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'एक देश - एक चुनाव' लागू करना भारत में अव्यवहारिक, मौजूदा प्रणाली के खिलाफ होगी पहल: शशि थरूर

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद शशि थरूर ने 'एक देश-एक चुनाव' को लेकर अहम बयान दिया है. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई व्यावहारिक तरीका नहीं है, जिससे यह प्रणाली लागू की जा सके. उन्होंने इसके लिए अतीत के उदाहरण भी गिनाए.

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद शशि थरूर
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और लोकसभा सांसद शशि थरूर

देश में इन दिनों 'एक देश-एक चुनाव' को लेकर बहस छिड़ी हुई है. सरकार ने जैसे ही शुक्रवार को 'एक देश-एक चुनाव' को लेकर एक कमेटी गठित करने का ऐलान किया तो सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक के नेताओं की प्रतिक्रयाएं आनी शुरू हो गईं. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा कोई व्यावहारिक तरीका नहीं है जिससे ऐसी प्रणाली लागू की जा सके.

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कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बनने के बाद अपने लोकसभा क्षेत्र के पहले दौरे पर आए थरूर ने कहा कि सरकार की 'एक देश, एक चुनाव' पहल मौजूदा प्रणाली के खिलाफ होगी, जो संसदीय लोकतंत्र पर आधारित है,जहां सदन में बहुमत खोने पर पार्टियां सत्ता में बनी नहीं रह सकतीं हैं.

थरूर ने की आलोचना

थरूर ने कहा, 'ऐसा कोई व्यावहारिक तरीका नहीं है जिससे आप इस तरह की प्रणाली को लागू कर सकें. हममें से कई लोगों की दूसरी चिंता यह है कि भारत की बड़ी विविधता वास्तव में वर्षों से विकसित हुए क्रमबद्ध कैलेंडर से लाभान्वित होती रही है.' पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को शुक्रवार को केंद्र द्वारा 'एक देश, एक चुनाव' की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक समिति का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.

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समिति इस बात का पता लगाएगी कि देश एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं, जैसा कि 1967 तक होता था. थरूर ने कहा कि देश के मुख्य कार्यकारी का चयन संसदीय बहुमत और विधायी बहुमत द्वारा किया जाता है, और जैसे ही किसी कारण से सरकार का बहुमत चला गया वह सरकार गिर जाती है. 

गिनाए उदाहरण

तब कैलेंडर के साथ तालमेल बिठाकर नया चुनाव कराना पड़ता है. उन्होंने कहा कि 1947 और 1967 के बीच, भारत में सभी राष्ट्रीय और राज्यों के चुनाव एक ही तारीख को होते थे, लेकिन 1967 में गठबंधन सरकार गिरने के बाद यह व्यवस्था ध्वस्त हो गई और कैलेंडर जारी नहीं रह सका फिर 1970 में राष्ट्रीय सरकार गिर गई और 1971 में चुनाव हुए.

थरूर ने कहा, 'इसलिए, वह कैलेंडर भी खत्म हो गया... कई बदलाव हुए हैं और यही कारण है कि अब अलग-अलग राज्यों के लिए अलग-अलग कैलेंडर हैं. भविष्य में भी यही होगा.' उन्होंने कहा कि विपक्ष रामनाथ कोविंद वाली समीति की बात ध्यान से सुनेगा. चलिए देखते हैं कि क्या श्री कोविंद समिति कोई व्यावहारिक समाधान ला सकती है. हम ध्यान से सुनेंगे, लेकिन हमारे पास इस पूरी पहल के बारे में बहुत अधिक संदेह होने के कई कारण हैं.'

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