरोप लगाता रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी अहम मुद्दों पर मौन साध लेते हैं. इससे पहले भी वह कई मुद्दों जैसे-राहुल की सदस्यता, महिला पहलवानों का  मुद्दा व अडानी-हिंडनबर्ग मामले पर चुप्पी साध चुके हैं. विपक्ष की कई मांगों के बाद भी वह मौन रहे हैं. ऐसे में वह अविश्वास प्रस्ताव लाकर पीएम मोदी को बोलने पर मजबूर करेंगे और यह प्रचारित करने की कोशिश करेंगे कि गंभीर मुद्दों पर जवाब देने से बच रहे पीएम मोदी को विपक्षी एकता ने बोलने पर मजबूर कर दिया.  विपक्ष इसके जरिए यह साबित करने की कोशिश करेगा कि सरकार मणिपुर के मुद्दों को सुलझाने में नाकाम साबित हुई है. सरकार की लापरवाही की वजह से हालात बिगड़ते चले गए. 

5- सवाल- क्यों नियम 267 के तहत चर्चा चाहता था विपक्ष?

उत्तर- विपक्ष मणिपुर मुद्दे को लेकर राज्यसभा में नियम 267 के तहत और लोकसभा में नियम 184 के तहत चर्चा की मांग करता रहा है जबकी सरकार चाहती थी कि राज्यसभा में नियम 176 के तहत और लोकसभा में 193 के तहत चर्चा हो. तो आपको बताते हैं कि विपक्ष 267 और 184 नियम के तहत क्यों चर्चा चाहता है?  इन नियमों के तहत के एक लंबी बहस होती है और साथ में वोटिंग का भी प्रावधान होता है.

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नियम 267 के तहत राज्यसभा सदस्य को यह अधिकार होता है कि वह सभापति की मंजूरी से सदन के पूर्व-निर्धारित एजेंडे को निलंबित कर सकता है. नियम 267 के तहत कोई भी चर्चा संसद में इसलिए मायने रखती है क्योंकि इसके तहत राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर चर्चा होती है और बांकि सारे काम रोक दिए जाते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक तरह से प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए मजबूर करने जैसा है. 

6- सवाल- अविश्वास प्रस्ताव के जरिए I.N.D.I.A. गठबंधन का टेस्ट का टेस्ट चाहता है विपक्ष?

उत्तर- अविश्वास प्रस्ताव के जरिए केवल विपक्ष न केवल पीएम को सदन में बोलने के लिए मजबूर करना चाहता है, बल्कि इसके जरिए वह अपने गठबंधन 'I.N.D.I.A.' की ताकत भी प्रदर्शित करना चाहता है. कई मौके ऐसे आए हैं जब गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद उसमें मनमुटाव और दरार की खबरें आती रही हैं. नीतीश कुमार, जयंत चौधरी, शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक के नेताओं की नाराजगी की अपुष्ट खबरें सामने आते रही हैं. इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष अपनी एकजुटता दिखाना भी चाहता है. अगर मणिपुर हिंसा को लेकर सभी दल सरकार पर दवाब बनाते हैं तो इससे विपक्षी एकजुटता की एक मजबूत पिक्चर सामने आएगी. 

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7- सवाल- पहली बार कब आया था मोदी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव?

उत्तर- इससे पहले 20 जुलाई 2018 को आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. यह मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव था. 12 घंटे की चर्चा के बाद मोदी सरकार को 325 वोट मिले थे. जबकि अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में विपक्ष को 126 वोट मिले थे. 

8-सवाल- क्या इस अविश्वास प्रस्ताव से मोदी सरकार को खतरा है?

उत्तर- हालांकि, लोकसभा का नंबर गेम साफ तौर पर मोदी सरकार के पक्ष में नजर आ रहा है. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सांसदों की जरूरत है. जबकि बीजेपी के सदन में 301 सदस्य हैं और सहयोगियों को मिलाकर यह आंकड़ा 329 तक चले जाता है.  बीजेपी ने व्हिप जारी कर सभी सांसदों को 11 अगस्त कर मौजूद रहने के लिए कहा है. तो साफ है कि इस प्रस्ताव से सरकार को कोई खतरा नहीं है.

9- सवाल- अभी तक कितनी बार लाया गया अविश्वास प्रस्ताव?

उत्तर- अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है. पहला अविश्वास प्रस्ताव चीन युद्ध के बाद 1963 में जवाहर लाल नेहरू सरकार के खिलाफ लाया गया था. सबसे  ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के खिलाफ लाया गया- पूरे 15 बार और हर बार सरकार सुरक्षित रही. नरसिम्हा राव के खिलाफ 3 बार, राजीव गांधी के खिलाफ  1 बार और अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ 1 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. 

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10- सवाल- अविश्वास प्रस्ताव के कारण कितनी सरकारें गिरीं?

उत्तर- मोरारजी देसाई, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने अविश्वास प्रस्ताव के कारण अपनी सरकारें गिरती देखीं हैं.  मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ दूसरी बार 1978 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार के घटक दलों में आपसी मतभेद थे. अपनी हार का अंदाजा लगते ही मोरारजी देसाई ने मत-विभाजन से पहले इस्तीफा दे दिया था.

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1990 की बात है. राम मंदिर के मसले पर बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद 10 नवंबर 1990 में अविश्वास प्रस्ताव में वीपी सिंह की सरकार बहुमत साबित नहीं कर पाई थी. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को जयललिता की पार्टी के समर्थन वापस लेने से अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. तब वाजपेयी सरकार 1 वोट के अंतरसे हार गई थी. उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.  

पांच साल बाद देश में काफी कुछ बदल चुका है. आज फिर अविश्वास प्रस्ताव पर बहस  का वक्त है लेकिन इस बार बातें खरी होगी अंदाज तल्ख होगा ये तय है.

 

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