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महंगाई से जलती जेब: 7 साल में रसोई गैस डबल, कच्चे तेल के भाव गिरने पर भी पेट्रोल-डीजल में राहत नहीं

हालत ऐसी है कि कच्चा तेल सस्ता हुआ तो 65 पैसे की राहत देने में तेल कंपनियों ने 50 दिन लगा दिए, जबकि कच्चा तेल महंगा होने के नाम पर 45 पैस प्रति लीटर की चढ़ाई 3 दिन के भीतर कर दी. 

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रसोई गैस के दाम 7 साल में डबल हो गए (पीटीआई)
रसोई गैस के दाम 7 साल में डबल हो गए (पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 7 साल में सिलेंडर का दाम दोगुना बढ़ चुका है
  • देश के कई राज्यों में पेट्रोल 100 के पार पहुंचा

कच्चे तेल का दाम बढ़ता है तो तुरंत तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा देती हैं, लेकिन कच्चे तेल का दाम घटने पर राहत देने के नाम पर पेट्रोलियम कंपनियों को मानो छींक आने लगती है. लगातार 100 रुपये के पार चल रहा पेट्रोल भराने वाली जनता की हकीकत यही है उसे राहत देने के नाम पर महज लटकाया जाता है. 

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जब त्योहार शुरू होने वाले हैं और एक-एक रुपये जनता के लिए कीमती होता है तब तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दाम पिछले तीन दिन में दो बार और डीजल की कीमत सात दिन में 5वीं बार बढ़ा दी है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, बंगाल, जम्मू कश्मीर, दिल्ली एनसीआर और पंजाब देश के वो राज्य हैं, जहां ज्यादातर जगहों पर पेट्रोल सौ रुपये से ज्यादा है.

65 पैसे की राहत देने में तेल कंपनियों ने लगा दिए 50 दिन 

कच्चे तेल की कीमत फरवरी में 6.42 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी तो पेट्रोल की कीमत में कंपनियों ने करीब 5 रुपये प्रति लीटर का इजाफा कर दिया. लेकिन अप्रैल में जब कच्चे तेल का दाम 1.33 डॉलर प्रति बैरल कम होता है तो वही फायदा जनता को देने के नाम पर पेट्रोल की कीमत में सिर्फ 16 पैसे की कमी की जाती है. 
 
जुलाई महीने में देखें तो कच्चे तेल की कीमत 1.56 डॉलर प्रति बैरल बढ़ी तो फौरन लगातार पेट्रोल का दाम बढ़ाते हुए 3 रुपये 3 पैसे का इजाफा प्रति लीटर तक पेट्रोलियम कंपनियों ने कर दिया, लेकिन अगस्त में फिर से जब कच्चे तेल के दाम 3.73 डॉलर प्रति बैरल तक कम हो गए तो सिर्फ 35 पैसे की कमी पेट्रोल के दामों में की गई.  

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हालत ऐसी है कि कच्चा तेल सस्ता हुआ तो 65 पैसे की राहत देने में तेल कंपनियों ने 50 दिन लगा दिए, जबकि कच्चा तेल महंगा होने के नाम पर 45 पैस प्रति लीटर की चढ़ाई 3 दिन के भीतर कर दी. 

आ चुके हैं जनता के घर की GDP बिगाड़ने वाले सिलेंडर

घरेलू गैस के दाम इस महीने की पहली तारीख को नहीं बढ़े हैं, लेकिन कमर्शियल सिलेंडर के दाम बढ़ गए हैं. कहा जा रहा है इससे रेस्टोरेंट, ढाबा, होटल में खाना महंगा पड़ेगा. मतलब अब दाम घटाना नहीं बल्कि दाम नहीं बढ़ाया है, इसी को राहत जनता मानें, ऐसी सोच पैदा कर दी गई है.
 
सिर्फ इसी साल की बात करें तो 1 जनवरी को गैस सिलेंडर 694 रुपये का था. 1 सितंबर को 884 रुपये कीमत हो जाती है. 17 अगस्त से 1 सितंबर के बीच 15 दिन में 50 रुपये की महंगाई सिलेंडर में गैस बनाकर डाल दी गई है. और 8 महीन में 190 रुपये की महंगाई जनता के घर की GDP बिगाड़ने वाले सिलेंडर में आ चुकी है

सरकार के कहने पर एक तरफ देश में एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ी ताकि दूसरे गरीब लोगों को सिलेंडर देकर उन्हे चूल्हे के धुएं से आजादी दी जाए. लेकिन अब सब्सिडी छोड़ने वाले मिडिल क्लास, लोवर मिडिल क्लास परिवार भी महंगे सिलेंडर के आगे लाचार होते हैं. 

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इतना मुनाफा कमाती हैं कंपनियां और सरकार 

पिछले 7 साल की बात करें 1 मार्च 2014 को  घरेलू गैस सिलेंडर की कीमत 410  रुपये थी जो अब 884 रुपये है. 7 साल में सिलेंडर का दाम दोगुना बढ़ चुका है. लेकिन पूरी राहत जनता को ना गैस के दाम में मिल रही, ना पेट्रोल डीजल पर. 

एक अनुमान के मुताबिक, कच्चा तेल अगर एक डॉलर भी सस्ता हो जाए तो तेल कंपनियों को 8 हजार करोड़ रुपये की बचत होती है. जबकि पेट्रोल डीजल पर एक रुपया टैक्स बढ़ाने से 13 हजार करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा सरकार का होता है. टैक्स बढे़ तो सरकार कमाए, कच्चा तेल सस्ता हो तो पेट्रोलियम कंपनियां और आम आदमी देखता रह जाए, आखिर महंगाई से जलती जेब पर मरहम कब लगेगा? 

आजतक ब्यूरो

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