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ऑपरेशन हाथरस: दर्द से कराह रही थी पीड़िता, तब पुलिस ने ऐसे दिया था रिस्पॉन्स

पीड़िता पर 14 सितंबर को जिस क्षेत्र में हमला हुआ था, वो चंदपा पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इस पुलिस स्टेशन के तत्कालीन इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा को कैमरे में यह कबूल करते हुए कैद किया गया कि वो न तो पीड़िता देखने गए और न ही उसे तत्काल चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • निलंबित इंस्पेक्टरः न पीड़िता देखने गए, न ही तत्काल चिकित्सा सुविधा दी
  • केस में पुलिस प्रमुख समेत कई पुलिसकर्मी निलंबित किए गए
  • निलंबित इंस्पेक्टरः आधी रात अंतिम संस्कार की वजह विरोध होने का डर

हाथरस की 19 साल की दलित पीड़िता के साथ कथित गैंगरेप और फिर मौत के बाद उसका आधी रात को दाह संस्कार किए जाने से जैसे कि गुस्सा जताया जा रहा है, इंडिया टुडे की जांच ने इस घटना में पुलिस के शुरुआती रिस्पॉन्स में कई साफ दिखने वाली खामियां पाई हैं. 

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न तत्काल पुलिस पहुंची, न समय से इलाज मिला

पीड़िता पर 14 सितंबर को जिस क्षेत्र में हमला हुआ था, वो चंदपा पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इस पुलिस स्टेशन के तत्कालीन इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा को कैमरे में यह कबूल करते हुए कैद किया गया कि वो न तो पीड़िता देखने गए और न ही उसे तत्काल चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई.

दिनेश कुमार वर्मा ने इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम को बताया, "मेरी लापरवाही उसे (पीड़ित को) न देखने, इलाज मुहैया न कराने, और कांस्टेबल को साथ नहीं भेजने (हाथरस से अलीगढ़) को लेकर रही.”

निलंबित इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा
निलंबित इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा

इस महीने की शुरुआत में, उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस जिले के पुलिस प्रमुख विक्रांत वीर, डीएसपी (सर्कल अधिकारी) राम शबद, इंस्पेक्टर वर्मा, सीनियर सब इंस्पेक्टर जगवीर सिंह और हेड कांस्टेबल महेश पाल को निलंबित कर दिया.

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"रेप चार्ज लगाने के पक्ष में नहीं था"

पीड़िता की ओर से वीडियो बयानों में लगातार सेक्सुअल असॉल्ट (यौन हमले) के आरोप लगाए गए. वहीं वर्मा ने कहा कि उसकी राय संदिग्धों के ऊपर रेप के आरोप लगाने की नहीं थी, जिन्हें बाद में जोड़ा गया.

वर्मा ने कहा, "वे सभी उन्मादी हो गए और कहने लगे कि पीड़िता ने अपना बयान (रेप के बारे में) दिया था. पिछले सर्कल अधिकारी (शबद) ने (बलात्कार के आरोप) नहीं जोड़े थे." वर्मा के मुताबिक सेक्सुअल असॉल्ट को जोड़ने के लिए FIR को बाद में 22 सितंबर को संशोधित किया गया. "वे सिर्फ नाम जोड़ सकते थे (और संदिग्धों के) लेकिन सेक्शन्स नहीं. उन्हें गैंगरेप (आरोप) नहीं जोड़ना चाहिए था."

'संदिग्धों की मदद को तैयार था' 

हाथरस केस ने एक बार फिर हिंदीभाषी पट्टी (बेल्ट) में युग पुराने जातीय विभाजन को उजागर किया है. ऐसे में एरिया इंस्पेक्टर ने कबूल किया कि अगर उसका बस चलता तो वो पीड़िता के परिवार पर केस दर्ज कर सकता था.  

वर्मा ने कहा, “वे (संदिग्ध पक्ष) यह कह कर मेरी मदद कर सकते थे कि उसके अपनों (परिवार) ने ही उसकी पिटाई की थी. अगर एक, सिर्फ एक भी शख्स आगे आ कर शिकायत करता कि उन्होंने (पीड़िता का परिवार) उसे पीटा है तो जमीन उनके (पीड़िता का परिवार) के नीचे से निकल जाती.” वर्मा ने आगे कहा, “वे (पीड़िता के परिवार) उसे (पीड़िता) छोड़ चुके होते और मैंने उन पर केस दर्ज कर दिया होता.”

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जिला प्रशासन ने दिया था दाह संस्कार का आदेश  
हमारे इंवेस्टीगेटिव रिपोर्टर्स के साथ एक अलग बैठक में वर्मा ने दावा किया कि आधी रात को पीड़िता के अंतिम संस्कार के आदेश आए क्योंकि अधिकारियों को विरोध होने का डर था.

निलंबित इंस्पेक्टर ने कहा, "फैसला (जिला) प्रशासन की ओर से लिया गया था. मुख्यमंत्री स्तर पर तो रात में नहीं आएंगे. उन्होंने सोचा कि कब तक शव को (बिना संस्कार) रखा जा सकता है." वर्मा ने आगे कहा, संभावना इस बात की थी कि वो शव को सड़क पर ला सकते थे, जिससे आगरा से अलीगढ़ का रास्ता जाम हो जाता. राजनीति (शव के ऊपर) खेली जा सकती थी, इसलिए, यह (देर रात का दाह संस्कार) एक बेहतर विकल्प था."

"एरिया इंस्पेक्टर अपराध की जगह नहीं पहुंचा"
पीड़िता को अलीगढ़ से दिल्ली पंहुचाने और फिर उसके शव को वापस लाने के दौरान कांस्टेबल जमील अहमद खान की ड्यूटी थी. खान ने भी कबूल किया कि सीनियर अधिकारियों ने इतने संवेदनशील मामले में सेट प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया.

निलंबित कांस्टेबल जमील अहमद खान
निलंबित कांस्टेबल जमील अहमद खान

खान ने कहा, "मैं आपको बताता हूं कि जो उन्होंने (वर्मा) नहीं बताया. उन्हें पहली बार में खुद अपराध स्थल पर पहुंचना चाहिए था." खान ने आगे कहा, "उन्होंने अपराध स्थल का दौरा नहीं किया. उन्होंने एक एसएसआई, जगवीर सिंह को भेजा, जिन्हें अब निलंबित कर दिया गया है. एसएसआई (सिंह) ने भी मामले को हल्के में लिया. एसआईटी पूछ रही है कि उन्होंने एक महिला अधिकारी को क्यों नहीं भेजा? एक महिला अधिकारी को भेजा गया था लेकिन इसका उल्लेख जीडी (सामान्य डायरी) में नहीं किया गया था."

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कानून के मुताबिक ज़रूरी क्या? 

याद कीजिए कि 2013 में लागू किए गए नए एंटी-रेप कानून में न सिर्फ रेप की परिभाषा को विस्तारित किया गया था बल्कि पुलिस और अस्पतालों पर यौन अपराध की शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई के लिए अधिक जिम्मेदारी भी तय की थी.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने जोर दिया कि पीड़िता ने अपने शुरुआती बयान में रेप की शिकायत नहीं की थी, लेकिन पीड़िता के तीन अलग वीडियो, जिनका इंडिया टुडे ने विश्लेषण किया, दिखाते हैं कि वो 14 सितंबर से लगातार हमलावरों पर यौन हिंसा का आरोप लगा रही थी.

पीड़िता का मेडिकल निरीक्षण आठ दिन बाद किया गया. हालांकि प्रोटोकॉल्स के मुताबिक स्वाब समेत सभी सैम्पल ऐसी घटनाओं के रिपोर्ट होने के चार दिन के भीतर ही इकट्ठा करना जरूरी होता है.

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