भारत में कोरोना से होने वाली मौत के बाद परिजनों (Corona Death) को दिए जाने वाले मुआवजे पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हो रही है. सोमवार को मामले की सुनाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि कोरोना से होने वाली मौत का मुआवजा आश्रित परिजनों को सभी राज्यों में दिया जा रहा है.
तुषार मेहता ने कहा कि मुआवजा बांटने में यह समस्या भी आ रही है कि डॉक्टर अन्य कारणों से हुई मौत को भी कोरोना से हुई मौत बताते हुए नकली प्रमाणपत्र दे रहे हैं. सभी पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस एमआर शाह ने मुआवजे के लिए फर्जी प्रमाण पत्र पेश कर मुआवजा लिए जाने पर नाराजगी जाहिर की.
फर्जी सर्टिफिकेट के कारण छिनता है वास्तविक हकदार का अवसर
जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि कुछ डॉक्टरों के ऐसे फर्जी सर्टिफिकेट देने से किसी वास्तविक हकदार का अवसर छिन सकता है. उन्होंने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर मुआवजा लेने के मामले की स्वतंत्र जांच का आदेश देने के संकेत भी दिए.
इसके अलावा कोर्ट ने सभी पक्षों से फर्जी प्रमाणपत्रों के मुद्दे पर अंकुश लगाए जाने पर सुझाव देने को कहा है. इस दौरान सॉलिसीटर जनरल ने कोर्ट से आग्रह किया कि कोर्ट यह निर्देश दे कि आवेदन करने वालों को मुआवजा मिले. लेकिन उसका एक समय निश्चित किया जाए. ऐसे ही आवेदन और मुआवजे की प्रक्रिया लगातार न चलती रहे.
14 मार्च को होगी मामले की अगली सुनवाई
कोर्ट ने सभी पक्षों से इससे बचने और इस समस्या से निपटने पर सुझाव देने को कहा है. अब इस मामले में 14 मार्च को सुनवाई होगी.
इससे पहले कोर्ट ने राज्यों से कहा था कि वह तकनीकी आधारों पर मुआवजे के दावों को खारिज न करें. कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिए थे कि आवेदन मिलने के 10 दिन के भीतर मुआवजा देने की कोशिश करें. जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस बी.वी. नागररत्ना की बेंच ने कहा था, 'मृतकों से जुड़े अधिकारिक आंकड़े सच नहीं हैं और यह नहीं कहा जा सकता कि (कोविड पीड़ितों के परिवारों की ओर से) फर्जी दावे किए जा रहे हैं.' सुप्रीम कोर्ट ने कोविड से जान गंवाने वालों के आश्रितों को 50,000 रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था.