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नेहरू-कृपलानी की पहली बहस से मोदी सरकार के खिलाफ दूसरे अविश्वास प्रस्ताव तक... भारत में नो कॉन्फिडेंस मोशन की 60 साल की History

नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं. पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल में भी अविश्वास प्रस्ताव आया था.

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इंदिरा गांधी के खिलाफ आए सबसे अधिक अविश्वास प्रस्ताव
इंदिरा गांधी के खिलाफ आए सबसे अधिक अविश्वास प्रस्ताव

कांग्रेस और तेलंगाना की सत्ताधारी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है. कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई और बीआरएस की ओर से नामा नागेश्वर राव ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. ये कोई पहला मौका नहीं जब किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया हो. ये 28वां मौका है जब केंद्र की सरकार को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ रहा है.

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कांग्रेस और बीआरएस की ओर से दिए गए ताजा नोटिस से पहले 27 बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो चुके हैं. हालांकि, एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब अविश्वास प्रस्ताव से सरकार गिरी हो. 1979 में अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद मोरारजी देसाई की सरकार गिरी जरूर थी लेकिन तब भी वोटिंग की नौबत नहीं आई थी. मोरारजी देसाई ने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.

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साल 1963 में जब संसद में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ था, तब से लेकर अब तक 60 साल के इतिहास में 27 बार संसद अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की गवाह बन चुकी है. अकेले इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकारों के खिलाफ ही 15 बार अविश्वास प्रस्ताव आए. हालांकि, हर बार अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया. ये आंकड़ा अब तक 28 (गौरव गोगोई और नामा नागेश्वर राव की ओर से पेश वर्तमान प्रस्ताव समेत) अविश्वास प्रस्ताव के आधे से भी अधिक है.

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नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ दूसरा प्रस्ताव

नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं. पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के पहले कार्यकाल में भी अविश्वास प्रस्ताव आया था. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले संसद के अंतिम मानसून सत्र के दौरान तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था. तब भी अविश्वास प्रस्ताव गिर गया था. इसबार भी अकेले बीजेपी का संख्याबल पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 273 के मुकाबले कहीं अधिक 300 पार है, ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव का गिरना तय माना जा रहा है.

नरेंद्र मोदी बीजेपी के ऐसे पहले नेता बन गए हैं जिसे सरकार का नेतृत्व करते हुए संसद में दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा हो. बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार प्रधानमंत्री रहे. वाजपेयी की सरकार के खिलाफ संसद में एक बार अविश्वास प्रस्ताव आया था. साल 2003 में वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ सोनिया गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था.

चीन युद्ध में हार के बाद आया था पहला अविश्वास प्रस्ताव

आजादी के बाद 1963 में पहली बार किसी सरकार का सामना संसद में अविश्वास प्रस्ताव से हुआ. 1962 के चीन युद्ध में हार के बाद आचार्य जेबी कृपलानी ने अगस्त 1963 में संसद के मॉनसून सत्र के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था.

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इस अविश्वास प्रस्ताव पर चार दिन और करीब 21 घंटे तक बहस चली थी जिसमें 40 सदस्य शामिल हुए थे. ये अविश्वास प्रस्ताव 62 के मुकाबले 347 वोट से गिर गया था. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान आचार्य कृपलानी ने पंडित नेहरू पंचशील समझौते पर भी घेरा.

बहस के दौरान आचार्य कृपलानी ने क्या कहा था

आचार्य कृपलानी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सांसद थे और उनकी पार्टी का संख्याबल लोकसभा में 73 था. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 361 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. सरकार पर किसी तरह का संकट नहीं था फिर भी आचार्य कृपलानी चीन युद्ध में हार के बाद अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए. आचार्य कृपलानी ने कहा था कि सरकार की विदेश नीति विफल रही है और वह अपने घर में भी विफल रही है. देश मंदी का सामना कर रहा है.

आचार्य कृपलानी ने कहा था कि जितनी स्ट्रेंथ कांग्रेस के पास है, उससे ज्यादा मेरे पास है. ये न समझा जाए कि मैं सदन में सिर्फ 73 सांसदों का प्रतिनिधित्व करने के लिए खड़ा हूं. चुनाव में कांग्रेस को 45.27 फीसदी वोट मिले थे तो विपक्ष को भी 54.76 प्रतिशत लोगों ने वोट दिया था. कम्यूनिस्ट पार्टियां भी हमारे साथ हैं. इस सरकार पर उनको भी भरोसा नहीं. कम्युनिस्ट भी चाहते हैं कि सत्ता में बैठे लोग कुर्सी से उतरें.

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'कैबिनेट रिस्पॉन्सिबिलिटी टू लेजिस्लेचर: मोशन ऑफ कॉन्फिडेंस एंड नो-कॉन्फिडेंस इन लोकसभा एंड स्टेट लेजिस्लेचर्स' पुस्तक में जीसी मल्होत्रा ने पहले अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का विस्तार से वर्णन किया है. इस पुस्तक के मुताबिक आचार्य कृपलानी ने अरुणाचल प्रदेश (पुराना नाम नेफा यानी नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) में तैनात अधिकारियों से सलाह-मशविरा किए बिना सेना से संबंधित निर्णय लिए जाने का आरोप लगाया था.

उन्होंने चीन से बातचीत को गैरजरूरी बताते हुए कहा था कि इन्हें भगाने के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तरीके से तैयार रहने की जरूरत है. उन्होंने पंचशील समझौते को लेकर भी पंडित नेहरू को घेरा और इसे बकवास बताते हुए चीन से राजनयिक संबंध तोड़ने का आह्वान किया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने अविश्वास प्रस्ताव को रोचक और फायदेमंद बताते हुए कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव किसी दल को सत्ता से हटाने के लिए लाया जाता है लेकिन इस प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार गिराना नहीं था.

बहस का जवाब देते हुए पंडित नेहरू ने क्या कहा था

जीसी मल्होत्रा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए पंडित नेहरू ने आचार्य कृपलानी, एमआर मसानी और राम मनोहर लोहिया का जिक्र करते हुए कहा कि तीन माननीय सदस्यों के भाषण बहुत ध्यान से और रुचि के साथ सुना. डॉक्टर लोहिया ने बार-बार नाम लेकर मुझे सम्मानित किया. अपने बारे में बहस नहीं करना चाहता, किसी भी तरह से ऐसा करना गलत होगा. इससे बहस निचले स्तर पर आ गई. पंचशील समझौते को लेकर पंडित नेहरू ने कहा था कि इसे इसलिए बकवास नहीं कहा जा सकता क्योंकि चीन ने विश्वास तोड़ दिया.

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चीन से सभी संबंध तोड़ लेने के आह्वान पर नेहरू ने कहा था कि अब आचार्य कृपलानी ने कहा है कि हमें चीन से राजनयिक संबंध तोड़ लेने चाहिए. उन्होंने पूछा- हम क्यों युद्ध की घोषणा नहीं करते? केवल इतना कह सकता हूं कि ऐसा करना नासमझी होगी. हमारी सुरक्षा मजबूत करने की राह में कुछ नहीं आना चाहिए और हम पूरी ताकत के साथ ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं. चीन हो या पाकिस्तान, हम समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए दरवाजा खुला रखना चाहते हैं बशर्ते ये सम्मानजनक हो. बहस वास्तविकता से थोड़ी दूर जरूर दिखी लेकिन ये कई मायनों में दिलचस्प थी. मैंने इस प्रस्ताव और बहस का स्वागत किया है. समय-समय पर इस तरह के परीक्षण होते रहें तो अच्छा होगा.

1963 से 1970 तक हर साल आए अविश्वास प्रस्ताव

साल 1963 में पहला अविश्वास प्रस्ताव आया और इसके बाद तो अविश्वास प्रस्ताव की लाइन ही लग गई. पंडित नेहरू का बयान कि इस तरह के प्रयोग होते रहने चाहिए, जैसे विपक्ष के लिए मंत्र बन गया हो. पंडित नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बने लालबहादुर शास्त्री की सरकार को 1964 से 1965 के बीच तीन बार संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा.

लालबहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ सितंबर, 1964 में पहला अविश्वास प्रस्ताव आया और इसके बाद 1965 में दो बार. लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. सरकार का नेतृत्व बदल गया लेकिन नहीं बदली तो हर साल अविश्वास प्रस्ताव लाने की परिपाटी. इंदिरा सरकार के खिलाफ अगस्त, 1966 में पहला अविश्वास प्रस्ताव आया और इसके कुछ ही महीने बाद सरकार को नवंबर, 1966 में भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा. साल 1967 में मार्च और नवंबर, 1968 में फरवरी और नवंबर, एक साल में दो-दो बार सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. 1969 और 1970 में भी विपक्ष ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया.

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19 साल में 21 बार आया अविश्वास प्रस्ताव, इंदिरा के खिलाफ 15 

साल 1963 में पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था और साल 1970 आते-आते इसकी संख्या 12 तक पहुंच गई थी. 1963 से 1982 तक, 19 साल में 21 अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जा चुके थे. प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी को सबसे अधिक 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा.

पंडित नेहरू, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के खिलाफ सबसे कम एक-एक बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए गए. लाल बहादुर शास्त्री और पीवी नरसिम्हाराव की सरकार के खिलाफ तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव आए तो वहीं नरेंद्र मोदी और मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते दो-दो बार.

अविश्वास प्रस्ताव का प्रावधान लोकसभा के नियम में

अविश्वास प्रस्ताव का नियम लोकसभा के नियम 198 में है. संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत ये व्यवस्था है कि संसद के दोनों सदनों को कार्यवाही के संचालन के लिए अपने मुताबिक नियम बना सकते हैं. अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जाता है. लोकसभा का कोई भी सदस्य अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है. अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस लोकसभा स्पीकर तभी स्वीकार कर बहस के लिए स्वीकृति देते हैं जब उसे कम से कम 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त हो.

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