विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि पीयूष गोयल ने विपक्षी दलों के I.N.D.I.A. गठबंधन और उसके नेताओं को गद्दार कहा था जिसे लेकर विपक्षी नेताओं ने कड़ा ऐतराज जताया है और उनके खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया है.
जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए कहा, 'आज 1300 बजे, राज्यसभा में I.N.D.I.A. के गठबंधन के नेताओं ने विपक्ष को "देशद्रोही" कहकर संबोधित करने के लिए सदन के नेता पीयूष गोयल के खिलाफ एक विशेषाधिकार प्रस्ताव पेश किया है. जब प्रस्ताव सदन में आएगा तो सदन के पटल पर उनकी ओर से माफी से कम कुछ भी नहीं चलेगा'
क्या होता है विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव
भारत के लोकतंत्र में संसद के सदस्यों को जो विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं वो उन्हें अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाने के लिए बाध्य करते हैं. यदि कोई भी सदस्य विशेषाधिकारों या अधिकारों की अवहेलना या दुरुपयोग करता है, तो इसे विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव (privilege motion) का उल्लंघन कहा जाता है. इसके साथ ही सदन के दौरान अगर कोई सदस्य ऐसी टिप्पणी करता है जो सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाती हो तो ऐसी स्थिति में उस सदस्य पर सदन की अवमानना और विशेषाधिकार हनन के तहत कार्रवाई की जा सकती है.
यह प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों पर लागू होता है. संसदीय कानूनों के तहत विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव दंडनीय है. लोकसभा में इस प्रस्ताव का उल्लंघन लोकसभा स्पीकर द्वारा देखा जाता है और राज्यसभा में सभापति द्वारा इस पर ध्यान दिया जाता है.
जांच कैसे होती है?
संविधान के अनुच्छेद 105 के अनुसार विशेषाधिकार के उल्लंघन की जांच की जाती है, जबकि राज्य विधायिका के मामले में अनुच्छेद 194 के अनुसार प्रस्ताव पारित किया जाता है. नियमों के मुताबिक, नोटिस हाल की घटना से संबंधित होना चाहिए. इसके लिए सदन का हस्तक्षेप भी आवश्यक है.अध्यक्ष की सहमति के बाद सदस्य विशेषाधिकार हनन या सदन की अवमानना के प्रस्ताव पर सवाल उठा सकता है.