पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (Personal Data Protection Bill 2019) पर बनी संयुक्त संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप दे दिया है. वहीं विपक्ष के कई सांसदों ने रिपोर्ट से असहमति जताई है. कांग्रेस, टीएमसी और बीजेडी समेत कई विपक्षी दलों के सांसदों ने इस बिल पर असहमति पत्र दिया है.
इस बिल पर यह समिति दो साल पहले बनाई गई थी. समिति की रिपोर्ट देर से आई है. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि समिति की पूर्व अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी मंत्री बन गई थीं और उनकी जगह पर पीपी चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया था.
विपक्ष ने जताई असहमति
कांग्रेस के चार, टीएमसी के दो और बीजेडी के एक सांसद ने समिति की रिपोर्ट से असहमति जताई है. इस रिपोर्ट पर कांग्रेस के जयराम रमेश, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई और विवेक तन्खा ने डिसेंट नोट दिया है, जबकि टीएमसी से डेरेक ओ ब्रायन और महुआ मोइत्रा ने डिसेंट नोट दिया है. बीजेडी से अमर पटनायक ने रिपोर्ट के कई बिंदुओं से असहमति व्यक्त की.
बिल के सेक्शन 35 और सेक्शन 12 में संशोधन के लिए दिए सुझाव
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने समिति की रिपोर्ट में अपनी असहमति जताते हुए दो संशोधनों का सुझाव दिया. जयराम रमेश ने बिल के सेक्शन 35 और सेक्शन 12 में संशोधन के लिए असहमति पत्र दायर किया. आपको बता दें कि सेक्शन 35 सरकारी एजेंसियों को छूट देते हुए असीमित शक्ति प्रदान करता है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश के मुताबिक सेक्शन 35 में बदलाव करते हुए सरकारी एजेंसियों को छूट देने से पहले संसद की अनुमति अनिवार्य होनी चाहिए.
सेक्शन 12A सरकारी एजेंसियों को सहमति के मामले में कई छूट प्रदान करता है. रमेश के संशोधन के मुताबिक, यह छूट सीमित होनी चाहिए और स्वतः नहीं होनी चाहिए.