पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. पीएफआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर UAPA के तहत संगठन को बैन करने के फैसले को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पीएफआई की याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट जाने को कहा है.
दरअसल, केंद्र सरकार ने देश में सांप्रदायिक नफरत फैलाने के आरोप में पीएफआई को 5 साल के लिए बैन कर दिया था. इतना ही नहीं केंद्र ने इसे गैर कानूनी संगठन घोषित किया था. केंद्र सरकार के इस फैसले को UAPA ट्रिब्यूनल ने बरकरार रखा था.
पीएफआई ने UAPA ट्रिब्यूनल के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ट्रिब्यूनल के आदेश को पहले हाईकोर्ट में चुनौती देनी चाहिए थी. आप सीधे सुप्रीम कोर्ट क्यों चले आए?
पिछले साल सितंबर में देशभर में पीएफआई के ठिकानों पर पर NIA, ED और राज्यों की पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी की थी. इन छापेमारी के दौरान पीएफआई से जुड़े सैकड़ों लोग गिरफ्तार किए गए थे. जांच एजेंसियों को PFI के खिलाफ तमाम सबूत मिले थे. इसके बाद जांच एजेंसियों ने गृह मंत्रालय से कार्रवाई की मांग की थी. जांच एजेंसियों की सिफारिश पर गृह मंत्रालय ने PFI पर बैन लगाने का फैसला किया.
क्या है पीएफआई?
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों के मिलने से बना था. इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिता नीति पसरई साथ आए. PFI खुद को गैर-लाभकारी संगठन बताता है.
PFI में कितने सदस्य हैं, इसकी जानकारी संगठन नहीं देता है. हालांकि, दावा करता है कि 20 राज्यों में उसकी यूनिट है. शुरुआत में PFI का हेडक्वार्टर केरल के कोझिकोड में था, लेकिन बाद में इसे दिल्ली शिफ्ट कर लिया गया था. ओएमए सलाम इसके अध्यक्ष हैं और ईएम अब्दुल रहीमान उपाध्यक्ष.