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एक देश-एक चुनाव का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है. केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र को बुलाया है. कहा जा रहा है कि इस विशेष सत्र में सरकार कई महत्वपूर्ण बिलों को पेश कर सकती हैं, जिनमें एक देश-एक चुनाव बिल भी शामिल हो सकता है.
एक देश-एक चुनाव पर पहली बार विवाद 2018 में शुरू हुआ था. उस समय लॉ कमीशन ने एक देश-एक चुनाव का समर्थन कर रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी. लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के मुद्दे पर मसौदा रिपोर्ट केंद्रीय विधि आयोग को दी गई थी. इस रिपर्ट में संविधान और चुनाव कानूनों में बदलाव की सिफारिश की गई थी.
क्या था लॉ कमीशन की रिपोर्ट में?
लॉ कमीशन ने रिपोर्ट में कहा था कि देश में बार-बार चुनाव कराए जाने से पैसा और संसाधनों की जरूरत से अधिक बर्बादी होती है. संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर एक साथ चुनाव करना संभव नहीं है इसलिए हमने कुछ जरूरी संवैधानिक संशोधन करने के सुझाव दिए हैं. आयोग ने सुनिश्चित किया है कि संविधान में आमूलचूल संशोधन की जरूरत है, जिस पर चर्चा होनी चाहिए.
कमीशन ने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराए जाने से जनता का पैसा बचेगा, प्रशासनिक भार कम होगा और साथ में सरकारी नीतियां बेहतर तरीके से लागू होंगी. एक-साथ चुनाव कराए जाने से स्टेट मशीनरी पूरा साल चुनाव की तैयारियों में जुटे रहने के बजाए विकास के कार्यों में जुट सकेंगी.
कमीशन ने यह भी सुझाया था कि दसवीं अनुसूची के तहत दल-बदल के मुद्दे पर चेयरमैन या स्पीकर को फैसला लेना चाहिए. लेकिन यह फैसला छह महीने की अवधि के भीतर ही लेना होगा. साथ में यह भी कहा गया कि आरपीए एक्ट 1951 के संबंधित प्रावधानों में संशोधन की भी सिफारिश की थी ताकि सभी उपचुनाव एक साथ कराए जा सकें. बता दें कि इससे पहले 1951-1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और सभी विधानसभाओं में एक साथ चुनाव कराए गए थे.
विधि मंत्री ने एक देश-एक चुनाव पर क्या कहा था?
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान विधि मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा था कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए एक व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा तैयार करने के वास्ते मामले को आगे की जांच के लिए विधि आयोग के पास भेज दिया गया है.
संवैधानिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर एक देश-एक कानून बिल को लागू किया जाता है तो इसके लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन किए जाने चाहिए.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने एक देश-एक चुनाव को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया उतनी आसान रहने वाली नहीं है. संविधान के तहत लोकसभा और विधानसभाओं को पांच साल के लिए चुना जाता है. पांच साल की अवधि पूरी होने से पहले किसी सदन को भंग करने के लिए आवश्यक मंजूरियां लेनी होती हैं. केंद्र सरकार आर्टिकल 356 के तहत ही हस्तक्षेप कर सकती है.
उन्होंने कहा कि सरकार की सिफारिश पर ही किसी असेंबली को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग किया जा सकता है. या फिर आर्टिकल 356 के तहत केंद्र की सरकार ही असेंबली को भंग कर सकती है. हालांकि, अभी यह देखना पड़ेगा कि क्या असल में संविधान में संशोधन की जरूरत भी है या नहीं.
आचार्य ने कहा कि संवैधानिक संशोधन आर्टिकल 368 के तहत होता है. अगर सदन में बहुमत के दम पर बिल पारित होता भी हो तो उसके बाद राज्य की मंजूरी लेना भी जरूरी है.
उन्होंने कहा कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि किस तरह का बिल लेकर आना है. संविधान में साफतौर पर लिखा हुआ है कि कार्यकाल खत्म होने से पहले असेंबली को केवल तभी भंग किया जा सकता है, जब वहां की स्थानीय सरकार राज्यपाल से सिफारिश करे. केंद्र सरकार आर्टिकल 356 के तहत हस्तक्षेप कर सकती है. वरना नहीं.
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 85 में संसद का सत्र बुलाने का प्रावधान है. इसके तहत सरकार को संसद के सत्र बुलाने का अधिकार है. संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति निर्णय लेती है जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है, जिसके जरिए सांसदों को एक सत्र में बुलाया जाता है.
बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन कर रही है. इसके पीछे तर्क है कि इससे देश के नागरिकों पर चुनावी खर्चों का अतिरिक्त भार कम होगा और बार-बार चुनाव कराने के लिए संसाधनों के इस्तेमाल की बचत होगी.
देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव की वकालत करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी लॉ कमीशन को पत्र लिख चुके हैं. उन्होंने कहा था कि एक साथ चुनाव कराए जाने से चुनाव में बेतहाशा खर्च पर लगाम लगेगी और देश के संघीय ढांचे को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.
क्या कभी एक-साथ होते थे चुनाव?
- आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे.
- इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.
- अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं.
- पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव. और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव. लेकिन इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना होगा तो किसी को समय से पहले भंग करना होगा. और ये सब बगैर संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं है.
कैसे हो सकते हैं एक साथ चुनाव?
- विकल्प 1: कुछ राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होते हैं. कुछ राज्यों में लोकसभा से कुछ महीने पहले होते हैं. तो वहीं, कुछ राज्यों में लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद ही चुनाव होते हैं. ऐसे में कुछ राज्यों में विधानसभा समय से पहले भंग करके और कुछ का कार्यकाल बढ़ाकर लोकसभा चुनाव के साथ ही चुनाव कराए जा सकते हैं.
- विकल्प 2: कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के दो साल बाद खत्म होती है. ऐसे में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव हो जाएं. और दूसरे फेज में बाकी बचे राज्यों के चुनाव हो जाएं. ऐसा होता है तो पांच साल में दो बार ही विधानसभा चुनाव होंगे.
- विकल्प 3: लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि अगर एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते, तो फिर एक साल में होने वाले सभी चुनाव साथ में करा दिए जाएं. इससे साल में बार-बार होने वाले चुनावों से बचा जा सकेगा.
पर सरकार पहले गिर गई तो?
- मान लीजिए कि किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है और वो पास हो जाता है तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? क्योंकि इससे तो फिर एक साथ-एक चुनाव वाली स्थिति बिगड़ सकती है.
- ऐसी स्थिति से बचने के लिए भी लॉ कमीशन ने सुझाव दिया था. लॉ कमीशन ने सुझाया था कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मौजूदा सरकार को तभी हटाया जाना चाहिए, जब दूसरी सरकार पर विश्वास हो. ताकि, लोकसभा या विधानसभा भंग न हो.
और किसी देश में होते हैं साथ में चुनाव?
- दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां पर सारे चुनाव एक साथ ही कराए जाते हैं. साउथ अफ्रीका में संसद, प्रांतीय विधानसभा और नगर पालिकाओं के चुनाव एक साथ होते हैं. यहां हर पांच साल में चुनाव कराए जाते हैं.
- स्वीडन में भी एक साथ ही चुनाव होते हैं. यहां हर चार साल में आम चुनाव के साथ-साथ काउंटी और म्यूनिसिपल काउंसिल के चुनाव होते हैं.
- बेल्जियम में पांच तरह के चुनाव होते हैं. ये हर पांच साल के अंतर पर होते हैं. और सारे चुनाव साथ कराए जाते हैं.
- यूके में हाउस ऑफ कॉमन्स, स्थानीय चुनाव और मेयर चुनाव साथ में होते हैं. यहां पर मई के पहले हफ्ते में सारे चुनाव कराए जाते हैं. यूके के संविधान के तहत, समय से पहले चुनाव तभी हो सकते हैं जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए और कोई दूसरी पार्टी सरकार न बना सके.
- इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और लेजिस्लेटिव इलेक्शन साथ में होते हैं. इनके अलावा जर्मनी, फिलिपींस, ब्राजील, बोलीविया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, गुआना, होंडुरस जैसे देशों में भी एक साथ ही सारे चुनाव होते हैं.