ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सैद बिजनेस स्कूल और गेट्स फाउंडेशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी डिजिटल गवर्नेंस प्लेटफॉर्म 'प्रगति' (PRAGATI) को लेकर एक स्टडी की है. इसमें कहा गया है कि 'प्रगति' ने देश की इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की डिलीवरी को पूरी तरह बदल कर रख दिया है. स्टडी में कहा गया है कि प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन (PRAGATI) ने टॉप लेवल पर अधिकारियों की जवाबदेही तय की है. केंद्र और राज्यों के बीच परियोजनाओं के कोऑर्डिनेशन को बहुत पारदर्शी और व्यवस्थित किया है. इस प्लेटफॉर्म के कारण देश भर में 205 बिलियन डालर (17 खरब रुपये से अधिक) की 340 परियोजनाओं में तेजी आई है और दशकों की देरी में कटौती हुई है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और गेट्स फाउंडेशन की यह स्टडी सोमवार को भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) बेंगलुरु द्वारा आयोजित एक सेमिनार में रिलीज की गई. इस सेमिनार में एकेडमिक, पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के लीडर्स ने चर्चा की कि डिजिटल गवर्नेंस इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को कैसे बदल सकता है. 'ग्रिडलॉक टू ग्रोथ: हाउ लीडरशिप इनेबल्स इंडियाज प्रगति इकोसिस्टम टू पावर प्रोग्रेस' (From Gridlock to Growth: How Leadership Enables India’s PRAGATI Ecosystem to Power Progress) शीर्षक वाली इस केस स्टडी में कहा गया है कि 340 परियोजनाओं में से कई 3 से 20 साल तक विलंबित थीं.
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देश के विकास में बहुत उपयोगी है प्रगति प्लेटफॉर्म
स्टडी में पाया गया है कि यह नया मॉडल न केवल अस्पष्टता की परतों को दूर करता है बल्कि अधिकारियों को सीधे जवाबदेह होने के लिए मजबूर करता है. रिपोर्ट में कहा गया है, 'प्रगति' हमें दिखाती है कि एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित करना आवश्यक है, जहां जवाबदेही तय करने के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग हो रहा हो. पीटर मूर्स डीन और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट के प्रोफेसर सौमित्र दत्ता ने कहा, 'इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को इकोनॉमिक ग्रोथ का पिलर बनाने का लक्ष्य रखने वाले देशों के लिए यह प्लेटफॉर्म बहुत उपयोगी है.' केस स्टडी में पाया गया है कि मंत्रालय और विभाग अब नागरिक शिकायतों के प्रति अधिक जवाबदेह हैं, क्योंकि उन्हें पता रहता है कि उनके प्रदर्शन की शीर्ष स्तर पर समीक्षा की जाएगी और उनसे जवाब मांगा जाएगा.
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स्टडी में कहा गया है, 'भारत के अलग-अलग राज्यों में अक्सर अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें होती हैं. इस तरह की स्थिति केंद्रीय परियोजनाओं के लिए बाधक बन सकती हैं और चल रहे प्रोजेक्ट पटरी से उतर सकते हैं. लेकिन प्रगति प्लेटफॉर्म कोऑपरेटिव फेडरलिज्म (केंद्र और राज्य सरकारों के बीच दोस्ताना संबंध) के एक शक्तिशाली मंच के रूप में उभरा है. यह दर्शाता है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने राजनीतिक मतभेदों की परवाह किए बिना कैसे डेवलपमेंट पर फोकस करके प्रभावी ढंग से एक साथ काम कर सकती हैं.'
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PM मोदी ने 2015 में शुरू किया था 'प्रगति' प्लेटफॉर्म
प्रगति यानी 'प्रो-एक्टिव गवर्नेंस एंड टाइमली इम्प्लीमेंटेशन' एक मल्टीपर्पज प्लेटफॉर्म है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत 25 मार्च, 2015 को प्रगति का शुभारंभ किया था. इस प्लेटफॉर्म के जरिए प्रमुख हितधारकों रियल टाइम में एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं और किसी प्रोजेक्ट में आ रही समस्या पर चर्चा करते हैं. यह इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े प्रोजेक्ट में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए एक मजबूत सिस्टम है. यह प्लेटफॉर्म इंटर-डिपार्टमेंटल रिस्पॉन्स टाइम को कम करके समस्याओं को हल करने में प्रभावी साबित हुआ है, जिससे परियोजनाओं के कार्यान्वयन में लगने वाला समय काफी कम हो गया है. प्रधानमंत्री हर महीने इस प्लेटफॉर्म के अंतर्गत चल रहे परियोजनाओं की समीक्षा करते हैं.