आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू कल देश की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेने जा रही हैं. भारत की प्रथम नागरिक बनने तक का उनका सफर कई उतार-चढ़ाव से भरा है, लेकिन इन सबके बीच अगर कोई एक चीज उन्हें खास बनाती है तो वो है उनकी सरलता, लोगों की निस्वार्थ सेवा और त्याग की भावना, उनके इन गुणों का पता उनके बचपन की कहानियों से ही चलता है. खुद उनकी स्कूल टीचर ने उनके व्यक्तित्व से जुड़ी कई अनोखी बातें बताई हैं.
'बुक बैंक से पढ़ाई, फिर दान की किताबें'
उपेरबेड़ा गांव में उनकी अपर प्राइमरी स्कूल के टीचर वासुदेव बहेरा का कहना है कि भौतिकवादी वस्तुओं का दान कर देना मुर्मू के स्वभाव का हिस्सा है. मुर्मू के बचपन की एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया- द्रौपदी के पिता बिरांच टुडू उपेरबेड़ा गांव के प्रधान हुआ करते थे. उनका परिवार काफी गरीब था. द्रौपदी एक ही फ्रॉक में स्कूल आया करती थी और उसके पास ज्योमेट्री बॉक्स तक नहीं था. तब स्कूल ने उसे ज्योमेट्री बॉक्स दिया था. जो बच्चे किताबें नहीं खरीद सकते थे, उनके लिए स्कूल में बुक बैंक होता था. द्रौपदी ने बुक बैंक किताबें उधार लेकर पढ़ाई-लिखाई की. हालांकि, जब उसने 7वीं की परीक्षा पास कर ली, तब उसने ना सिर्फ बुक बैंक की किताबें वापस कर दी, बल्कि दूसरे बच्चों की मदद के लिए अपनी कुछ किताबें भी दान कर दीं.
'फटे कपड़ों से बनाए डस्टर'
उन्होंने भावी राष्ट्रपति के बारे में एक और बात बताई. उन्होंने कहा कि उस समय स्कूल में ब्लैकबोर्ड को साफ करने के लिए डस्टर नहीं होते थे. तब द्रौपदी मुर्मू ने फटे हुए कपड़ों से डस्टर बनाए और स्कूल के हर क्लासरूम के लिए एक डस्टर बनाया.
द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत एक काउंसिलर के तौर पर की. उसके बाद वो एक विधायक, मंत्री, राज्यपाल रहीं और अब देश के सर्वोच्च पद यानी कि राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने जा रही हैं. उनके करीबी लोगों का कहना है कि उनके स्वभाव की सरलता ही उनकी सफलता की कुंजी है और जब इसमें विनम्रता, आत्मविश्वास और त्याग की भावना भी जुड़ जाती है तो सही मायनों में वो द्रौपदी मुर्मू ही होती हैं.
दोस्तों के पास भी हैं द्रौपदी मुर्मू के कई किस्से
होने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सहपाठी तन्मय बिसोई के पास भी उनसे जुड़ा एक किस्सा है. वो कहते हैं - द्रौपदी काफी नम्र स्वभाव की हैं. उनके स्वभाव की वजह से कोई कभी नहीं जान सकता कि उन्हें कोई दिक्कत भी है. वह कभी किसी से कभी कोई डिमांड नहीं करती हैं. जब भी स्कूल में हम सब बच्चे एक साथ एकत्रित होते थे, तो द्रौपदी के पास जो भी खाना होता था, वो लोगों में बांट देती थीं. वह दूसरों से लेने की बजाय उन्हें कुछ देने में विश्वास रखती हैं.
एजेंसी की खबर के मुताबिक विधायक राज किशोर दास का द्रौपदी मुर्मू के बारे में कहना है कि 2009 से 2015 के बीच सिर्फ छह साल में द्रौपदी मुर्मू ने अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खोया. उस वक्त उन्होंने ब्रह्मकुमारीज से मेडिटेशन टेक्नीक को सीखा. गरीब बच्चों की पढ़ाई को लिए उन्होंने एक स्कूल बनाया और इसके लिए अपने ससुराल की सारी संपत्ति दान कर दी. उन्होंने ये स्कूल अपने दिवंगत पति और दो बेटों की याद में खोला.
इस जमीन पर एसएलएस (श्याम-लक्ष्मण-सिपुन) रेजिडेंशियल स्कूल खोला गया है. यहां 100 गरीब बच्चों को शिक्षा दी जाती है. इस स्कूल के लिए द्रौपदी मुर्मू ने 3.20 एकड़ जमीन दान कर दी थी. इस स्कूल को द्रौपदी मुर्मू की बेटी इतिश्री का एक ट्रस्ट चलाता है.
(एजेंसी से इनपुट के साथ)