ओडिशा के आर्मी ऑफिसर और उनकी मंगेतर के साथ यौन उत्पीड़न के चौंकाने वाले मामले के एक महीने बाद ओडिशा पुलिस की जांच में कई कमियां नजर आई हैं. इस मामले की जांच CID को सौंपी गई थी, जिसमें कई कमियां पाई गई हैं. जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि सबसे बड़ी खामी यह है कि एसआई प्रशांत महाराणा का नाम आरोपियों की सूची से छूट जाना है. एसआई महाराणा, जिन्होंने कैप्टन गुरवंश को गिरफ्तार किया और कथित तौर पर लड़की का यौन उत्पीड़न किया, उनको कैप्टन गुरवंश की शिकायत में बार-बार उल्लेख किए जाने के बावजूद CID द्वारा आरोपी नहीं बनाया गया है. महाराणा की संलिप्तता को बताना जरूरी था फिर भी सीआईडी ने उन्हें जवाबदेह नहीं ठहराया, जिससे पुलिस कर्मियों को बचाने का संदेह पैदा हुआ.
FIR में अलग-अलग नाम
कैप्टन गुरवंश की एफआईआर में सात पुलिस अधिकारियों का नाम था, लेकिन सीआईडी ने केवल पांच के खिलाफ कार्रवाई की है. यह गलती जांच के पीछे की गहनता और मंशा पर सवाल उठाती है. मामले से दो अधिकारियों को क्यों बाहर रखा गया?
आरोपी की पहचान नहीं कराई गई
शिकायतकर्ताओं द्वारा आरोपी की पहचान की पुष्टि करने के लिए पहचान परेड (टीआई परेड) एक मानक प्रक्रिया है, फिर भी सीआईडी इसे नहीं करा पाई. इसके बजाय, वे सीधे अज्ञात पुलिस अधिकारियों पर पॉलीग्राफ टेस्ट करने लगे. टीआई परेड के बिना, यह स्पष्ट नहीं है कि सही अधिकारियों से पूछताछ की जा रही है या नहीं, जिससे जांच में भरोसा और कम होता जा रहा है. पुलिस की बर्बरता के आरोपों के साथ-साथ कैप्टन गुरवंश की एफआईआर में रोड रेज की घटना में शामिल 10-12 व्यक्तियों के खिलाफ शिकायतें शामिल थीं. अब तक केवल सात लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनकी संलिप्तता की पुष्टि करने के लिए कोई टीआई परेड नहीं है. यह अनिश्चित है कि क्या सही व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था या कुछ अपराधी अभी भी फरार हैं.
बयान पर भरोसा नहीं
मंगेतर और कैप्टन गुरवंश दोनों ने 22 और 23 सितंबर को सीआईडी को बयान दिए, फिर भी वे बयान अंतिम सत्यापन के लिए उन्हें नहीं दिखाए गए. प्रक्रिया के अनुसार, शिकायतकर्ताओं को उनके बयानों की सत्यता की पुष्टि करने के लिए एक अंतिम दस्तावेज दिया जाना चाहिए था. इस चूक से यह चिंता पैदा होती है कि क्या उनकी गवाही सही तरीके से दर्ज की गई है या उसके साथ छेड़छाड़ की गई है.
शिकायत दर्ज करने से इनकार
15 सितंबर की घटना के बारे में मंगेतर की शिकायत को सीआईडी ने सिरे से खारिज कर दिया है और उनके आरोपों के संबंध में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है. सीआईडी के लिखित जवाब में कहा गया है कि वे उनकी शिकायत पर विचार नहीं करेंगे, जिससे पक्षपातपूर्ण जांच के बारे में और संदेह पैदा होता है.
सबूतों को नष्ट करना
भरतपुर पुलिस स्टेशन में एक बेहद संदिग्ध घटना में संभावित सबूतों को नष्ट करना शामिल है. 23 सितंबर को, स्टेशन पर एक ‘हवन’ किया गया था, और जिस कमरे में लड़की को कथित तौर पर बांधा गया था और पीटा गया था, उसे कथित तौर पर 25 सितंबर तक सजा दिया गया था. इन कार्रवाइयों का समय अपराध स्थल के साथ छेड़छाड़ की चिंता को जन्म देता है.
कैदी की पहचान औपचारिक रूप से नहीं की गई
कैप्टन गुरवंश के साथ एक सेल में मौजूद व्यक्ति की पहचान की गई और उसका वीडियो कैप्टन गुरवंश को दिखाया गया. हालांकि, औपचारिक अनुरोधों के बावजूद, कोई आधिकारिक पहचान प्रक्रिया नहीं हुई है. यह शामिल व्यक्तियों की औपचारिक रूप से पुष्टि करने की प्रक्रिया को कमजोर करता है.
सीसीटीवी लीक
जांच का एक और खतरनाक पहलू सीसीटीवी फुटेज के इर्द-गिर्द घूमता है. जहां घटना वाले रेस्टोरेंट से हार्ड ड्राइव जब्त कर ली गई है, वहीं सम अस्पताल और कैपिटल अस्पताल से वीडियो सार्वजनिक रूप से लीक कर दिए गए हैं. इन संवेदनशील वीडियो को कैसे सार्वजनिक किया गया, यह एक रहस्य बना हुआ है, जिससे जांच की ईमानदारी पर सवाल उठ रहे हैं.
15 सितंबर को सेना के अधिकारी और उनकी मंगेतर के साथ यौन उत्पीड़न और उत्पीड़न की घटना के बाद सेना ने ओडिशा सरकार के सामने यह मुद्दा उठाया था. मामला सीआईडी को ट्रांसफर कर दिया गया था, लेकिन मामले की कार्यवाही ने जांच पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.