Prashant Kishor Interview: चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में 2024 में बीजेपी को हराने का फॉर्मूला साझा किया है. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि विपक्ष का मतलब सिर्फ कांग्रेस ही नहीं है, बल्कि दूसरी पार्टियां भी हैं. ऐसे में सभी को मिलकर तय करना चाहिए कि लीडर कौन होगा. इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर (पब्लिशिंग) राज चेनगप्पा को दिए इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने क्या कुछ कहा? पढ़ें...
1. कांग्रेस ने 10 साल में 90% चुनाव हारे
- 2012 के कर्नाटक, 2017 के पंजाब, 2018 के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान को छोड़कर पिछले 10 सालों में 50 से ज्यादा चुनावों (आम और राज्य दोनों) में कांग्रेस हार गई है. ये दिखाता है कि कांग्रेस ने जिस तरह से खुद को स्ट्रक्चर किया है, जिस तरह से चुनावों में वो जनता तक पहुंचती है, लोगों से जुड़ती है, उसमें कुछ बुनियादी गड़बड़ी है. मैं ये सुझाव नहीं दूंगा कि पार्टी का अध्यक्ष कौन होना चाहिए? लेकिन पूरे विपक्ष का मतलब कांग्रेस नहीं है, उसमें और भी पार्टियां हैं. इसलिए उन्हें साथ मिलकर तय करना चाहिए कि अध्यक्ष कौन होगा?
- कांग्रेस ने 1984 के बाद कोई भी आम चुनाव नहीं जीता है. भले ही उसने उसके बाद 15 साल शासन किया हो. 1989 में कांग्रेस को 198 सीटें मिलीं लेकिन सरकार नहीं बनी. 2004 में उसे केवल 145 सीटें मिलीं और उसने गठबंधन में सरकार चलाई. तो एक पार्टी के रूप में उसका ग्राफ गिर रहा है.
2. कांग्रेस में 3 साल से अंतरिम अध्यक्ष
- एक पार्टी के रूप में कांग्रेस का जो स्ट्रक्चर है, जो फैसले लेने के तरीके हैं, उसे बदलने की जरूरत है. कांग्रेस जैसी पार्टी में तीन साल से अंतरिम अध्यक्ष है, क्या ये सही कदम है? इसके लिए आपको किसी प्रशांत किशोर या किसी और की सलाह की जरूरत नहीं है. आप जिसे भी चुनें वो फुलटाइम प्रेसिडेंट होना चाहिए.
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3. ममता बनर्जी के UPA खत्म वाले बयान पर
- ये तो वहीं बता सकती हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा? लेकिन 2004 में सरकार चलाने के लिए यूपीए अस्तित्व में आया था. उस समय ये नहीं था कि सरकार न रहने के लिए भी सब साथ रहेंगे. हां, अगर ये दोनों स्थितियों के लिए था तो फिर से इसके काम करने के तरीके पर विचार करने का समय आ गया है. क्योंकि अब परिस्थितियां बदल गईं हैं. उस समय जो यूपीए का हिस्सा थे, उनमें से कई अब नहीं हैं और जो नहीं थे वो आ गए हैं.
4. आप हट जाएं और किसी और को मौका दें
- एक राजनीतिक पार्टी के रूप में जब आप जीत जाते हैं तो श्रेय लेने आ जाते हैं लेकिन जब हारते हैं तो किसी और को आगे कर देते हैं. आप जितने भी मौके चाहते हैं, ले सकते हैं, लेकिन जब ये काम नहीं कर रहा है तो आपको पीछे हट जाना चाहिए.
- मैं राहुल गांधी की बात नहीं कर रहा हूं. मैं उस लीडरशिप की बात कर रहा हूं जिसके नेतृत्व में पिछले 10 साल से चुनाव लड़े गए हैं और 90% में हार मिली है. अब जो भी लीडर था, नैतिकता और रणनीतिक भावना यही कहती है कि आप दूर हो जाएं और किसी और को मौका दें.
5. यूपी 2024 का सेमीफाइनल नहीं है
- जरूरी नहीं कि 2022 में उत्तर प्रदेश के जो नतीजे होंगे, 2024 में भी वही होगा. बहुत सारे लोग इस भ्रम में हैं कि यूपी में जो भी होगा वो 2024 का टोन सेट करेगा. लेकिन 2012 में बीजेपी यूपी में तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी थी, समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी, लेकिन 2014 के आम चुनाव में इसका असर नहीं पड़ा. इसलिए यूपी का चुनाव 2024 का सेमीफाइनल नहीं है. 2024 से पहले कई राज्यों में चुनाव होने हैं.
6. बीजेपी को हराने का फॉर्मूला क्या है?
- बीजेपी के खिलाफ एक साथ कई सारी पार्टियों का आ जाना ही काफी नहीं है. असम में इस साल विधानसभा चुनाव हुए. महागठबंधन बना लेकिन वो हार गया. हमने इस यूपी में देखा. 2017 में सपा, बसपा और दूसरी पार्टियां साथ आईं और हार गईं. इसलिए अतीत में जो हुआ, उसे देखना होगा और सीखना होगा.
- केवल कई पार्टियों का एकसाथ आ जाना बीजेपी के खिलाफ जीत का पक्का नुस्खा नहीं है. इसके लिए आपको एक चेहरा चाहिए, एक विचार होना चाहिए, आंकड़े होने चाहिए और मशीनरी होनी चाहिए. अगर आपके पास ये चारों हैं तो आप बीजेपी के खिलाफ चुनौती खड़े कर सकते हैं.
- 2 साल का समय कम नहीं होता है. आपके पास अगले 7 से 10 साल का विजन होना चाहिए. आप बीजेपी को 2024 में हरा सकते हैं लेकिन उसके लिए जो मैंने चारों बातें बताईं, उसे जमीन पर बने रहने की जरूरत है.
7. आप बीजेपी को खत्म नहीं कर सकते
- आप राजनीतिक ताकत से बीजेपी को खत्म नहीं कर सकते क्योंकि आपको ये देखना चाहिए कि उसे यहां तक कौन लाया है. एक संगठन के तौर पर 50-60 साल तक काम किया. जनसंघ और उससे पहले से भी. 60-70 साल की लड़ाई के बाद वो 30-35 फीसदी वोट के साथ यहां पहुंचे हैं. ये संभव है कि वो एक से ज्यादा कई चुनाव हार जाए. लेकिन 30 फीसदी से ज्यादा वोट पाने वाले संगठन को आप खत्म नहीं कर सकते.
8. प्रधानमंत्री मोदी अच्छे श्रोता हैं, उनमें कई गुण
- अगर आप प्रधानमंत्री मोदी की पिछली 50 साल की यात्रा को देखेंगे तो पाएंगे कि 15 साल उन्होंने आरएसएस के प्रचारक के तौर पर काम किया, जहां उन्होंने लोगों से बात करना, उन्हें समझना सीखा. उसके बाद 10 से 15 साल उन्होंने बीजेपी में ऑर्गनाइजर के तौर पर काम किया जहां उन्हें राजनीति व्यवस्था को लेकर अनुभव मिला. फिर 13 साल मुख्यमंत्री और अब साढ़े 7 साल से प्रधानमंत्री हैं.
- उनके 45 सालों का अनुभव भारत में अद्वितीय है, जो उन्हें अनुमान लगाने में मदद करता है कि लोग क्या चाहते हैं. इसके साथ ही वो एक अच्छे श्रोता भी हैं. उनके पास किसी भी मुद्दे पर ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुनने का गुण है.