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इच्छामृत्यु की इजाजत सही या गलत? जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

गौरांग दास ने कहा कि अगर कोई शख्स जीना नहीं चाहता है. या फिर वो दर्द में है तो हमें उसकी तकलीफ को समझने का प्रयास करना चाहिए. मौत की इजाजत नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक लहजे से कहें तो दर्द का जुड़ाव माइंड से है. उन्होंने कहा कि हमें मरीज को इमोशनली और मेंटली सपोर्ट देने की जरूरत है.

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इच्छामृत्यु पर एक्सपर्ट्स ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रखा अपना पक्ष.
इच्छामृत्यु पर एक्सपर्ट्स ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में रखा अपना पक्ष.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दूसरे दिन शनिवार को 'प्लेइंग गॉडः द राइट टू डाय इन डिग्निटी' विषय पर बातचीत के लिए सुप्रीम कोर्ट की वकील निशा भंभानी, इस्कॉन जीबीसी और निदेशक जीईवी (गोवर्धन इको विलेज) गौरांग दास, नीति और रणनीतिक साझेदारी प्रमुख स्मृति राणा और नेफ्रॉन क्लीनिक के अध्यक्ष डॉ संजीव बगई ने शिरकत की. इस दौरान इच्छामृत्यु या सम्मान के साथ मरने की इजाजत को लेकर सभी ने अपने पक्ष रखे.

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इस दौरान गौरांग दास ने कहा कि अगर कोई शख्स जीना नहीं चाहता है. या फिर वो दर्द में है तो हमें उसकी तकलीफ को समझने का प्रयास करना चाहिए. मौत की इजाजत नहीं दी जा सकती है. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक लहजे से कहें तो दर्द का जुड़ाव माइंड से है. उन्होंने कहा कि हमें मरीज को इमोशनली और मेंटली सपोर्ट देने की जरूरत है.

वहीं, स्मृति राणा ने कहा कि जब आप इच्छामृत्यु की बात करते हैं तो आपको उस मरीज के हालात पर गौर करना चाहिए. वो किस दर्द में है ये समझना होगा. कई मरीज ऐसे हैं जो ठीक नहीं हो सकते हैं. वो बस सपोर्ट सिस्टम से जिंदा हैं. ऊपर से उनका परिवार ऐसे हालत में है कि उसका इलाज नहीं करा सकता है. ऐसे में उसे सम्मान से मौत की इजाजत मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जब ये बात स्पष्ट हो चुकी हो कि मरीज का बचना अब नामुमकिन है और वो सिर्फ दर्द में है तो उसकी इच्छामृत्यु की बात को समझना चाहिए.

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इस दौरान वकील निशा भंभानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में पैसिव यूथेनिशिया को इजाजत दी है. ये एक शानदार फैसला है. उन्होंने कहा कि हमें एक्टिव यूथेनिशिया और पैसिव यूथेनिशिया में अंतर समझना होगा. उन्होंने कहा कि पैसिव यूथेनिशिया की इजाजत तब दी जाती है जब कोई उम्मीद नहीं बचती है. उसके लिए भी आपको एक लंबे प्रोसेस से गुजरना होता है जहां डॉक्टर समेत कई लोग ये तय कर देते हैं कि हां अब इस शख्स या मरीज के आगे जिंदा रहने की कोई उम्मीद नहीं है. ऐसे में उसे पैसिव यूथेनिशिया की इजाजत दी जाती है. उन्होंने कहा कि डाई विद डिगनिटी एक बड़ी पहल है. 

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हालांकि, संजीव बगई ने इससे अलग राय रखी. उन्होंने कहा कि मरीज सिर्फ इलाज चाहता है. डॉक्टर या सिस्टम किसी की मौत को डिसाइड नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर देखा गया है कि मरीजों के इलाज के लिए संसाधन नहीं हैं. इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं हैं. ऐसे में इंसान के पास मौत के अलावा कोई विकल्प नहीं होता. लेकिन उसे इलाज चाहिए होता है. उन्होंने कहा कि जीवन अपने आप में एक रहस्य है.

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बगई ने उदाहरण से समझाया कि एक बार बिहार में जुड़वा बच्चों का एक केस सामने आया था. दोनों बच्चों के शरीर के कई हिस्से आपस में जुड़े हुए थे. वो इच्छामृत्यु चाहते थे. लेकिन इंडिया टुडे की पहल से उनका इलाज हुआ और दोनों आज जिंदा है. ऐसा ही एक उदाहरण उन्होंने एसिड अटैक पीड़िता को लेकर दिया. उन्होंने कहा कि उस पीड़िता के कई अंग काम नहीं कर रहे थे. उसने भी इच्छामृत्यु मांगी थी. लेकिन उसके अच्छे इलाज के बाद आज वो जिंदा है और अच्छी जिंदगी जी रही है. उन्होंने कहा कि आप जीवन के रहस्य को नहीं समझ सकते हैं. इसलिए हमें लोगों के अच्छे इलाज और मदद पर ध्यान देना चाहिए. 

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