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जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद और पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी गतिरोध के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर झड़प और पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपैठ की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. आधिकारिक डेटा को खंगालने से ये बात सामने आई है.
अगस्त 2019 में जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने वाली धारा 370 को निरस्त किया गया. तब से दिसंबर 2020 तक के 17 महीने में सीजफायर उल्लंघन की जितनी घटनाएं हुईं वो पिछले दो साल में हुई कुल ऐसी घटनाओं का 80 फीसदी हैं.
बीते साल 3,168 सीजफायर उल्लंघन हुए जिनमें से 1,551 घटनाएं अगस्त से 2019 के आखिर तक हुईं. जहां तक मौजूदा साल 2020 का सवाल है तो इसमें सीजफायर उल्लंघन 4,700 तक पहुंच गए. ये बीते 17 साल में सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
LoC, LAC पर बढ़ा तनाव
चीन से गतिरोध शुरू होने के बाद से लद्दाख में अभूतपूर्व संख्या में भारतीय सैनिकों की तैनाती की गई है. इसके अलावा सुरक्षा बलों को कश्मीर में बीते डेढ़ साल में पाकिस्तान की ओर से की जाने वाली नापाक हरकतों का मुहंतोड़ जवाब देने के लिए भी काफी ध्यान लगाना पड़ा है. इनमें कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश करने वाले आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम भी शामिल है.
बीते साल अगस्त से हर महीने 3,000 से अधिक सीजफायर उल्लंघन हुए. सिर्फ सितंबर और दिसंबर 2019 में ही क्रमश: 292 और 297 ऐसी घटनाएं हुईं. इसकी तुलना 2018 से की जाए तो कुल 1,629 सीजफायर उल्लंघन हुए. इनमें सिर्फ दो महीनों में ही ऐसी घटनाओं का आंकड़ा 200 से पार गया.
जाड़े के महीनों में भारी बर्फबारी की वजह से सीजफायर उल्लंघन की घटनाओं में कमी देखी जाती थी. लेकिन 2019 और 2020 में जाड़े में भी ऐसी घटनाओं के आंकड़े ऊंचे बने रहे. असल में इस साल दिसंबर में 423 सीजफायर उल्लंघन हुऐ. बीते कई साल के दिसंबर से इसकी तुलना की जाए तो ये सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
चीन के साथ मई,2020 में गतिरोध शुरू हुआ जिसके लिए बिल्डअप की शुरुआत अप्रैल से ही हो गई थी. उसके बाद से नियंत्रण रेखा (LoC) पर भी सरगर्मी तेज देखी गई. अप्रैल के बाद से हर महीने सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं 400 से पार जा रही हैं.
पाकिस्तान-चीन के लगातार गठजोड़ को लेकर एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया ने मंगलवार को एक वेबिनार में कहा, चीनी पॉलिसी में पाकिस्तान पहले से कहीं अधिक मोहरा बन गया है. उन्होंने कहा, “चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) से जुड़े कर्ज के जाल का दबाव बढ़ने की वजह से पाकिस्तान की भविष्य में चीन पर सैन्य निर्भरता और बढ़ेगी.”
अधिकारियों के मुताबिक 2019 की शुरुआत के बाद से जब भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में स्थित आतंकवादी कैम्प को फरवरी में उड़ाया था, तब से सरहद पर माहौल गर्म है. इससे पहले कश्मीर के पुलवामा में सुसाइड बॉम्बर हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हुए थे.
सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, “पहले बालाकोट, फिर धारा 370 और अब लद्दाख में भारत-चीन गतिरोध के बाद पाकिस्तान की ओर से अधिक आक्रामकता दिखाना, एक साफ पैटर्न दिखाता है.”
इस साल 221 आतंकी ढेर
पिछले चार साल में हर साल कश्मीर में मारे गए आतंकवादियों का आंकड़ा 200 से ऊपर रहा है. सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी की जमीन और नियंत्रण रेखा, दोनों जगह पर ही आतंकवादियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलाए. इस साल 221 आतंकवादी ढेर किए गए जबकि पिछले साल ये आंकड़ा 153 का ही था. 2018 में 215 आतंकवादी मारे गए थे. वहीं 2017 में 213 और 2016 में 141 आतंकी ढेर किए गए.
स्थानीय आतंकियों की भर्ती
आतंकवादियों के बड़ी संख्या में मारे जाने के बावजूद आतंकियों की स्थानीय भर्ती में कमी नहीं आई है. 2013 में स्थानीय नए आतंकियों की संख्या सिर्फ 13 थी. तब से आतंकियों की भर्ती में काफी बढ़ोतरी हुई है. 2017 में ये आंकड़ा सिर्फ 127 था. 2018 में इसमें बड़ा उछाल देखा गया जब 219 स्थानीय लोग आतंकवादी ग्रुपों के साथ जुड़े. इस साल ये आंकड़ा 166 रहा.
2020 के शुरुआती चार महीनों में आतंकियों की भर्ती काफी कम रही. सिर्फ 6 युवा अप्रैल तक आतंकवादी संगठनों में शामिल हुए. लेकिन उसके बाद से ये आंकड़ा तेजी से बढ़ा. कोविड-19 महामारी से जुड़े लॉकडाउन का भी इस पर कोई असर नहीं पड़ा.