
हर शहर में कुछ जगहों के नाम ऐसे होते हैं जो आपको अचंभित करते हैं. जैसे दिल्ली में मजनूं का टीला हो या मुंबई का भिंडी बाजार. कोई जब पहली बार इनका नाम सुनता है तो सोच में पड़ जाता है, ऐसा ही है पुणे का दारूवाला पुल और लकड़ीवाला पुल, जानिए क्यों पड़े इनके ये नाम
दारूवाला पुल चौक पर ठेका नहीं
पुणे आने वाले किसी अनजान शख्स को दारूवाला पुल चौक का नाम सुनते ही लगेगा कि यहां पक्का कोई बड़ा शराब का ठेका होगा या कई सारी वाइन शॉप होंगी. लेकिन असल में इस पुल पर ऐसा कुछ नहीं है. शराब के ठेके की तो बात छोड़िए इसका दारू से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है.
पेशवाओं के जमाने से चला आ रहा है नाम
इस इलाके के पार्षदों वनराज आंधेकर और लक्ष्मी उदयकांत आंधेकर ने आजतक से एक बातचीत में कहा कि इस पुल के नाम का राज दारू का मराठी भाषा में अलग मतलब होना है. बारूद को मराठी भाषा में दारू गोला कहा जाता है. पेशवाओं के राज में इस में इलाके में रहने वाले एक परिवार का पेशा बारूद के अलावा जंग में इस्तेमाल किए जाने वाला सामान- तोप, बंदूक, हथगोले आदि बनाना था. जिस वक्त नागझरी नाले पर पुल का निर्माण शुरू हुआ था तो इस पुल को पास रहने वाले परिवार के नाम पर ही दारू वाला पुल बुलाया जाने लगा. तब से यही नाम चला आ रहा है.
यहां स्थित एक चौक का नाम भी इसी पुल के नाम पर है.
लकड़ी के पुल पर नहीं लकड़ी का नामोनिशान
यही हाल पुणे में लकड़ी पुल नाम के जगह की है. नाम सुनकर आपको लगेगा कि कोई काठ का बना पुल होगा ठीक वैसा ही जैसा अंग्रेजों के जमाने में दिल्ली में लोहे का पुल बना था या फिर पहाड़ी इलाकों में छोटी नदियों या नहरों पर लकड़ी के पुल बनते हैं. लेकिन पुणे में स्थित ये लकड़ी पुल पूरी तरह कंक्रीट, सीमेंट और लोहे के गार्डरों से बना है. फिर इसका नाम लकड़ी पुल क्यों?
1761 में बनाया था सागौन का पुल
इस नाम की तह तक जाने के लिए हमने इतिहासकार मंदार लवाटे से बात की. उन्होंने बताया कि पेशवाओं के राज में मुठा नदी को पार करने के लिए नौकाओं का इस्तेमाल किया जाता था. आबादी बढ़ने के बाद यहां पुल की जरूरत महसूस की गई. उस दौर में यानि 1761 में मुठा नदी पर सागौन की लकड़ी से पुल का निर्माण किया गया. तब पुल की लंबाई करीब 100 मीटर थी. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान 1921 में यहां लकड़ी के पुल की जगह कंक्रीट से पक्का पुल बनवाया गया. समय समय पर इसमें बदलाव किए जाते रहे लेकिन इसका नाम आम बोलचाल में लकड़ी पुल ही रहा. औपचारिक तौर पर अब इस पुल को संभाजी ब्रिज कहते हैं.
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