सर्दियों का मौसम आते ही दिल्ली-एनसीआर और उससे सटे इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. हालांकि इस बार सर्दियों की शुरुआत से ही आसमान साफ रहा है. कोविड महामारी के दौरान भी हर साल की तुलना में प्रदूषण का स्तर अन्य सालों की तुलना में कम ही रहा है. हालांकि, खरीफ फसलों की कटाई का वक्त चल रहा है. इस बीच धान की पराली जलाने की घटनाएं बढ़ने लगी है. ऐसी स्थिति में प्रदूषण का स्तर एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है.
सेंटर फॉर साइंस एन्वॉयरमेंट(CSE) के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण का स्तर इसपर निर्भर करेगा कि पॉल्युशन रोकने के लिए क्या दीर्घकालिक कदम उठाए गए हैं. कोविड महामारी के बाद प्रदूषण से निपटने के लिए किए गए उपायों का भी प्रदूषण को कम रखने में मददगार साबित हो सकता है.
पराली जलाने की घटनाओं की वजह से बढ़ सकता प्रदूषण
सेंटर फॉर साइंस एन्वॉयरमेंट ने इसको लेकर डेटा भी जारी किया है. CSE के मुताबिक महामारी के बाद इस ठंड के शुरुआत तक प्रदूषण का स्तर औसतन PM2.5 बना हुआ था. प्रदूषण के इस स्तर को उतना खराब नहीं माना जाता है. हालांकि, 16 अक्टूबर को PM2.5 का स्तर 90 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर ("खराब" AQI ब्रेकपॉइंट) से ऊपर चला गया है. यह प्रदूषण स्तर अभी भी पिछले वर्षों की तुलना में कम है. दिवाली और पराली जलाने की घटनाओं को देखते हुए इसके बढ़ने की आशंका है.
ऐसे जांचा गया पॉल्यूशन लेवल
इस विश्लेषण में दिल्ली-एनसीआर के शहरों में फैले 81 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) को शामिल किया गया है. विश्लेषण के लिए मौसम संबंधी आंकड़े भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के पालम मौसम केंद्र से लिए गए हैं. फायर काउंट डेटा नासा के फायर इंफॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम से प्राप्त किया जाता है. मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोमाडोमीटर (MODIS) और विजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर सूट (VIIRS) जैसे प्रोडक्ट का उपयोग किया गया है. दिल्ली की वायु गुणवत्ता में खेत के पराली के धुएं के योगदान का अनुमान पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वाय गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली से लिया गया है.
स्थिति और खराब होने की आशंका
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वाय गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली के मुताबिक17 अक्टूबर को दिल्ली के पीएम2.5 के स्तर पराली के धुएं का योगदान लगभग 3 प्रतिशत था. ऐसा अब इसलिए हो रहा है क्योंकि पंजाब-हरियाणा-दिल्ली में पराली जलाने के मामले आने शुरू हो गए है. पंजाब-हरियाणा-दिल्ली में इन आग की कुल विकिरण शक्ति 16 अक्टूबर को 2,000 वाट तक पहुंच गई. यदि पराली जलाने घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई तो स्थिति और खराब हो सकती है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वाय गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली के मुताबिक 2015-18 की सर्दियों की तुलना में महामारी के बाद प्रदूषण के बाद 20 प्रतिशत सुधार दर्शाता है. हालांकि, कुछ वक्त से ये स्थिति स्थिर बनी हुई है. स्मॉग लंबे समय तक दिल्ली-एनसीआर में रुकने लगा है. ये सभी के स्वास्थ के लिए गंभीर परिस्थितियां पैदा कर रहा है. सुधार के बावजूद प्रदूषण का औसत अभी भी 24-घंटे के मानक से 150 प्रतिशत अधिक और वार्षिक मानक से लगभग चार गुना अधिक है.