संविधान दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर की कांस प्रतिमा का अनावरण किया. आजादी के 76 साल बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में भारतीय संविधान के निर्माता भीमराव अंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने की पहल मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने की. सात फीट ऊंची पंचधातु की इस प्रतिमा में बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर एक वकील की तरह गाउन और बैंड पहने हुए हैं. उनके हाथ में संविधान की प्रति है. इसे भारतीय मूर्तिकार नरेश कुमावत ने बनाया है.
भीम राव अंबेडकर की मूर्ति के अनावरण के मौके पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोग साफ हवा-पानी की आस लिए भी सुप्रीम कोर्ट आते हैं. हमारी न्यायिक प्रणाली में लोगों का इस कदर भरोसा है कि वे पोस्टकार्ड के जमाने से भी चिट्ठी लिखकर सुप्रीम कोर्ट से न्याय की गुहार लगाते रहे हैं और संतुष्ट होते रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स इस बात की गवाह हैं. सीजेआई ने कहा कि ज्यूडिशियल सिस्टम में जनता का विश्वास ही हमारा श्रद्धा स्थान है. आम जनता के लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे हमेशा खुले हैं.
'सुप्रीम कोर्ट में आया हरेक मुकदमा संविधान के राज की मिसाल'
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष आया हरेक मुकदमा देश में 'संविधान के राज' की मिसाल है. उन्होंने कहा कि संविधान हमें अन्य विवादों के साथ राजनीतिक विवाद भी सुलझाने का अधिकार देता है. बाबासाहेब अंबेडकर की यह प्रतिमा इस बात का प्रतीक है कि संविधान न्याय के लिए कोर्ट तक पहुंचने का अधिकार भी सुनिश्चित करता है. बता दें कि संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया था और फाइनल ड्राफ्ट पर सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए थे. ठीक 2 महीने बाद 26 जनवरी, 1950 को हमारा संविधान लागू हो गया था.
राष्ट्रपति ने कहा- UPSC के साथ ही राज्य स्तरीय चयन व्यवस्था हो
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रतिमा का अनावरण करने के बाद अपने संबोधन में कहा, 'मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं कि राष्ट्रपति बनने के बाद मुझे अनगिनत आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालयों में जाने और वहां प्रतिभाशाली छात्रों से मिलने का अवसर मिला. ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को न्यायपालिका में भेजकर उन्हें देश सेवा में आगे बढ़ाने के इंतजाम होने चाहिए. इसके लिए यूपीएससी के साथ ही राज्य स्तरीय चयन व्यवस्था हो. ताकि राज्य और जिला स्तर की न्यायपालिका में प्रतिभाशाली युवा अपनी सेवाएं दे सकें. ये मेरे विचार हैं. बाकी इसकी व्यवस्था यानी तंत्र बनाने की जिम्मेदारी मैं आपके विवेक (सुप्रीम कोर्ट) पर छोड़ती हूं.'
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि हमारी पौराणिक कथाओं में एक राजा की कहानी है, जिसने अपने महल के दरवाजे पर एक घंटा लगावा रखा था. न्याय की आस में कोई भी फरियादी कभी भी इसे बजा सकता था. उस समय मैं सोचती थी कि ऐसे तो राजा को आराम भी नहीं मिल पाता होगा. हालांकि, फिर यह महसूस हुआ कि ऐसा करने से पहले उसने अपनी न्याय प्रणाली को इस तरह से विकसित किया होगा जिसमें कम से कम लोगों के सामने न्याय का घंटा बजाने की नौबत आए. उन्होने कहा कि हमारा संविधान एक लिखित दस्तावेज है. यह तभी जीवंत रहेगा जब इसके प्रावधान लागू किए जाएं और उनकी व्याख्या होती रहे.
सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी मदर इंडिया की स्टेच्यू वहां से हटाई गई
इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा, उनकी पत्नी, सुप्रीम कोर्ट के अन्य जज, विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदीश अग्रवाला, सचिव राहुल पांडेय और अन्य पदाधिकारियों के साथ प्रतिमा के शिल्पी मूर्तिकार नरेश कुमावत भी मौजूद रहे. राष्ट्रपति मुर्मू और चीफ जस्टिस ने इस अवसर को यादगार बनाने के लिए पौधरोपण भी किया. सुप्रीम कोर्ट परिसर में स्थित आइकॉनिक मदर इंडिया की प्रतिमा फिलहाल वहां से हटा दी गई है. उसी की जगह बाबसाहेब की प्रतिमा स्थापित की गई है.
सात फीट ऊंची पंचधातु की इस प्रतिमा को नरेश कुमावत ने बनाया
मदर इंडिया की कांसे की इस प्रतिमा में भारत माता को एक महिला के रूप में मूर्त किया गया था, जिनकी गोद में लोकतंत्र का प्रतीक शिशु था, जिसके हाथ में संविधान के प्रतीक के रूप में एक खुली किताब थी. किताब पर समता का प्रतीक तराजू बना था. इस मूर्ति में प्रतीकात्मक रूप से बताया गया था कि सुप्रीम कोर्ट युवा भारत गणराज्य में कानून के राज को प्रश्रय और संरक्षण दे रहा है. यह प्रतिमा भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक चिंतामणिकर ने बनाई थी. सुप्रीम कोर्ट परिसर में दूसरी प्रतिमा गांधी जी की है, जो ब्रिटिश कलाकार फ्रीडा ब्रिलियंट मार्शल ने बनाई है. तीसरी प्रतिमा बाबासाहेब भीम राव अंबेडकर की है.