संसद के चालू बजट सत्र के दूसरे चरण का तीसरा हफ्ता आज से शुरू हो रहा है. संसद का पिछला हफ्ता भी हंगामे के बीच खत्म हुआ था. संसद में आज भी हंगामे के आसार हैं क्योंकि केंद्र सरकार के पास वक्फ बिल का दांव है, जिसका करीब सभी विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. वहीं, परिसीमन विवाद पर साउथ के नेता लामबंद हैं और इसके लेकर एमके स्टालिन ने विपक्षी दलों से जुड़े मुख्यमंत्रियों और अन्य नेताओं के साथ बैठक भी की है. इसके साथ ही, लोकसभा में कांग्रेस के मणिकम टैगोर ने ‘आग लगने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने’ के संबंध में चर्चा के लिए स्थगन प्रस्ताव पेश किया है.
पेश किया जाना है वक्फ बिल
आज केंद्र की तरफ से वक्फ बिल पेश किया जा सकता है, जिससे सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की आशंका है. दूसरी तरफ, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वक्फ बिल के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है.
विपक्ष के ज्यादातर दल वक्फ विधेयक का विरोध कर रही हैं. वहीं, कैबिनेट ने वक्फ (संशोधन) विधेयक में कुछ बदलावों को मंजूरी दी है. यह विधेयक लोकसभा में चर्चा होने के बाद पेश किया जाना है.
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कांग्रेस ने वक्फ बिल में गिनाईं खामियां
कांग्रेस ने रविवार को प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक को केंद्र सरकार द्वारा संविधान पर हमला करार दिया और इसमें कई खामियां गिनाईं. एक बयान में कांग्रेस सांसद और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा, "बीजेपी इस विधेयक के जरिए चुनावी लाभ के लिए सामाजिक सद्भाव के 'सदियों पुराने बंधनों' को नुकसान पहुंचाने और समाज को ध्रुवीकरण की स्थिति में रखने की कोशिश कर रही है."
जयराम रमेश ने अपने बयान में यहा भी कहा, "428 पेज की वक्फ रिपोर्ट को संसद की संयुक्त समिति के जरिए बिना किसी विधिवत चर्चा के 'बुलडोजर से पारित' कर दिया गया."
कांग्रेस ने कहा कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदायों को बदनाम करने और सभी नागरिकों को समान अधिकार और सुरक्षा की गारंटी देने वाले संवैधानिक प्रावधानों को कमजोर करने का प्रयास है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो.
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चर्चा में परिसीमन विवाद
परिसीमन विवाद पर साउथ के नेताओं ने कमर कसी है. पिछले दिनों चेन्नई में DMK की अगुवाई में एक मीटिंग बुलाई गई, जिसमें जॉइंट एक्शन कमेटी ने परिसीमन के मुद्दे पर एक 7 सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया है. कमेटी ने इस बात पर चिंता जताई कि आसन्न परिसीमन की प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्पष्टता की कमी है और इसमें शामिल होने वाले शेयरहोल्डर्स यानी राज्यों के साथ विचार-विमर्श नहीं किया गया.