अभी साल भर पहले की ही तो बात है. फरवरी 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. राजनीतिक दल प्रचार अभियानों में जुटे थे और नामांकन प्रक्रिया की तहत पर्चे भरे जा रहे थे. इसी दौरान पंजाब की लांबी विधानसभा सीट चर्चा में आई. वजह ये नहीं थी कि यहां से शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल पर्चा भर रहे थे, इस चर्चा की वजह बना पर्चे में दर्ज उनकी उम्र, बादल एक साल पहले 94 साल की उम्र में चुनावी अखाड़े में दमखम के साथ ताल ठोंक रहे थे. प्रकाश सिंह बादल की बात इसलिए क्योंकि, भारतीय राजनीति का यह सितारा मंगलवार को अस्त हो गया. प्रकाश सिंह बादल ने 95 वर्ष की आयु में आखिरी सांस ली.
पंजाब की सियासत के बेताज बादशाह
राजनीति के इतिहास में जब भी पंजाब की सियासत की बात होगी तो ये बात शिरोमणि अकाली दल के बिना शुरू नहीं होगी, और इसके संरक्षक प्रकाश सिंह बादल का नाम लिए बगैर खत्म नहीं होगी. पंजाब के मुक्तसर जिले की लांबी विधानसभा से वह 1997 से लगातार 5 चुनाव जीतते रहे थे. यही वजह रही कि उन्हें पंजाब की सियासत का बेताज बादशाह भी कहा जाता था.
1927 में हुआ था जन्म
प्रकाश सिंह बादल का जन्म 8 दिसम्बर 1927 को पंजाब में मालवा के पास स्थित गांव अबुल खुराना में हुआ था. वे एक जाट सिख थे. उनके पिता रघुराज सिंह और मां सुंदरी कौर थीं. 1959 में उन्होंने सुरिंदर कौर से शादी की और बादल दंपति के दो बच्चे सुखबीर सिंह बादल और परनीत कौर जीवन में आए. बादल की पत्नी सुरिंदर कौर का 2011 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था.
सरपंच का चुनाव जीतकर राजनीति में आए
प्रकाश सिंह बादल राजनेताओं की उस पीढ़ी से हैं, जिन्होंने गुलामी का दौर देखा, भारत की आजादी देखी और स्वतंत्र भारत की राजनीति का हिस्सा भी बने. महज 20 साल की उम्र रही होगी, जब वह 1947 में सरपंच का चुनाव जीतकर राजनीति में आए थे. एक बार उन्होंने इस क्षेत्र में कदम बढ़ा लिए तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1957 में पहली बार पंजाब विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और इसके बाद 1969 में प्रकाश सिंह बादल को एक बार फिर विधानसभा के लिए चुना गया.
केंद्र की राजनीति का भी बने हिस्सा
इस दौरान उन्होंने गुरनाम सिंह की सरकार में सामुदायिक विकास, पंचायती राज, पशु पालन, डेरी और मत्स्य पालन मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला. बादल 1996 से 2008 तक अकाली दल के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने पंजाब से ही राजनीति की, लेकिन साल 1977 में केंद्र की मोरारजी देसाई की सरकार में वह करीब ढाई महीने तक कृषि और किसान कल्याण मंत्री भी रहे थे.
ऐसा रहा है पंजाब की सियासत में बादल का सफर
प्रकाश सिंह बादल को पंजाब की सियासत का पितामह ऐसे ही नहीं कहा जाता है. वह रिकॉर्ड 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और 10 बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर चुके थे. बादल ने पहली बार 1970 में राज्य के 15वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी. इसके बाद 1977 में वे राज्य के 19वें मुख्यमंत्री चुने गए. बीस साल के बाद फिर उन्हें सत्ता की कमान संभाली, लेकिन इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन करने का सियासी फल मिला था.
1996 में बीजेपी के साथ किया गठबंधन
1996 में बीजेपी और अकाली दल साथ आए और 1997 के विधानसभा चुनाव में पहली बार उन्होंने गठबंधन कर चुनाव लड़ा. इसका सियासी फायदा दोनों ही दलों को मिला. इस चुनाव का फायदा यह हुआ कि बीजेपी को पंजाब में पैर जमाने के लिए जमीन मिल गई थी, तो बादल को सत्ता की कमान हासिल हुई थी. 1997 में बादल ने राज्य के 28वें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाला और 2007 चौथी बार और 2012 में पांचवीं बार मुख्यमंत्री चुने गए.
मंगलवार शाम को ली आखिरी सांस
साल 1957 के अलावा 1969 से वह लगातार राज्य विधानसभा के चुनाव जीतते आ रहे थे, हालांकि, सिर्फ एक बार 1992 में वह विधायक नहीं बने, क्योंकि उस साल अकाली दल ने चुनावों का बहिष्कार किया था. हालांकि बीते साल बादल जब लांबी विधानसभा सीट से खड़े हुए थे तो उन्हें यहां आप प्रत्याशी से हार का सामना करना पड़ा था. बता दें कि सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद उन्हें एक हफ्ते पहले ही मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था. मंगलवार शाम 8 बजकर 28 मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली.