
मॉनसून की बारिश से जहां लोगों के चेहरों पर खुशी देखने को मिली तो वहीं कई इलाकों में मुसीबत भी बनी. देश की राजधानी से सटी प्लांड सिटी गुरुग्राम का भी हाल-बेहाल है. बरसात में जलभराव से ऐसी स्थिति देखने को मिली कि लोग हैरान और परेशान नजर आए. ऐसे में गुरुग्राम के लिए मॉनसून को मुसीबत का दूसरा का नाम कहा जाए तो गलत नहीं होगा. सुनियोजित तरीके से बनाया गया गुरुग्राम शहर अपने दावों के उलट साबित हुआ. हालांकि, अन्य प्लांड सिटी नोएडा और ग्रेटर नोएडा की स्थिति गुरुग्राम के मुकाबले काफी बेहतर है. जहां हर मॉनसून में गुरुग्राम पानी में डूब जाता है तो वहीं नोएडा-ग्रेटर नोएडा को ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता. वहीं राजधानी दिल्ली के सबसे अच्छे इलाके भी अब ज्यादा बारिश नहीं झेल पाते. महज़ दो दिन की बारिश में क्नॉट प्लेस और खान मार्केट भी लबालब नजर आए. आइये जानते है इसके पीछे की वजह.
नोएडा vs गुरुग्राम
जलभराव की सबसे बड़ी वजह इन दोनों शहरों में नालों की संख्या का अंतर है. जहां नोएडा में 87 किलोमीटर लंबे बड़े नाले हैं तो वहीं गुरुग्राम इतनी ही आबादी के लिए 40 किलोमीटर से कम लंबे नाले पर निर्भर है. जबकि दोनों शहरों में करीब 30 लाख लोग रहते हैं. वहीं, नोएडा में जमीन या घर व्यक्तियों या बिल्डरों को बेचने के लिए पहले कुछ मानदंडों को पूरा करना पड़ता है. जिसमें सड़क, बिजली और सीवर की व्यवस्था जरूरी है. इन तीन बुनियादी सुविधाओं के बाद ही जमीन को आवासीय या व्यावसायिक प्रयोजन के लिए बेचा जाता है. नोएडा की प्लानिंग गुरुग्राम से काफी बेहतर है, जिसके परिणामस्वरूप शहर में जलजमाव कम होता है.
नोएडा में बेहतर प्लानिंग
आर्किटेक्ट और टाउन प्लानर अर्चित प्रताप सिंह का कहना है, "नोएडा की प्लानिंग गुरुग्राम से बेहतर है. गुरुग्राम के उलट, प्राधिकरण द्वारा अधिग्रहित नोएडा की जमीन को पहले बिजली, सड़क और सीवर जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं, उसके बाद ही यह आवासीय या वाणिज्यिक बिक्री के लिए उपलब्ध होती है. वहीं, शहरभर में 87 किलोमीटर से अधिक का जल निकासी नेटवर्क पूरी तरह से काम करता है और अत्यधिक बारिश के दौरान सारा पानी हिंडन या यमुना नदी में बह जाता है." अर्चित ने आगे कहा कि जलभराव नोएडा में भी होता है, लेकिन जल निकासी की बेहतर व्यवस्था की वजह से ये जल्दी ही साफ हो जाता है.
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गुरुग्राम में नालों की तादाद कम
वहीं, गुरुग्राम की बात करें तो यहां तीन नाले हैं. एंबिएंस मॉल के साथ एक नाला सीधे नजफगढ़ नाले में जाता है और दूसरा, डीएलएफ 1, 2 और 3, सुशांत लोक-1, एमजी रोड से पानी लाता है और तीसरा आसपास के अन्य क्षेत्र इफ्को चौक से होते हुए नजफगढ़ नाले में लाता है. आर्किटेक्ट और टाउन प्लानर अर्चित प्रताप सिंह का कहना है कि नजफगढ़ ड्रेन शहर के 60 प्रतिशत से अधिक जल निकासी का बोझ उठाती है. यह ड्रेन केवल 27 किमी लंबी है और अभी भी निर्माणाधीन है. इससे सिस्टम में जटिलताएं होती हैं और शहर में बेहद जलभराव होता है.
अरावली पर्वतमाला गुरुग्राम शहर को अर्धचंद्राकार या अर्धवृत्ताकार तरीके से घेरती है. पहाड़ी ढलानों से बारिश का पानी सीधे शहर की ओर आता है और शहर के पहले से भरे जल निकासी प्रणाली में प्रवेश करता है क्योंकि शहर में अलग से तूफानी जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए मध्यम से भारी बारिश के दौरान यहां समस्या बढ़ जाती है.
पुराना हो चुका दिल्ली का सिस्टम
दुनियाभर में दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस और खान मार्किट जैसे इलाकों में भी सड़कों पर सैलाब नजर आ रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली का इंफ्रा 50 मिमी से ज्यादा बारिश नहीं झेल सकता और दो दिनों में हुई 155 मिमी बारिश से पूरी दिल्ली में चौतरफा सैलाब जैसा मंज़र छा गया है. लुटियंस दिल्ली और सेंट्रल जोन का ड्रेनेज सिस्टम ब्रिटिश कालीन है. कम बारिश होने पर पीडब्लूडी, एमसीडी जलबोर्ड और फ्लड विभाग जून जुलाई के आसपास नाले साफ करवाते हैं और मॉनसून की तैयारियां करते हैं. लेकिन इधर बारिश का पैटर्न बहुत तेज़ी से बदला और अब मॉनसून ही नहीं, गर्मी-सर्दी के मौसम में भी बारिश होने पर भयंकर जलजमाव दिल्ली को प्रभावित करने लगा है.
दिल्ली में जलजमाव पर शहरी मामलों के जानकार जगदीश ममगाई का कहना है कि पानी के आउटफ्लो के लिए इंतजाम उस वक्त की जनसंख्या के हिसाब से था. अब ढांचा भी उसी पर निर्भर है तो वह प्रभावित होगा. दिल्ली के नए नवेले कर्तव्य पथ और सेंट्रल वर्ज भी पानी से भर गए तो इसके पीछे पानी की मात्रा ज्यादा थी. दिल्ली के पास जगह की कमी है. अधिकतर नाले यमुना की तरफ गिरते हैं. हरियाणा ने 1 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा और यमुना खतरे के निशान को पार कर गई. उन्होंने बताया कि बारिश के पानी से यमुना ओवरफ्लो हो जाती है तो उससे जुड़ने वाले नाले बैक फ्लो करते हैं. इस आउटफ्लो से बचने के लिए सिस्टम को बदलना होगा. बड़े ड्रेनेज सिस्टम बनाने होंगे. जगदीश का दावा है कि 2041 के मास्टर प्लान में वाटर के इवैकुएशन (निकासी) के लिए अलग से प्लान होना चाहिए. ये कई बार लिखा गया है, लेकिन एजेंसीज का ध्यान नहीं गया.