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ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन एक्सीडेंट का मंजर रूह कंपा देने वाला था. घायलों की मदद के लिए मौके पर पहुंचे युवाओं ने बताया कि वे जहां पैर रख रहे थे, वहां मांस के टुकड़े जूते-चप्पलों में चिपक जा रहे थे. लोग मदद के लिए चीख रहे थे. तुरंत उन्हें बाहर निकालने में जुट गए. इसी के साथ सैकड़ों लाशें भी निकालीं. बालासोर में हादसे का शिकार हुए लोगों की मदद करने वाले 'रियल हीरोज' ने जो बताया, वो दिल दहला देने वाला है.
ओडिशा रेल हादसे के चश्मदीद 38 वर्षीय तुकना दास ने बताया कि वह बेहरामपुर के रहने वाले हैं. यहां मंदिर को ठीक करने का काम चल रहा है. इसलिए वह यहीं पर काम भी करते हैं और रहते भी यहीं हैं. जिस जगह ट्रेन हादसा हुआ वह मंदिर से ज्यादा दूर नहीं है. इसलिए जैसे ही उन्हें जोर की आवाज सुनाई तो वह समझ गए कि कोई ट्रेन हादसा हुआ है.
तुकना दास ने बताया, ''मैं दौड़कर हादसे वाली जगह पहुंचा. वहां तीन ट्रेनें आपस में टकराई हुई थीं. बड़ा ही भयानक मंजर था वो. हर तरफ चीख-पुकार मची हुई थी. मैंने आव देना न ताव, सीधे लोगों की मदद करने में लग गया. मैं एक कोच के अंदर जैसे ही दाखिल हुआ वहां 60 शव पड़े हुए दिखाई दिए. इसी के साथ कई लोग मदद के लिए पुकार रहे थे. मुझसे जितना हो सका मैंने उनकी मदद की. मैंने घायलों को ट्रेन से बाहर निकाला. पानी पिलाया. और उन्हें अस्पताल पहुंचाने में मदद की.''
वहीं, यहीं के रहने वाले कुछ लोकल लड़कों ने भी बताया कि कैसे उन्होंने हादसे में घायल लोगों की मदद की. आलोग ने बताया कि हम तीन दोस्त हादसे के वक्त पास ही में थे. जैसे ही ट्रेन एक्सीडेंट का हमें पता चला तो हम मौके पर पहुंचे. हमने ट्रेन में फंसे घायल लोगों को बाहर निकाला. हमने 150 से ज्यादा लोगों के शवों को बाहर निकाला.
जूते-चप्पलों से चिपक रहे थे मांस के टुकड़े
आलोक के दोस्त ने बताया कि हादसे का दृश्य इतना रोंगटे खड़े कर देने वाला था कि हम जब लोगों की मदद के लिए बोगियों के अंदर गए, हर जगह कटे हाथ, कटे पांव तो कटे हुए सिर भी दिखाई दे रहे थे. जहां जहां पांव रख रहे थे, वहीं मांस के टुकड़े हमारे जूते-चप्पलों से चिपक जा रहे थे. हमें समझ नहीं आ रहा था पहले कि हम करें तो आखिर क्या करें. फिर हमने सबसे पहले घायलों को ढूंढना शुरू किया. जितना संभव हो सकता था, हमने उनकी मदद की.
'याद नहीं करना चाहता हूं वो मंजर'
तीसरे दोस्त ने बताया कि सबसे पहले हमने घायलों को बाहर निकाला. उन्हें पानी पिलाया. उन्हें अस्पताल पहुंचाया. हम पूरी रात लोगों की मदद में जुटे रहे. हमारे अलावा कई और भी लोग थे जो घायलों की मदद कर रहे थे. लेकिन वो दृश्य इतना खौफनाक था कि मैं उसे कभी दोबारा याद भी नहीं करना चाहता हूं. लोगों की चीख अभी तक मेरे कानों में गूंज रही है. हमें इस हादसे का बहुत दुख है. लेकिन हमसे जितना हो पाया हमने लोगों की मदद की.
NDRF जवान ने दी थी ट्रेन दुर्घटना की सूचना
वहीं, कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) का एक जवान संभवत: पहला शख्स था जिसने शुरुआती बचाव कार्य में शामिल होने से पहले ट्रेन दुर्घटना के बारे में आपातकालीन सेवाओं को सूचित किया था. एनडीआरएफ के जवान वेंकटेश एन. के. छुट्टी पर थे और पश्चिम बंगाल के हावड़ा से तमिलनाडु की यात्रा कर रहे थे. रेलवे अधिकारियों ने बताया कि हादसे में वेंकटेश बाल-बाल बच गए क्योंकि उनका कोच बी-7 पटरी से उतर गया था लेकिन आगे के कोचों से नहीं टकराया. वह थर्ड एसी कोच में थे और उनकी सीट संख्या 58 थी.
वेंकटेश बने घायलों के लिए मसीहा
कोलकाता में एनडीआरएफ की दूसरी बटालियन में तैनात 39 वर्षीय वेंकटेश ने सबसे पहले बटालियन में अपने वरिष्ठ निरीक्षक को फोन करके दुर्घटना की जानकारी दी. इसके बाद उसने व्हाट्सएप पर साइट की लाइव लोकेशन एनडीआरएफ नियंत्रण कक्ष को भेजी और इसका उपयोग बचाव दल ने मौके पर पहुंचने के लिए किया.
वेंकटेश ने कहा, 'मुझे जोर का झटका लगा...और फिर मैंने अपने कोच में कुछ यात्रियों को गिरते हुए देखा. मैंने पहले यात्री को बाहर निकाला और उसे रेलवे ट्रैक के पास एक दुकान में बिठाया...फिर मैं दूसरों की मदद के लिए दौड़ा.'
पीएम ने किया था दुर्घटनास्थल का मुआयना
आपको बता दें कि ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार को हुए रेल हादसे में 288 लोगों को मौत हो चुकी है. अभी भी इस ट्रैक से ट्रेनों का आवागमन शुरू नहीं हो पाया है. अभी भी ट्रैक पर ट्रेन एक्सीडेंट के कारण क्षतिग्रस्त बोगियों का मलबा पसरा हुआ है. शनिवार को, पीएम मोदी ओडिशा के बालासोर में भीषण रेल हादसा होने के बाद घटनास्थल पर पहुंचे थे और रेस्क्यू ऑपरेशन का जायजा लिया था.
इसके बाद वो अस्पताल वो अस्पताल पहुंचे और घायलों का हालचाल जाना और उनसे बातचीत की. पीएम मोदी ने इस दौरान कहा था कि जो भी लोग इस घटना में दोषी पाए जाएंगे उन्हें बख्शा नहीं जाएगा.