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तकनीक की कमजोरी या बेईमानी... पुराना इंफ्रास्ट्रक्चर बाढ़-भूकंप सब सह गया, नया वाला पानी में कैसे बह गया?

दिल्ली में कल शाम हुई बारिश के बाद 32 से ज्यादा अंडरपास में पानी भर गया, 70 से ज्यादा लिंक रोड पर ट्रैफिक ठप हो गया और कई रिहायशी इलाकों में भी बाढ़ जैसे हालात बन गए. सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि भारत का जो इंस्टीट्यूट ऑफ टाउन प्लानर्स शहरों के विकास की योजना बनाता है, आज वो खुद अपनी बिल्डिंग को बारिश के पानी से बचा नहीं पाया.

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बारिश और बाढ़ से कई शहरों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को हुआ नुकसान (फोटो: PTI)
बारिश और बाढ़ से कई शहरों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को हुआ नुकसान (फोटो: PTI)

बारिश और बाढ़ में डूबते शहर, हमारे देश की अलग-अलग सरकारों में जितना भी इन्फ्रास्ट्रक्चर बना, वो इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत क्यों नहीं है? जबकि इसी देश में मुगलों, हिंदू राजाओं और अंग्रेजों के जमाने में बने पुल, इमारतें और बड़े-बड़े भवन आज भी उसी रूप में सुरक्षित हैं. पिछले 24 घंटे में बारिश और बाढ़ से हमारे देश में 42 लोगों की मौतें हुई हैं जबकि 52 लोग अब भी लापता हैं. इनमें 11 मौतें देश की राजधानी दिल्ली में हुई हैं, 15 मौतें उत्तर प्रदेश में, 10 मौतें उत्तराखंड में, 4 मौतें जयपुर में और दो मौतें हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में हुई हैं और वहां 52 लोग अब भी लापता हैं. इनमें कुछ लोग बारिश में करंट लगने से मारे गए, कुछ नालों और बेसमेंट में डूबकर मर गए और कुछ लोगों की मौत उनके मकान की छत और दीवार गिरने से हो गई. 

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आज दिल्ली की एक सड़क पर हुए एक गड्ढे की पूरे देश में चर्चा हो रही है. दिल्ली का हर व्यक्ति सरकार को सालाना 80 हजार रुपये का टैक्स देता है. गुरुग्राम में ढाई लाख रुपये, मुंबई में सवा दो लाख रुपये, बेंगलूरु में डेढ़ लाख रुपये, अहमदाबाद में 70 हजार रुपये और चेन्नई में हर व्यक्ति सरकार को सालाना 75 हजार रुपये का टैक्स देता है. सरकारें टैक्स के इन पैसों से जो सड़कें, हाइवे, पुल, अस्पताल, स्कूल और एयरपोर्ट बनाती हैं, उनकी कुछ ही वर्षों में दुर्गति हो जाती है.

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जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के मुख्य टर्मिनल पर भरा पानी

जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के मुख्य टर्मिनल पर इतना पानी भर गया कि वहां यात्रियों को कई घंटे संघर्ष करना पड़ा. बात सिर्फ इस एयरपोर्ट की नहीं है. इस समय जयपुर के लगभग सभी इलाकों में बाढ़ जैसे हालात हैं और कुछ इलाकों में तो स्थिति ये है कि वहां सैकड़ों मकान बारिश के पानी में जल समाधि ले चुके हैं और इनमें एक परिवार के तीन लोगों की मौत भी हो गई है.

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ये लोग एक मकान के बेसमेंट में रह रहे थे, जहां बारिश का पानी भरने से इन लोगों की उसमें डूबने से मौत हो गई. ये उस जयपुर का हाल है, जहां सरकार हर साल जनता के टैक्स के पैसों से इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 400 करोड़ रुपये खर्च करती है. 

दिल्ली से बहकर नोएडा पहुंचा मां-बेटी का शव

देश की राजधानी दिल्ली का हाल भी बहुत अलग नहीं है, जहां बारिश और बाढ़ के चलते इन्फ्रास्ट्रक्चर ने कुछ ही वर्षों में जवाब दे दिया है. दिल्ली में कल शाम हुई बारिश के बाद 32 से ज्यादा अंडरपास में पानी भर गया, 70 से ज्यादा लिंक रोड पर ट्रैफिक ठप हो गया और कई रिहायशी इलाकों में भी बाढ़ जैसे हालात बन गए.

सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि भारत का जो इंस्टीट्यूट ऑफ टाउन प्लानर्स शहरों के विकास की योजना बनाता है, आज वो खुद अपनी बिल्डिंग को बारिश के पानी से बचा नहीं पाया. दिल्ली की हालत ये हो गई कि यहां यमुना नदी से ज्यादा पानी दिल्ली की सड़कों पर नजर आ रहा था. बात सिर्फ बारिश और उसके कारण हुए जलभराव की नहीं है.

दिल्ली के गाजीपुर में एक महिला और उसकी तीन साल की बच्ची बारिश के दौरान एक नाले में बह गए और अब उनका शव 7 किलोमीटर दूर नोएडा के पास मिला है. इसी तरह दिल्ली के एक और इलाके में एक मकान की छत गिरने से एक व्यक्ति की मौत हो गई. जबकि एक इलाके में बिजली की तारों से करंट लगने के कारण एक छात्र की कोचिंग सेंटर जाते हुए मौत हो गई. ये हाल देश की राजधानी दिल्ली में हो रहा है.

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ओल्ड राजेंद्र नगर में कई फीट भरा पानी

दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर से आई तस्वीरों ने सभी को चौंका दिया, जहां पिछले हफ्ते एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत हो गई थी. लेकिन कल एक बार फिर इस इलाके में कई फीट पानी भर गया और जिन कोचिंग सेंटर्स के बेसमेंट को MCD ने सील किया था, वो बेसमेंट एक बार फिर बारिश के पानी से भर गए. ये हाल उस इलाके का है, जहां देशभर से छात्र IAS, IPS और IFS अधिकारी बनने के लिए UPSC परीक्षा की तैयारी करने आते हैं.

पिछले हफ्ते जिस RAU'S स्टडी सर्कल के बेसमेंट में पानी भरने से तीन छात्रों की मौत हुई उस कोचिंग संस्थान की स्थापना आजादी के 6 साल बाद वर्ष 1953 में हुई थी और उस समय डॉ. एस. राव ने इस कोचिंग संस्थान की नींव रखी थी. डॉ. एस. राव भारत में ऐसे युवाओं की पौध तैयार करना चाहते थे, जो नौकरशाही में जाकर भारत की व्यवस्था को बदल सकें. इसके लिए उस समय उन्होंने कनॉट प्लेस के एक होटल के एक छोटे कमरे में छात्रों को पढ़ाना शुरू किया था लेकिन वर्ष 1980 आते-आते ये कोचिंग सेंटर शिक्षा की एक बहुत बड़ी दुकान में बदल गया और आज देशभर में इसके 3 बड़े आउटलेट हैं. इसका सालाना रेवेन्यू 10 करोड़ रुपये है.

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साइबर सिटी बनी 'लेक सिटी'

अब बात गुरुग्राम की जिसे भारत की साइबर सिटी कहा जाता है. लेकिन साइबर सिटी अब 'लेक सिटी' बन चुकी है. जिस गुरुग्राम के लोग सरकार को सालाना ढाई लाख रुपये का टैक्स देते हैं, उस गुरुग्राम में अब लग्जरी गाड़ियों से लेकर बड़े-बड़े बंगले और मकान बाढ़ में डूबे हुए हैं. गुरुग्राम में 24 हजार से ज्यादा बड़ी और मल्टीनेशनल कंपनियां हैं और गुरुग्राम में कई हाउसिंग सोसायटी ऐसी हैं, जहां 100-100 करोड़ रुपये के फ्लैट हैं. 

हाल ही में वहां एक नया लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट आया था, जिसमें 795 फ्लैट थे और हर फ्लैट की औसतन कीमत 7 करोड़ रुपये थी. ये सारे फ्लैट बनने से पहले ही रिकॉर्ड तीन दिनों में बिक गए थे. जिस गुरुग्राम में लोग करोड़ों रुपये खर्च करके इतने महंगे फ्लैट और बंगले खरीद रहे हैं, उस गुरुग्राम का इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐसा है कि ये थोड़ी देर की बारिश भी सहन नहीं कर सकता. आज गुरुग्राम में तीन लोगों की करंट लगने से मौत हो गई है. 

हिमाचल प्रदेश में 52 लोग लापता

बारिश और बाढ़ में सबसे बुरा हाल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का हो गया है. हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और दूसरे इलाकों में बादल फटने से 2 लोगों की मौत हो गई है जबकि 52 लोग अब भी लापता हैं और ऐसी आशंका है कि ये लोग भी मर चुके हैं. हिमाचल प्रदेश में पिछले 24 घंटे से कई इमारतें ध्वस्त होकर उफनती नदियों में समा चुकी हैं. इस जलजले ने हिमाचल प्रदेश के पूरे रोड नेटवर्क को बुरी तरह से प्रभावित किया है. हिमाचल प्रदेश में पिछले एक साल में सड़कें, पुल और बांध बनाने पर लगभग 5 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए. लेकिन ये इन्फ्रास्ट्रक्चर 24 घंटे की भारी बारिश को भी सह नहीं पाया. 

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पहाड़ों पर जब किसी टनल और सड़क का निर्माण होता है, तो इस दौरान दो बातों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है. पहली बात ये कि वो सड़क हर तरह के मौसम की मार को सह पाए और दूसरा, इन्फ्रास्ट्रक्चर की क्वालिटी ऐसी हो कि इसकी बार-बार मरम्मत ना करनी पड़े. लेकिन पिछले 24 घंटे की बारिश ने हिमाचल प्रदेश के इन्फ्रास्ट्रक्चर की पोल खोल कर रख दी है.

उत्तराखंड में रोकनी पड़ी केदारनाथ यात्रा

वहीं उत्तराखंड में टिहरी गढ़वाल में बादल फटने से दो लोगों की मौत हो गई. जबकि केदारनाथ में भी बादल फटने से 30 मीटर की एक सड़क मंदाकिनी नदी में समा गई. ये वही सड़क है जिसका पुनर्निर्माण वर्ष 2020 में हुआ था लेकिन सिर्फ चार वर्षों में ही ये सड़क बारिश में धंस गई और अब इसके कारण केदारनाथ यात्रा को रोक दिया गया है और अब वहां 200 श्रद्धालु फंसे हुए हैं. इस त्रासदी में केदारनाथ के स्थानीय दुकानदारों ने खाने-पीने से लेकर बाकी चीजों के दाम दो से तीन गुना बढ़ा दिए हैं. यहां आम आदमी ही दूसरे आम आदमी को लूटने में जुट गया है. 

नए और पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर में फर्क

अब आपको बताते हैं कि हमारे नए और पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर में क्या फर्क है? आज हमारे देश में नई-नई सड़कें, एक्सप्रेस-वे, बिल्डिंग, एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन बन रहे हैं, लेकिन वो एक बारिश में ही दम तोड़ना शुरू कर देते हैं. पानी अंदर भर जाता है या छत लीक करने लगती है और ये स्थिति भी तब है, जब हमारे देश में हर साल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर सरकारें 10 से 11 लाख करोड़ रुपये खर्च करती हैं.

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महाराष्ट्र में हर साल नए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 74 हजार करोड़ रुपये, दिल्ली में 11 हजार करोड़ रुपये, हरियाणा में साढ़े 18 हजार करोड़ रुपये, हिमाचल प्रदेश में 5 हजार करोड़ रुपये, उत्तराखंड में 13 हजार करोड़ रुपये और उत्तर प्रदेश में 1 लाख 47 हजार करोड़ रुपये हर साल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च होते हैं. लेकिन ये इन्फ्रास्ट्रक्चर एक ही बारिश में दम तोड़ देता है और आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में कंक्रीट रोड की औसत उम्र 25 वर्ष होनी चाहिए लेकिन ऐसी ज्यादातर सड़कें 4 वर्षों में ही दम तोड़ देती हैं. 

सदियों से खड़ी हैं ये इमारतें
 
ये वो इन्फ्रास्ट्रक्चर है जो पिछले कुछ दशकों में बना है और नया इन्फ्रास्ट्रक्चर है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में जो पुराना इन्फ्रास्ट्रक्चर है वो सर्दी, गर्मी, बरसात और तूफान के बीच ऐसे ही खड़ा रहता है.

दिल्ली में गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 13वीं शताब्दी में कुतुब मीनार का निर्माण कराया था. ये कुतुब मीनार पिछले 800 वर्षों से बारिश, तूफान और यहां तक कि हजारों भूकंप सह चुकी है लेकिन कभी ये ध्वस्त होकर नीचे नहीं गिरी. इसी तरह जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने आज से लगभग 1200 वर्ष पहले आठवीं शताब्दी में केदारनाथ मंदिर का निर्माण कराया था. एक समय ऐसा भी आया, जब ये मंदिर पूरे 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा और यहां कई बार बाढ़ भी आई. लेकिन 1200 वर्षों के बाद भी ये मंदिर अपने मूल रूप में ही सुरक्षित है.

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अंग्रेजों के निर्माण आज भी मजबूत
 
इसी तरह अंग्रेजों ने वर्ष 1942 में कलकत्ता में हुगली नदी पर हावड़ा ब्रिज का निर्माण कराया था और आज 82 वर्षों के बाद भी अंग्रेजों द्वारा बनाया गया ये हावड़ा ब्रिज पूरी तरह से सुरक्षित है. इसी तरह वर्ष 1920 में अंग्रेजों ने मुंबई शहर में नरीमन पॉइंट को मालाबार हिल्स से जोड़ने के लिए अरब सागर के साथ एक दीवार खड़ी की थी जिसके साथ मरीन ड्राइव का निर्माण किया गया था और ये दीवार भी आज 104 वर्षों के बाद पूरी तरह से सुरक्षित है जबकि समुद्र की ताकतवर लहरें हर दिन इस दीवार से टकराती हैं.

मुंबई की जिस इमारत में बीएमसी का दफ्तर है, उस इमारत का निर्माण वर्ष 1893 में अंग्रेजों द्वारा किया गया था. आज बीएमसी का दफ्तर अंग्रेजों द्वारा बनाई गई इस बिल्डिंग में है और ये बिल्डिंग आज भी बारिश, तूफान, आंधी और कई भूकंप को सहने के बाद भी सुरक्षित है. लेकिन इस दफ्तर में बैठकर बीएमसी के अधिकारी मुंबई में जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं, वो कुछ वर्ष भी टिक नहीं पाता है. यही स्थिति दिल्ली के इंडिया गेट, लाल किला और आगरा के ताजमहल की है, जो तीन सदियों के बाद भी सुरक्षित हैं.

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