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Guillain Barre Syndrome: अब कोलकाता में इस सिंड्रोम से युवक की मौत, जानें क्या हैं बीमारी के लक्षण और कैसे करें बचाव

सबसे पहले सिंड्रोम की चपेट में आने से बचने के लिए जरूरी है कि खुद को किसी तरह के वायरल इंफेक्शन से बचाए रखें. क्योंकि अगर आप बुखार-खांसी के शिकार होंगे तो हमारी बॉडी की इम्युनिटी कमजोर होगी और सिंड्रोम को ट्रिगर होने में मदद मिलेगी.

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पुणे के बाद कोलकाता में एक मरीज की मौत
पुणे के बाद कोलकाता में एक मरीज की मौत

देश में एक रहस्यमयी बीमारी गुइलेन बैरी सिंड्रोम का कहर जारी है. पुणे में इस बीमारी से दूसरी मौत का मामला सामने आया था और अब कोलकाता में भी 17 साल के एक युवक की जान इस बीमारी ने ली है. पुणे जिले में अब तक इसके 127 केस सामने आ चुके हैं. बाकी राज्यों में भी इस बीमारी से संदिग्ध मरीज सामने आए हैं और ऐसे में केंद्र सरकार भी चौकन्नी हो गई है. हैरानी की बात ये कि अब तक इस बीमारी की वजह का पता नहीं चल पाया है और न ही इसे लेकर अभी तक कोई पुख्ता इलाज के बारे में जानकारी है.

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क्या है गुइलेन बैरी सिंड्रोम (GBS)

गुइलेन बैरी सिंड्रोम एक तरह का ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. इस बीमारी में बॉडी का इम्यून सिस्टम अपनी ही नसों पर अटैक करता है. इस वजह से मरीजों को उठने-बैठने और चलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. साथ ही कुछ परिस्थितियों में लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है. इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को लकवा भी मार सकता है. दरअसल, हमारा नर्वस सिस्टम दो हिस्सों में होता है, पहला हिस्सा सेंट्रल नर्वस सिस्टम कहलाता है, जिसमें रीढ़ की हड्डी और ब्रेन वाला पार्ट होता है, जबकि दूसरे हिस्से में पेरिफेरल नर्वस सिस्टम आता है, जिसमें पूरे शरीर की नसें शामिल होती हैं. गुइलेन बैरी सिंड्रोम में इम्यून सिस्टम नर्वस सिस्टम के दूसरे हिस्से यानी पेरिफेरल नर्वस सिस्टम पर ही हमला करता है. 

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क्या हैं बीमारी के लक्षण

आमतौर पर इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के हाथ-पैरों में झुनझुनी और कमजोरी सी होने लगती है. ये लक्षण तेजी से फैल सकते हैं और लकवे में बदल सकते हैं. मरीज को चलने में कमजोरी, सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत और बोलने, चबाने या खाना निगलने में दिक्कत भी आ सकती है. आंखों को हिलाने में दिक्कत होना, तेज बदन दर्द, पेशाब और मल त्याग में समस्या के साथ-साथ सांस लेने में तखलीफ भी बीमारी के लक्षम में शामिल है. इसके अलावा ब्लड प्रेशर में तेजी से गिरावट होती है जिसकी वजह से सैप्टिक अटैक जैसी स्थिति भी पैदा हो सकती है और मरीज की जान जा सकती है.

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कैसे संक्रमित हो रहे मरीज

पहले से वायरल इंफेक्शन के मरीज इस सिंड्रोम का आसान शिकार हो सकते हैं. ऐसे में खांसी, जुकाम, बुखार, डायरिया, किसी वैक्सीन और सर्जरी की वजह से बॉडी में ये सिंड्रोम आ सकता है. इसी वजह से महाराष्ट्र में जारी एडवाइजरी में बासी भोजन, बाहर का खाना और गंदे पानी के संपर्क में आने से बचने की सलाह दी गई है. पुणे में भी एक कुएं के पानी को ही बीमारी फैलने की वजह माना जा रहा है, हालांकि अभी इसकी पुष्टी नहीं हो पाई है.

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बीमारी से कैसे करें बचाव

सिंड्रोम की चपेट में आने से बचने के लिए जरूरी है कि खुद को किसी तरह के वायरल इंफेक्शन से बचाए रखें. क्योंकि अगर आप बुखार-खांसी के शिकार होंगे तो हमारी बॉडी की इम्युनिटी कमजोर होगी और सिंड्रोम को ट्रिगर होने में मदद मिलेगी. इससे बचाव के लिए पानी को उबालकर पीना चाहिए मतलब स्वच्छ पानी ही पिएं. पनीर, चावल जैसे फूट आइटम में बैक्टीरिया तेजी से फैलता है, ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट को स्टोर करके खाने से बचना चाहिए और फ्रेश होने पर ही इनका सेवन करना चाहिए. फिर भी अगर आपकी मांसपेशियों में दर्द है या फिर अचानक कमजोरी महसूस होती है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

कितनी गंभीर ये बीमारी

सिंड्रोम से ग्रसित होने वाले ज्यादातर मरीज दवा लेने के बाद रिकवर हो रहे हैं. लेकिन जिनकी एम्युनिटी कम है, उन्हें इससे गंभीर खतरा हो सकता है. प्लाज्मा फेरेसिस के जरिए इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है और हफ्ते से 10 दिन के भीतर मरीज स्वस्थ हो सकता है. सही वक्त पर इलाज से 70-80 फीसदी मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ गंभीर परिस्थियों में ही उन्हें वेंटिलेटर पर लेने की जरुरत पड़ती है और बीमारी से ग्रसित लोगों में सिर्फ 5 फीसदी को जान का खतरा भी हो सकता है.  

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