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'जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज करने की जरूरत', संसदीय समिति ने रिपोर्ट में दिया सुझाव

जजों की नियुक्ति के मामले में संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट दी है. इसमें समिति की ओर से सुझाव दिया गया है कि सरकार ने जैसा उत्साह सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर दिखाया है, उसी जोश और जज्बे की जरूरत हाइकोर्ट्स में जजों को नियुक्ति को लेकर है.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

जजों की नियुक्ति को लेकर अभी तक सरकार और कॉलेजियम यानी न्यायपालिका के बीच खींचतान चल रही है. इसी बीच विधि मंत्रालय के न्याय विभाग की संसदीय समिति ने भी अपनी रिपोर्ट देकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. समिति ने उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति में आ रही बाधाओं को जल्द दूर करने के लिए हर समुचित कदम उठाने की बात कही है.

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विधि मंत्रालय के न्याय विभाग की संसदीय समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी हैं. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने जैसा उत्साह सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर दिखाया है, उसी जोश और जज्बे की जरूरत हाइकोर्ट्स में जजों को नियुक्ति को लेकर है.
 
सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में देरी को लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान भी एक बेंच ने सरकार की आलोचना की थी. उधर, समिति ने अपनी रिपोर्ट में मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसिजर (MoP) यानी नियुक्ति प्रक्रिया पर पिछले 7 साल में सरकार और न्यायपालिका के बीच आम सहमति न बन पाने पर भी चिंता जताई है.

दरअसल नियुक्ति प्रक्रिया का दस्तावेज एक किस्म से संहिता है, जिसमें पूरी प्रक्रिया पर सहमति के दस्तखत होते हैं. इसमें दोनों पक्षों की मंजूरी जरूरी होती है.

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संसद में सरकारी बयान के मुताबिक पिछले साल 31 दिसंबर तक देश के सभी 25 हाईकोर्ट में जजों की कुल निर्धारित संख्या 1108 के मुकाबले 30 फीसद जजों की सीटें खाली थीं. वहीं 12 हाईकोर्ट में 40 फीसदी सीटें खाली थीं. समिति ने माना कि पिछले वर्षों के मुकाबले 2022 में स्थितियां सुधरी जरूर हैं, लेकिन हाईकोर्ट स्तर पर अभी और सुधार की जरूरत है.

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