गुजरात के तट से टकराने के बाद बिपरजॉय तूफान तेज़ी के साथ सौराष्ट्र-कच्छ के इलाकों की तरफ बढ़ रहा है. तूफानी हवाओं के चलते सौराष्ट्र औऱ कच्छ के इलाकों में पेड़ और खंभे गिरे हैं. IMD के मुताबिक तूफान का लैंडफॉल हो चुका है और अब भारी बारिश की आशंका है. चक्रवात से होने वाले खतरे को देखते हुए फके ही 1 लाख के करीब लोगों को तटीय इलाकों से रेस्क्यू किया गया. 15 जहाज, 7 एयरक्राफ्ट, NDRF की टीमें तैनात की गईं. लोगों को घरों से बाहर ना निकलने की सलाह दी गई. अभी ग्राउंड ज़ीरो पर किस तरह का मंज़र है, बिपरजॉय के ऑफ्टर इफेक्ट को लेकर क्या टेंशन है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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शायद आपने नोट न किया हो. पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 9 साल में कई बार जो अमेरिका जाते रहें. वो सब की सब महज़ आधिकारिक यात्राएं तक रहीं. स्टेट विजिट यानी राजकीय यात्रा के तौर पर अब तक वे अमेरिका नहीं गए. साल 2009 में आख़िरी दफ़ा तब के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह स्टेट विजिट पर यूएस गए थे. स्टेट विजिट दरअसल किसी भी देश के हेड ऑफ स्टेट की आधिकारिक यात्रा होती है. साथ ही, इस यात्रा को किसी नेता का दौरा नहीं बल्कि उस देश का दौरा माना जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी स्टेट विजिट के तहत 21 से 24 जून तक अमेरिका में होंगे. इस दौरान US प्रेसिडेंट उनके लिए स्टेट डिनर के अलावा इंटीमेट डिनर या यूं कहें की एक फैमिली डिनर होस्ट करेंगे. एक ओर दोनों देश दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़ी डेमोक्रेसी ख़ुद को बताते हुए एक दूसरे को एक पंक्ति में खड़ा करते हैं. वहीं, 2022 में भारत और अमेरिका के बीच 191 अरब डॉलर का व्यापार, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर, ये भी दोनों देशों के बीच कॉमन कड़ी है. तो दूसरी तरफ़ रूस-यूक्रेन युद्ध, रूसी तेल पर प्रतिबंध और दूसरे सवालों पर दोनों देशों की बिल्कुल अलग राय है. और ये समय-समय पर अंतराष्ट्रीय मंचों से ज़ाहिर भी हो चुकी है. इस तरह के मिले-जुले सम्बंध और मौजूदा ग्लोबल ऑर्डर के बीच प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से किस तरह की उम्मीदें हैं, अमेरिका की ओर से स्टेट विजिट का न्योता भारत के लिए; प्रधानमंत्री मोदी के लिए कितना बड़ा मौका है और यूक्रेन युद्ध पर भारत की जो पोजिशनिंग है वो अमेरिका को रास नहीं आती, इन सवालों पर क्या कोई सहमति बनने के आसार है? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.
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हर साल लाखों विदेशी नागरिक इलाज के लिए भारत आते हैं. ये मेडिकल टूरिज़्म कहलाता है. क्योंकि इस केस में वीजा भी इसी लिहाज़ से जारी होता है. इसी मेडिकल टूरिज़्म के ज़रिए भारत को पिछले एक दशक में 740 करोड़ डॉलर यानी मोटामाटी कहें तो लगभग 61 हजार करोड़ रुपये की कमाई हुई है. अगले दस बरस में एक अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा 4,350 करोड़ डॉलर; भारतीय करेंसी में अगर कहा जाए तो साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये को पार कर सकता है. ये जानकारी कल बिम्सटेक हेल्थ फोरम की एक बैठक के हवाले से आई. बिम्सटेक यानी बे ऑफ बेंगाल इनिशिएटिव फ़ॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल & इकोनॉमिक कोऑपरेशन एक क्षेत्रीय संगठन है. इसकी स्थापना 1997 में हुई थी. बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका के अलावा थाईलैंड इस ऑर्गनाइजेशन के सदस्य देश हैं. सवाल है कि मेडिकल टूरिज़्म में भारत की एक दशक में ये जो तकरीबन 61 हजार करोड़ रुपये की कमाई है, क्या इसे संतोषजनक माना जाए, इस सेक्टर में हमारा ओवरऑल ग्रोथ कितना सिग्निफिकेंट है, निवेश का आना महज़ मेडिकल टूरिज़्म में काफ़ी है या और भी कुछ सवाल हैं ओवरऑल हेल्थ सेक्टर से जुड़ी जिनपर हमारा उस तरह ध्यान अब भी नहीं जैसा की होना चाहिए? 'आज का दिन' में सुनने के लिए क्लिक करें.