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सोशल मीडिया ई-कॉमर्स वेबसाइट को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका, बिक्री के लिए गाइडलाइन बनाने की मांग

याचिका में कहा गया है इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक जैसे उत्पादों को रेफरल के माध्यम से बेचा जाता है, जो सोशल मीडिया ई-कॉमर्स की सुविधा प्रदान करने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म संचालित करते हैं. इन पर सरकार की उस तरह की निगरानी नहीं है, जितनी बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर है.

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दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सोशल मीडिया ई-कॉमर्स को लेकर दिल्ली HC में याचिका
  • बिक्री के लिए गाइडलाइन बनाने की मांग
  • उपभोक्ता धोखाधड़ी का लगातार हो रहे शिकार

देशभर में सोशल मीडिया ई-कॉमर्स वेबसाइट के माध्यम से की जा रही खरीद-फरोख्त को लेकर गाइडलाइन बनाने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है. इस याचिका में फेसबुक, इंस्टाग्राम या बाकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर ई-कॉमर्स के जरिए आम लोगों तक सामान को बेचने वालों द्वारा जानकारियां साझा करने की मांग की गई है. 

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याचिका में कहा गया कि ई-कॉमर्स के जरिए सामान को बेचने वाले लोगों के लिए यह अनिवार्य किया जाए कि वह बेचे जाने वाले सामान की कीमत यानी एमआरपी समेत उसे बेचने वाले व्यक्ति की पूरी जानकारी दें. साथ ही किस देश से इस सामान को खरीदा गया है, जैसी तमाम जानकारियां भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर साझा करें.

याचिका में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर धड़ल्ले से सामान आम लोगों को बेचा जा रहा है, जिसमें पिक्चर किसी और चीज की दिखाई जाती है और सामान कुछ और डिलीवर किया जाता है. ऐसे में उपभोक्ताओं तक जब सामान वह नहीं पहुंचता जो उन्होंने सोशल मीडिया पर देखकर ऑर्डर किया था. तो इसको बेचने वाले लोग ना तो सामान वापस लेते हैं और ना ही पैसे वापस करते हैं. 

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ऐसे में उपभोक्ता धोखाधड़ी का लगातार शिकार हो रहे हैं. ज्यादातर उपभोक्ताओं को इस बारे में जानकारी भी नहीं होती कि इस तरह की धोखाधड़ी से बचने और इसकी शिकायत करने के लिए वह कहां जाएं. सोशल मीडिया ई-कॉमर्स साइट पर सामान बेचने वाले लोग इससे जुड़ी जानकारियां भी साझा नहीं करते हैं.

याचिकाकर्ता के मुताबिक, देशभर में सोशल मीडिया ई-कॉमर्स वेबसाइट के तकरीबन 572 मिलियन उपभोक्ता हैं. माना जा रहा है कि 2025 तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से होने वाली बिक्री भारत में 50 हज़ार करोड़ तक पहुंच सकती है. इतने बड़ा बाजार होने के बावजूद अभी तक मोबाइल एप के माध्यम से वेबसाइट पर बेचे जाने वाले सामान के बारे में उपभोक्ताओं को पूरी जानकारी नहीं दी जाती है.

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याचिकाकर्ता का कहना है कि सोशल कॉमर्स कंपनी की तरफ से इस तरह का बिजनेस मॉडल बनाया गया है, जिससे छोटे शहरों और कस्बों में इस तरह के सामान को खरीदने वाले उपभोक्ताओं से बहुत सारी जानकारी छुपा ली जाती है. यह कि छोटे शहरों कस्बों और गांवों के ज्यादातर उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी ही नहीं होती है.

इस याचिका में कहा गया है अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसी बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर भारत सरकार की नजर रहती है और इन सभी वेबसाइट पर ई-कॉमर्स कस्टमर प्रोटक्शन रूल्स को मानना अनिवार्य होता है. लेकिन इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक जैसे उत्पादों को रेफरल के माध्यम से बेचा जाता है, जो सोशल मीडिया ई-कॉमर्स की सुविधा प्रदान करने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म संचालित करते हैं. 

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लेकिन इन पर सरकार की उस तरह की निगरानी नहीं है, जितनी बड़ी ई-कॉमर्स वेबसाइट पर है. याचिका में मांग की गई है कि सोशल मीडिया पर ई-कॉमर्स वेबसाइट के लिए भी उतने ही कड़े नियमों का पालन किया जाना अनिवार्य होना चाहिए.

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