नायक जदुनाथ सिंह (Naik Jadunath Singh) की शहादत से छह महीने पहले अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने हमला कर दिया था. सरकार ने घुसपैठियों को सीमा पार खदेड़ने के लिए सेना को निर्देश दिए. आदेश था कि जम्मू-कश्मीर के नौशेरा सेक्टर के झांगर में नवंबर मध्य तक बेस बनाओ. घुसपैठियों को भगाओ या मारो. इलाका सुरक्षित करो. सेना ने राजपूत रेजिमेंट के 50वीं पैरा ब्रिगेड को वहां भेजा. लेकिन खराब मौसम का फायदा उठाते हुए झांगर पर पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया. जिसकी वजह से वो मीरपुर और पूंछ के बीच संचार बंद हो गया था. ये बात 24 दिसंबर 1947 की है.
50वीं पैरा ब्रिगेड के कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में सेना टुकड़ी भेजने का फैसला किया. सैनिकों को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बेहतरीन हमला करने लायक पोजिशन पर तैनात होने का निर्देश दिया गया. कहा गया कि पाकिस्तानियों पर तीन तरफ से ऐसा हमला करो कि वो पीछे भाग जाएं. नौशेरा के उत्तर में तैनधार टॉप नाम की जगह है. यहां की जिम्मेदारी नायक जदुनाथ सिंह को दी गई. उन्होंने इस छोटे से पोस्ट पर अपने सैनिकों को तैनात कर दिया था.
9 जवानों के साथ संभाला था पिकेट
6 फरवरी 1948 की सुबह 6:40 बजे पाकिस्तान ने इस पोस्ट पर हमला किया. दोनों तरफ से धुआंधार फायरिंग हो रही थी. कोहरे और बारूद की गंध से पूरा इलाका भरा हुआ था. कोहरे का फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी फौज नायक जदुनाथ सिंह की पोस्ट के बेहद करीब पहुंच गए थे. तैनधार रिज पर बने इस पोस्ट से भारतीय जवानों ने देखा कि भारी मात्रा में पाकिस्तानी फौजी आगे बढ़ रहे हैं. नायक जदुनाथ सिंह इस पोस्ट के दूसरे पिकेट पर अपने 9 जवानों के साथ तैनात थे.
पाकिस्तानी फौजियों ने दो बार इस पिकेट पर हमला किया लेकिन जदुनाथ सिंह और उनके जवानों ने हर बार पाकिस्तानियों की धज्जियां उड़ा दीं. ये हमले दिन भर होते रहे. पाकिस्तानी इस पोस्ट पर कब्जा करना चाहते थे. लेकिन हर बार विफल हो रहे थे. आदत से मजबूर हारने के बाद भी अगला हमला और तगड़ा हो रहा था. शाम को पाकिस्तानियों ने तीसरा और सबसे बड़ा हमला किया. सुबह के समय पोस्ट पर कुल 27 भारतीय जवान थे. लड़ाई के अंत तक 24 की मौत हो चुकी थी या बुरी तरह से जख्मी थे.
घायल साथियों को देख खुद उठाई मशीन गन
जदुनाथ सिंह के पिकेट पर मौजूद 9 जवानों में से चार पहले हमले में ही घायल हो गए थे. लेकिन जदुनाथ सिंह ने उनका हौसला अफजाई जारी रखी. शांत दिमाग और बहादुरी के साथ जवानों की हिम्मत बढ़ाते रहे. इन जवानों के हमले में पाकिस्तानी फौजी घबरा गए. कई मारे गए. मारे गए पाकिस्तानियों को छोड़कर उनकी फौज भाग गई. दोबारा हमला ज्यादा तेज और भयानक हुआ. जदुनाथ सिंह ने देखा कि उनके पास 9 जवानों में से चार घायल हैं. जिसमें उनका लाइट मशीन गन (Bren Gun) दागने वाला जवान भी जख्मी है.
जदुनाथ सिंह ने दूसरा हमला रोकने के लिए लाइट मशीन गन चलाना शुरु किया. सिंह की ताबड़तोड़ फायरिंग से पाकिस्तानी फौजियों के छक्के छूट गए. वो फिर भाग खड़े हुए. क्योंकि जदुनाथ सिंह की मशीन गन से निकल रही हर गोली मौत बनकर उनके ऊपर बरस रही थी. उनकी इस बहादुरी की वजह से घायल जवान भी सिंह को कवर फायर देते रहे. लेकिन दूसरा हमला खत्म होने तक चारों जवान शहीद हो चुके थे.
पाकिस्तानियों के नजदीक जाकर मारा उन्हें
दुश्मनों ने तीसरा और सबसे भयावह हमला किया. ताकि वो जदुनाथ सिंह के पिकेट और पोस्ट दोनों पर कब्जा कर सकें. नायक जदुनाथ सिंह दूसरे हमले के समय घायल हो चुके थे. जदुनाथ सिंह अपने संगड़ से बाहर निकले और स्टेन गन से पाकिस्तानियों के नजदीक जाकर उन्हें चुन-चुनकर मारा. अंधाधुंध फायरिंग और सिंह के विकराल रूप को देख कर दुश्मन की हालत खराब हो गई. वो ऐसे भागे जैसे बिल्ली को देखकर चूहे भागते हैं. लेकिन किसी पाकिस्तानी फौजी ने भागते-भागते जदुनाथ सिंह की तरफ गोलियां चलाईं. घायल जदुनाथ सिंह को एक गोली सीने में लगी और दूसरी सिर में.
नौशेरा के तैनधार पोस्ट को बचाने के लिए नायक जदुनाथ सिंह ने सर्वोच्च बलिदान दे दिया. इस युद्ध के दौरान ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को मौका मिल गया और उन्होंने पोस्ट को बचाने के लिए राजपूत रेजिमेंट की तीसरी पैरा बटालियन को तैनधार पर तैनात कर दिया था. पाकिस्तानी फौजियों के नापाक इरादे पूरे नहीं हो पाए.
UP के शाहजहांपुर में जन्में थे जदुनाथ सिंह
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के खजूरी में 21 नवंबर 1916 में पैदा हुए थे जदुनाथ सिंह. 31 साल की उम्र में देश के नाम शहीद हो गए. पिता बीरबल सिंह राठौड़ किसान थे. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए जदुनाथ सिंह सिर्फ चौथी कक्षा तक ही पढ़ पाए. पिता के साथ खेती-किसानी में लग गए थे. अपने गांव में कुश्ती के चैंपियन थे. अच्छे चरित्र और व्यवहार के लिए उन्हें हनुमान भगत बाल ब्रह्मचारी की उपाधि दी गई थी. भारतीय सेना में शामिल होने से पहले जदुनाथ सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में थे. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानियों के खिलाफ जंग लड़ी थी.